आलोचकों की टिप्पणी कि 7 रेस कोर्स रोड पर विदेश यात्रा के लिए प्रधानमंत्री का बिस्तर हमेशा तैयार रहता है, इन आलोचनाओं के बावजूद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि उनके लिए यह बहुत गौरव और संतोष की बात है कि पूरी दुनिया में भारत के प्रति नजरिया बदल रहा है और पूरी दुनिया भारत की क्षमता और शक्ति को मानने लगी है।
एक साल पूरा होने पर अभी हाल में यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) को दिए गए एक साक्षात्कार में श्री मोदी ने कहा कि दुनिया उनके लिए नई थी और वे दुनिया के लिए नये थे। भारत के बारे में दृष्टिकोण और उसकी छवि बदलना बहुत जरूरी था। उन्होंने कहा, "मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया-मैं निश्चित रूप से दुनिया को भारत के बारे में, उसकी क्षमता के बारे में और उसकी संभावनाओं के बारे में बताऊंगा।" श्री मोदी ने कहा कि समस्त भारत वासियों के लिए यह गौरव का विषय है कि भारत के प्रस्ताव के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र संघ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है, जिसे कम से कम 177 देशों ने अपना समर्थन दिया है। यह इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी विश्व संगठन ने 100 दिन के भीतर ऐसा प्रस्ताव पास किया हो।
विश्व 21 जून को योग दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। श्री मोदी ने कहा कि 21वीं सदी शुरू होने पर ब्रिक्स की अवधारणा सामने आई और यह माना गया कि वर्तमान शताब्दी का नेतृत्व इस समूह के सदस्य करेंगे। जल्द ही भारत के बारे में यह धारणा बनने लगी कि वह ब्रिक्स में एक कमजोर देश है, और इसने पूरी कल्पना को ही पलट दिया। श्री मोदी ने कहा, 'इस परिस्थिति ने मेरी सरकार पर जिम्मेदारी डाल दी। मैं चुनौतियों के प्रभाव के प्रति जागरूक था।' श्री मोदी ने तीन दशकों के बाद उन्हें निर्णायक जनादेश देकर स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनाने के लिए जनता को श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से उन्हें यह मदद मिली कि वे दुनिया में 'आत्मविश्वास के साथ निर्णायक प्रशासन' की छवि बना सकें। साक्षात्कार में की गई टिप्पणियों से यह साफ होता है कि श्री मोदी अपने आलोचकों की बातों से प्रभावित नहीं हैं। उनके आलोचक हमेशा यह कहते हैं कि जिस तरह श्री मोदी विदेश यात्राओं पर जाते रहते हैं, उस तरह भारत की यात्रा करने में उनकी कोई रुचि नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्री मोदी ने भारत विदेश नीति में नई ऊर्जा भर दी है। उन्होंने विश्व के नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध प्रगाढ़ किये हैं और अपने हर विदेशी दौरे पर अमिट छाप छोड़ी है। अपने एक साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने 18 देशों का दौरा किया और गहरी व्यस्तता के बावजूद वे पूरी गर्मजोशी से विश्व के नेताओं से मुलाकात करते रहे हैं।
जब 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला तो उन्होंने शुरू से ही अपनी विशेष शैली के तहत काम शुरू किया। अपने शपथग्रहण समारोह में उन्होंने सार्क देशों और मॉरीशस के शीर्ष नेतृत्व को आमंत्रित करके अपनी सरकार की नीतियों का खुलासा किया। इस अवसर पर पाकिस्तान सहित पड़ोसी देशों के नेताओं की उपस्थिति से यह स्पष्ट हो गया कि भारत ने एक नई विदेश नीति शुरू कर दी है। इसके बाद से श्री मोदी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्यों-अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस के नेताओं से दो से अधिक बार बातचीत की। श्री मोदी ने न सिर्फ अपने पड़ोसियों और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा दिया बल्कि पश्चिम, मध्य पूर्व और यहां तक कि लातीनी अमेरिका और सेशेल्स जैसे दूरस्थ देशों के साथ भी भारत के संबंधों को प्रगाढ़ बनाया। एक तरफ जब श्री मोदी विदेश यात्राओं के दौरान और विदेशी नेताओं के भारत आगमन के दौरान बातचीत में व्यस्त थे, तो उसी समय विदेश मंत्री सुश्री सुषमा स्वराज पूरे विश्व के साथ भारत के संबंधों को खामोशी से मजबूत बना रही थीं। विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह भी इसी कार्य में लगे थे।
