महावीर जयन्ती सत्संकल्पों को जागृत करने का पर्व है और सबसे बड़ा संकल्प है मनुष्य स्वयं को बदलने के लिये तत्पर हो। सरल नहीं है मनुष्य को बदलना। बहुत कठिन है नैतिक मूल्यों का विकास। बहुत-बहुत कठिन है आध्यात्मिक चेतना का रूपांतरण। और भी कठिन है अहिंसा की स्थापना। एक संकल्प हो कि हमारी अज्ञानता मिटे। हिंसा, युद्ध एवं भौतिकवादी युग में महावीर के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूच्र्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता, हिंसा और युद्ध जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है।
भगवान महावीर की जयन्ती मनाते हुए हमें महावीर बनने का संकल्प लेना होगा। उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे, इसलिये वे हमारे लिए आदर्शों की ऊंची मीनार बन गये। उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है।
भगवान महावीर की मूल शिक्षा है- ‘अहिंसा’। सबसे पहले ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का प्रयोग हिन्दुओं का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति के पावन ग्रंथ ‘महाभारत’ के अनुशासन पर्व में किया गया था। लेकिन इसको अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलवायी भगवान महावीर ने। भगवान महावीर ने अपनी वाणी से और अपने स्वयं के जीवन से इसे वह प्रतिष्ठा दिलाई कि अहिंसा के साथ भगवान महावीर का नाम ऐसा जुड़ गया कि दोनों को अलग कर ही नहीं सकते। अहिंसा का सीधा-साधा अर्थ करें तो वह होगा कि व्यावहारिक जीवन में हम किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं, किसी प्राणी को अपने स्वार्थ के लिए दुःख न दें। ‘आत्मानः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्’’ इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम उनसे अपने लिए अपेक्षा करते हैं। इतना ही नहीं सभी जीव-जन्तुओं के प्रति अर्थात् पूरे प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएं और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपभोग नहीं करें।
महावीर की आज ज्यादा जरूरत एवं प्रासंगिकता है। उनका अहिंसा दर्शन आज की जरूरत है। क्योंकि हमने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रकृति, पदार्थ, प्राणी और पर्यावरण के सहअस्तित्व को नकार दिया है। महावीर ने अनेकांत का चिन्तन दिया, हम अपने वैयक्तिक विचारों के आग्रह में बंधकर रह गये। महावीर ने अपरिग्रह का जीवन सूत्र दिया, हमने वैभव और विलासिता की दीवारों को ऊंची करने में जीवन खपा दिया। महावीर ने समता से जीने की सीख दी पर हम अनुकूलता के बीच संतुलन, धैर्य रखना भूल गये। महावीर ने असाम्प्रदायिक अखण्ड धर्म की व्याख्या की, हमने उसे जाति, सम्प्रदाय और पंथों में विभक्त कर दिया। महावीर ने अभय एवं मैत्री का सुरक्षा कवच पहनाया, हम प्रतिशोध और प्रतिस्पर्धा को ही राजमार्ग समझ बैठे। अगर हम जीवन को सफल एवं सार्थक करना चाहते हैं जो हमें महावीर को केवल पूजना ही नहीं है, बल्कि जीना होगा। महावीर को जीने का तात्पर्य होगा- एक आदर्श जीवनशैली को जीना।
आज मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है उन सबका समाधान महावीर के दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है। जरूरी है कि हम महावीर ने जो उपदेश दिये उन्हें जीवन और आचरण में उतारें। हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। महावीर वही व्यक्ति बन सकता है जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समता एवं संतुलन स्थापित रख सके, जो मौन की साधना और शरीर को तपाने के लिए तत्पर हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा न केवल अपना भाग्य बदलना जानता हो, बल्कि संपूर्ण मानवता के उज्ज्वल भविष्य की मनोकामना रखता हो।
