भोपाल। नई कृषि तकनीक के साथ किसानो के सशक्तिकरण किए जाने की आज आवश्यकता है। इससे किसानों में कृषि को लेकर एक वैज्ञानिक सोच विकसित होगी। यह विचार आज प्रसार भारती के ए.डी.जी. रंजन मुखर्जी ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में प्रारम्भ हुई दो दिवसीय मीडियाकर्मियों की विज्ञान एवं जैविक सुरक्षा का संचार विषयक कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किए।
श्री मुखर्जी ने कहा कि कृषि प्रयोगशालाओं में निकले निष्कर्षों को लैब टू लैंड पद्धति के अंतर्गत किसान समुदाय के बीच में लाना होगा। इससे किसान समुदाय लाभान्वित होगा एवं कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। जल संरक्षण एवं सिंचाई की आधुनिक तकनीकों से किसानों को अवगत कराने में भी मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। 62 राष्ट्रीय कृषि विश्वविद्यालय एवं 642 कृषि विज्ञान केन्द्र भारत में कृषि शोध पर कार्य कर रहे हैं। दूरदर्शन द्वारा प्रारम्भ किया गया किसान चैनल देश के किसानों को कृषि के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जानकारी का सम्प्रेषण करते हुए उन्हें कृषि क्षेत्र की नई वैज्ञानिक तकनीकों से अवगत कराएगा। किसान चैनल जनसामान्य की भाषा में कृषि सूचनाओं का सम्प्रेषण करेगा। आज रेडियो, टेलीविजन एवं जनसंचार के अन्य माध्यम कृषि, जैव तकनीक एवं जैविक सुरक्षा के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि मीडिया किसानों को आधुनिक कृषि तकनीक के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जानकारी देने का सबसे उपयुक्त माध्यम है। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति देश में कृषि क्षेत्र में अब तक का सबसे सफल प्रयोग रहा है। परंतु उसके कुछ दुष्परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं। वैज्ञानिक नवाचार एवं शोध इस तरह होना चाहिए कि वह समाज का अधिकाधिक कल्याण कर सके। रेडियो ने देश में चावल की हाइब्रिड किस्म का प्रचार-प्रसार किया, जिसे बाद में ‘'रेडियो राइस' के नाम से जाना गया। मीडिया का उद्देश्य जैविक सुरक्षा के सम्बन्ध में उन तथ्यों को सामने लाना है जो मानव कल्याण से जुड़े हैं। मीडिया का कार्य सच की खोज, सच का विश्लेषण एवं सच की प्रस्तुति होना चाहिए।
इस अवसर पर पी.आई.बी. के ए.डी.जी. डॉ. पी. जे. सुधाकर ने कहा कि आज सरकार जैविक सुरक्षा को लेकर अनेक कदम उठा रही है। जैविक सुरक्षा के सम्बन्ध में सभी नियमिकीय गतिविधियाँ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत संचालित की जा रही हैं। भारत की संसद द्वारा भी पर्यावरण, जैव विविधता एवं जैविक सुरक्षा को लेकर अनेक कानून बनाए गए हैं। इन सभी उपायों को लागू करने के पीछे मुख्य मकसद पर्यावरण संरक्षण एवं मानव कल्याण है।
कार्यशाला के प्रारम्भ में बोलते हुए भारतीय संचार संस्थान की प्रोफेसर डॉ. गीता बोमजाई ने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, कृषि, जैविक सुरक्षा, स्वास्थ, पोषण जैसे विषयों पर मीडियाकर्मियों के बीच वैज्ञानिक जानकारियों से सम्बन्धित विमर्श करना है। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विश्वविद्यालय की न्यू मीडिया विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पी.शशिकला एवं आभार प्रदर्शन भारतीय जनसंचार संस्थान के प्राध्यापक डॉ. आनंद प्रधान ने किया। कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञों के अतिरिक्त, मीडियाकर्मी एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय के शिक्षकगण उपस्थित थे।
डॉ. पवित्र श्रीवास्तव
निदेशक, जनसंपर्क प्रकोष्ठ