इस एक साल की व्यस्त राजनयिक गतिविधियों के तहत श्री मोदी, सुश्री स्वराज और जनरल वी के सिंह ने 101 देशों के साथ 162 राजनयिक आदान-प्रदान किया है। लोकसभा में अपने बल पर बहुमत हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी कार्यक्रम में यह वादा किया था कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर ध्यान देगी। पड़ोसियों तक दोस्ती का हाथ पूरी तन्मयता के साथ बढ़ाया गया। यह इस बात से साबित होता है कि कार्यभार संभालने के बाद श्री मोदी सबसे पहले भूटान की यात्रा पर गये। भूटान दशकों से भारत का नजदीकी मित्र रहा है और उसकी सीमाएं चीन से मिलती हैं। भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और अभी हाल में बांग्लादेश की यात्राओं के अलावा श्री मोदी ने फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, कनाडा, चीन और ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया तथा मंगोलिया यात्रा करने वाले वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।
श्री मोदी ने जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, मॉरीशस, सेशेल्स, फीजी और ब्राजील की यात्रा की। उन्होंने ब्रिक्स, आसियान, ईएएस और जी-20 जैसे कई बहुस्तरीय शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लिया। श्री मोदी ने 'लुक ईस्ट' नीति को आगे बढ़ाने की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दर्शायी और उसे 'ऐक्ट ईस्ट' नीति का नाम दिया। इसके तहत उन्होंने दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र के साथ सक्रिय भागीदारी शुरू की। 'ऐक्ट ईस्ट' नीति को कारगर बनाने के लिए सरकार ने आसियान देशों के साथ भारत होते हुए संपर्क परियोजनाओं पर बल दिया। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में चीन की मजबूत उपस्थिति है।
इसके अलावा, श्री मोदी ने 'लिंक वेस्ट' नीति की शुरुआत की, जिसके तहत मध्य पूर्व क्षेत्र सहित पश्चिम के साथ भारत की साझेदारी शुरू की गई। श्री मोदी की विदेश नीति का जोर आर्थिक कूटनीति पर है। इसके लिए उनकी सरकार 'मेक इन इंडिया' पहल को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन दे रही है। विदेशी सरकारों और बड़े कॉरपोरेट जगत को यह आश्वासन दिया गया है कि भारत में व्यापार करना कितना आसान है। 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत प्रधानमंत्री ने विदेशी सरकरों से आग्रह किया है कि वे भारत के रेल क्षेत्र, निर्माण, संरचना, रक्षा, स्मार्ट सिटी, शहरी योजना और अन्य क्षेत्रों में भागीदारी करें। उन्होंने डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्वच्छ गंगा अभियान, स्वच्छ भारत अभियान और नवीकरणीय ऊर्जा जैसी अन्य पहलों में भी विदेशी सरकारों की सक्रिय भागीदारी का आग्रह किया है।
उनकी विदेश नीति का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह कि वे विदेशी दौरों के समय व्यापार जगत के बड़े नेताओं के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत करते हैं। प्रधानमंत्री ने विश्व की शीर्ष कंपनियों के नेताओं के साथ मुलाकात की है और उन्हें भारत में साझीदारी करने के लिए आमंत्रित किया है। 2014 में श्री मोदी की अमेरिका यात्रा ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा। 