महावीर के जीए गये वे सारे सत्य धर्म के व्याख्या सूत्र बने हैं जिन्हें उन्होंने ओढ़ा नहीं था, बल्कि साधना की गहराइयों में उतरकर आत्मचेतना के तल पर पाया था। उन्होंने जो पाया उसी से योग का सूत्र दिया है, ध्यान का सूत्र दिया है। ध्यान करने का मतलब है अपनी शक्ति से परिचित होना, अपनी क्षमता से परिचित होना, अपना सृजनात्मक निर्माण करना, अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठापित करना। जो आदमी अपने भीतर गहराई से नहीं देखता, वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं होता। जिसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता, अपनी शक्ति को नहीं जानता, उसकी सहायता भगवान भी नहीं कर सकता और कोई देवता भी नहीं कर सकता। अगर काम करने की उपयोगिता है और क्षमता भी है तो वह शक्ति सृजनात्मक हो जाती है और किसी को सताने की, मारने की उपयोगिता है तो वह शक्ति ध्वंसात्मक हो जाती है। इसलिये महावीर का संपूर्ण जीवन स्व और पर के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। उनके मन में संपूर्ण प्राणिमात्र के प्रति सहअस्तित्व की भावना थी।
भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। उनके उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। वे चिन्मय दीपक हैं, जो अज्ञान रूपी अंधकार को हरता है। वे सचमुच प्रकाश के तेजस्वी पंुज और सार्वभौम धर्म के प्रणेता हैं। वे इस सृष्टि के मानव-मन के दुःख-विमोचक हैं। पदार्थ के अभाव से उत्पन्न दुःख को सद्भाव से मिटाया जा सकता है, श्रम से मिटाया जा सकता है किंतु पदार्थ की आसक्ति से उत्पन्न दुख को कैसे मिटाया जाए? इसके लिए महावीर के दर्शन की अत्यंत उपादेयता है।
हम महावीर जयन्ती मनाते हुए अपने प्रति मंगलभावना करें कि मेरी सृजनात्मक-आध्यात्मिक शक्ति जागे और मेरी ध्वंसात्मक शक्ति समाप्त हो, यह मूच्र्छा का चक्र टूटे। यदि इस तरह की भावना-निर्माण में हम सफल हो सकें तो महावीर को हम अपने आसपास पायेंगे। महावीर के अहिंसा दर्शन को विश्वव्यापी बनाने के उद्देश्य को लेकर अहिंसा विश्व भारती दुनिया की सृजनात्मक शक्तियों को संगठित करने के लिये प्रयासरत है।
व्यक्ति, समाज या राष्ट्र-सबकी शांति, सुरक्षा और सुदृढ़ता का पहला साधन है आध्यात्मिक चेतना का जागरण और अहिंसा की स्थापना। अस्त्र-शस्त्रों को सुरक्षा का विश्वसनीय साधन नहीं माना जा सकता। आज कोई भी राष्ट्र अध्यात्म की दृष्टि से मजबूत नहीं है इसलिए वह बहुत शस्त्र-साधन-संपन्न होकर भी पराजित है। हमें महावीर जयन्ती मनाते हुए नये विश्व का निर्माण करना है, क्योंकि लेखिका एल. एम मॉन्टगोमेरी के शब्दों में, ‘क्या यह सोचना बेहतर नहीं है कि आने वाला कल, एक नया दिन है, जिसमें फिलहाल कोई गलती नहीं हुई है। नया चिंतन, नई कल्पना, नया कार्य-यह अहिंसा विश्व भारती की नये मानव एवं नये विश्व निर्माण की आधारशीला है। कभी बनी-बनाई लकीर पर चलकर बड़े लक्ष्य हासिल नहीं होते, जीवन में नए-नए रास्ते बनाने की जरूरत है। जो पगडंडियां हैं, उन्हें राजमार्ग में तब्दील करना होगा। महावीर ने इसीलिये हम जैसों के लिये जागने की दस्तक दी है। यूं तो हम हर रोज जागते हैं मगर मन सोया रहता है और सोया मन बुराइयों से लड़ नहीं सकता। महावीर ने बाहरी लड़ाई को मूल्य नहीं दिया, उन्होंने स्वयं की सुरक्षा में आत्म-युद्ध जरूरी बतलाया।
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