19 जुलाई को सुबह 11.18 बजे हिंदी पर गौरव का एक और बड़ा कारण मुझे मिला। हमारी हिंदी की स्वीकार्यता अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बढ़ती हुई दिखी। ठीक इसी समय यूनाइटेड नेशन्स इंडिया ने हिंदी में ट्वीट करने की जानकारी अपने हैंडल से दी। लिखा #संयुक्तराष्ट्र अब हिंदी में है! दुनिया भर से सभी समाचार और अपडेट के लिए @UNinHindi पर जाएं। इतना ही नहीं, in.one.un.org/hindi नाम से एक वेबसाइट भी है, जहां उपलब्ध सामग्री हिंदी में है। यह कॉपी लिखे जाने तक नए बने ट्विटर हैंडल से कुल 18 ट्वीट हिंदी में किए गए हैं। यह हैंडल 40 को फॉलो करता है और 2800 फ़ॉलोअर्स इस अकाउंट पर हैं।
इस हैंडल को शुरू हुए दो सप्ताह ही हुए हैं। निश्चित तौर पर यह हम हिन्दुस्तानियों के लिए गौरव का क्षण है। ख़ास तौर से हिंदी भाषी क्षेत्र के उन निवासियों के लिए, जिन्हें अपनी भाषा बोलने में हिचक होती है।
हिंदी पर देश में और देश के बाहर भी बहुत काम हो रहा है। या यूं कहें कि पूरी दुनिया में हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है। गूगल जैसी अमेरिकी कंपनी ने तो हिंदी पर बरसों पहले काम शुरू किया और लगातार कर रही है। पिछले दिनों गूगल की एक वर्कशॉप में मैंने सवाल पूछा कि हमें समाचारों के लिए किस भाषा में वेबसाइट शुरू करनी चाहिए। एक्सपर्ट का जवाब था- हिंदी में। लगभग तीन साल पहले जो आंकड़े उस वर्कशॉप में दिए गए, मेरे जैसे हिंदी प्रेमी के लिए बहुत गौरवान्वित करने वाले थे।
लगभग 55-60 करोड़ हिंदी भाषा को जानने-समझने वाले इसी देश में रहते हैं तो अंग्रेजी के 18 करोड़। देश की अन्य बड़ी भाषाओं में ज्यादातर 8-9 करोड़ या इससे भी कम। एक्सपर्ट ने यह भी कहा कि हिंदी को अब कोई भी कमजोर नहीं मान सकता, गूगल भी नहीं। इसी वजह से वर्कशॉप हो रही है और इसी वजह से ढेरों सुधार के कार्यक्रम भी गूगल चला रहा है।
हिंदी पर गर्व करने के अनेक कारणों के बीच मुझे बीते दिसंबर महीने में पत्रकारों के सेमिनार में हिस्सा लेने के लिए श्रीलंका जाने का मौका मिला। भाषण मुझे भी देना था। वह पहले से तैयार था लेकिन अंग्रेजी में। जब मैं उस हाल में पहुंचा तो सभी लोग अंग्रेजी में बातचीत करते देखे-सुने गए। मैंने सोचा कि चलो ठीक हुआ, तैयारी अंग्रेजी में की है। पर, कार्यक्रम शुरू हुआ तो श्रीलंका के कई विद्वतजनों ने अंग्रेजी का छोड़ सिंहली में भाषण देना शुरू किया। मेरी बारी आई। मैं डायस पर पहुंचा लेकिन अपना अंग्रेजी भाषण बिना देखे शुरू हो गया हिंदी में। मुझे लगा कि अगर इस धरती पर मैंने हिंदी नहीं बोली तो देश की बदनामी ही होगी।
इस साल यूएई की यात्रा के दौरान मेरा आत्मविश्वास बढ़ा हुआ था। करीब एक सप्ताह की इस यात्रा में भी मैंने हिंदी का बेहतरीन इस्तेमाल किया विदेशी धरती पर। मेरे एक मित्र हैं सर्वेश अस्थाना। हिंदी के कवि हैं। वे डेढ़ महीने की कविता यात्रा अमेरिका में पूरी करके हाल में लौटे हैं। अकेले नहीं पूरे तीन हिंदी कवियों के साथ।
गोलोकवासी आदरणीय गोपाल दास ‘नीरज’ के सुपुत्र शशांक प्रभाकर ने अपने कई साथियों के साथ हाल ही में लंदन में हिंदी का झंडा अपनी कविताओं के जरिए बुलंद किया। मेरा सिर्फ यह कहना है कि आप अंग्रेजी ही नहीं, दुनिया भर में फैली सैकड़ों भाषाएं सीखिए, बोलिए, लेकिन हिंदी को हेय दृष्टि से न देखिए। उसका सम्मान करिए।
ये हम हिन्दुस्तानियों की पहली जिम्मेदारी है। ज्ञान पर किसी का एकाधिकार नहीं है लेकिन हिंदी पर पहला अधिकार हमारा ही है। हम जब इसकी इज्जत करेंगे, तो ही दुनिया में इसका नाम बढ़ेगा। हिंदी बढ़ेगी तो हम भी बढ़ेंगे। हिंदी के इसी प्रभाव का नतीजा है है यूनाइटेड नेशंस का यह नया ट्विटर हैंडल, ऐसा मेरा मानना है। जय हिन्द, जय हिंदी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
साभार- http://www.samachar4media.com से