2005 में अमेरिका द्वारा वीजा न दिये जाने की कटुता को भुलाकर उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ किये। एक बड़ा कूटनीतिक दांव खेलते हुए उन्होंने 26 जनवरी, 2015 की गणतंत्र दिवस परेड में राष्ट्रपति ओबामा को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। श्री ओबामा गणतंत्र दिवस की परेड में उपस्थिति होने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने। वे अपने कार्यकाल में दो बार भारत दौरा करने वाले भी पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने। इसके पहले वे 2010 में भारत यात्रा पर पधारे थे। ओबामा ने प्रधानमंत्री मोदी को 'मैन ऑफ ऐक्शन' बताया और उनके साथ प्रगाढ़ संबंध बनाये। उन दोनों नेताओं ने इस वर्ष जनवरी में रेडियो पर संयुक्त रूप से 'मन की बात' भी की। चीन के साथ भी भारत के नजदीकी आर्थिक संबंध तो हैं, लेकिन सीमा विवाद के तनाव की छाया दोनों देशों के संबंधों पर मौजूद है। हालांकि, श्री मोदी ने चीनी नेतृत्व के साथ स्वस्थ संबंध बनाने का प्रयास किया है। पिछले एक वर्ष के दौरान उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ चार बार मुलाकात की। शायद यह विश्व के किसी भी नेता के साथ की गई मुलाकातों से अधिक है।
सितंबर में जब राष्ट्रपति शी भारत आये थे तो श्री मोदी ने उन्हें अहमदाबाद आने के लिए आमंत्रित किया था। दोनों नेताओं ने साबरमती नदी किनारे चहल कदमी की। इस वार्तालाप के दौरान लोक नर्तकों और लोक संगीतकारों ने नदी किनारे कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। इस तरह श्री मोदी ने औपचारिक कूटनीतिक वार्तालाप को किनारे करके अनौपचारिक वातावरण में चर्चा की। उन्होंने पहली बार भारत की विदेश नीति में राज्यों को बराबर की हिस्सेदारी दी। प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल का जवाब देते हुए राष्ट्रपति शी ने मई में श्री मोदी की चीन यात्रा के दौरान उन्हें अपने गृह नगर शियान में आमंत्रित किया। वहां उनका परांपरिक रूप से शानदार स्वागत किया गया। यद्यपि उनकी चीन यात्रा के दौरान सीमा विवाद को हल करने में ज्यादा प्रगति तो नहीं हुई, लेकिन दोनों देशों ने आर्थिक संबंधों को बढ़ाने और दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत बनाने की पहल जरूर की।
रूस के साथ श्री मोदी ने भारत के नजदीकी पारंपरिक संबंधों पर जोर दिया। ब्रिक्स और एससीओ शिखर सम्मेलनों के लिए जुलाई में जब श्री मोदी रूस जाएंगे तो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ चौथी बार मुलाकात करेंगे। सरकार ने जोरदार तरीके से कहा है कि भारत यूक्रेन संकट के मामले में पश्चिम द्वारा रूस पर लगाये जाने वाले प्रतिबंधों का विरोध करता है। भारत के उग्र पश्चिमी पड़ोसी पाकिस्तान के साथ संबंध में गिरावट आई है। 26 मई, 2014 को जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ श्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आये थे और उसके बाद भी दोनों नेताओं के बीच जो संक्षिप्त मुलाकातें हुई हैं, उनसे संबंधों की एक नई शुरुआत अवश्य हुई थी लेकिन पिछले साल 25 अगस्त को दोनों देशों के बीच सचिव स्तरीय बैठक के चार दिन पहले कश्मीरी अलगाववादियों के साथ पाकिस्तान की बातचीत ने अच्छे संबंधों की संभावनाएं समाप्त कर दीं। सीमाओं पर लगातार गोला बारी और भारतीय सैनिकों तथा नागरिकों की मृत्यु से कटुता और बढ़ी है। पाकिस्तान भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा लगातार उठाता रहा है। अभी हाल में उसने 26/11 के मास्टरमाइंड जकी-उर-रहमान लखवी को जेल से रिहा कर दिया है, जिसके कारण भी दोनों देशों के संबंध कटु हुए हैं।
अपने पूर्वी मित्र देश बांग्लादेश की श्री मोदी की हाल की यात्रा बहुत ऐतिहासिक रही है। इस दौरान दोनों देशों ने 41 वर्ष पुराने सीमा समझौते को पूरा किया। यह मामला दोनों देशों के बीच बहुत पुराना था और ढाका यह चाहता था कि भारत इसे जल्द से जल्द पूरा करे। प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ अपनी बातचीत और ढाका विश्वविद्यालय में अपने व्याख्यान में श्री मोदी ने बांग्लादेश को आश्वस्त किया कि उनकी सरकार सभी हितधारकों के साथ मिलकर तीस्ता नदी का मामला भी हल करने का प्रयास करेगा।
पिछले साल सितंबर में एक अन्य मित्र देश जापान की यात्रा के दौरान श्री मोदी ने प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अपनी मुलाकात में विशेष रणनीतिक विश्व साझेदारी को रेखांकित किया। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबट के साथ भी उन्होंने नजदीकी संबंध स्थापित किये और पिछले वर्ष नवंबर में श्री मोदी की ब्रिसबेन यात्रा के दौरान दोनों नेता बड़ी गर्मजोशी से मिले थे। श्री मोदी ने अभी मई में दक्षिण कोरिया की यात्रा की और दोनों देशों ने अपने संबंधों को विशेष रणनीतिक साझेदारी का दर्जा प्रदान किया। दोनों देशों ने अपने विदेश और रक्षा सचिवों के बीच कूटनीतिक तथा सुरक्षा संवाद की शुरुआत की। अब तक भारत इस तरह का संवाद केवल जापान के साथ करता रहा है।
पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र आमसभा को हिन्दी में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन का प्रस्ताव किया, जिसे रिकॉर्ड समय में मंजूर किया गया। पिछले साल दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र आमसभा ने भारत नीत प्रस्ताव को स्वीकर करते हुए 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। 175 देश इस प्रस्ताव के सह-प्रायोजक थे। इतनी बड़ी संख्या में पहली बार संयुक्त राष्ट्र आमसभा के किसी प्रस्ताव का प्रायोजन किया गया है।
भारत की विदेश नीति में श्री मोदी ने एक प्रमुख बदलाव यह किया है कि जिस पारंपरिक कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल साउथ ब्लॉक में दशकों से हो रहा था, उसे हटा दिया है। श्री मोदी के व्याख्यान अनौपचारिक और साधारण शैली के होते हैं। उनकी छवि इस प्रकार की है कि वे अनौपचारिक रूप से लोगों के साथ बातचीत करना पसंद करते हैं। श्री मोदी ने भारत की विदेश नीति में हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा दिया, जबकि पहले केवल अंग्रेजी का दबदबा था। पहले कूटनीतिक वार्ताओं के दौरान श्री मोदी हिन्दी का उपयोग करते थे और उनकी मदद के लिए अनुवादक साथ रहते थे। श्रोताओं को ध्यान में रखते हुए अब वे अंग्रेजी में भाषण देते हैं। लेकिन विदेशों में अनेक श्रोताओं, खासतौर से विदेश में रहने वाले भारतीयों को अनौपचारिक रूप से संबोधित करते हुए वे हिन्दी का बड़ी कुशलता से उपयोग करते हैं। विदेशों में प्रधानमंत्री द्वारा की जाने वाली चर्चाओं में सबसे बड़ा हिस्सा विदेशों में रहने वाले भारतीयों का है। पिछले साल सितंबर में उन्होंने न्यूयॉर्क के मैडिसन स्कॉयर में उत्साहित भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्होंने मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस तरह उन्होंने विदेशों में रहने वाले भारतीयों के साथ नजदीकी संबंध बनाये और उन्हें भारत के विकास में बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी करने के लिए प्रेरित किया।
प्रधानमंत्री ने भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ) कार्ड को विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों (ओसीआई) कार्ड के साथ जोड़ने की घोषणा की। इस तरह इन लोगों को बड़ी राहत दी गई। इसके अलावा, पीआईओ को जीवन पर्यन्त वीजा देने की भी घोषणा की गई। श्री मोदी की विदेश नीति का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे ट्विटर और फेसबुक का इस्तेमाल भी करते हैं, जिनसे न केवल उनके असंख्य प्रशंसक और समर्थक जुड़े हैं बल्कि विदेशी नेता भी इनमें शामिल हैं। वे अन्य लोगों के अलावा, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबट और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ ट्विटर के जरिए जुड़े हैं। प्रधानमंत्री अपनी राजनयिक गतिविधियों के दौरान फौरन ट्वीट करते हैं और फोटो भेजते हैं, जिससे उनके फॉलोवर्स को भारत की विदेश नीति की प्रगति के बारे में जानकारी मिलती रहती है।
श्री मोदी ने भारतीय राजनय में 'सेल्फी' को भी जोड़ दिया है। वे विश्व के नेताओं के साथ सेल्फी खींचते हैं और उसे ट्विटर पर पोस्ट कर देते हैं। सेल्फी कूटनीति प्रधानमंत्री के प्रशंसकों सहित लोगों के बीच बहुत सफल साबित हुई है।