Thursday, May 9, 2024
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“अभिव्यक्त संवाद”: चिंतन की दिशा प्रदान करती पुस्तक

डॉ.वर्षा नालमे द्वारा लिखित पुस्तक ” अभिव्यक्त संवाद” लेखिका की 1989 -90 से अब तक के काल खंड में लिखे गए लेखों, कहानी,कविता आदि का मात्र एक संग्रह ही नहीं है वरन पाठक को चिंतन की एक दिशा भी प्रदान करती है। पुस्तक के लेख एतिहासिक दृष्टि से शोधपूर्ण और प्रामाणिक तथ्यों पर केंद्रित हैं और दिशा बोधक हैं। कहानियां और कविताएं सामाजिक परिवेश के साथ सामयिक प्रतीत होती हैं।

183 पृष्ट की पुस्तक में लेखिका ने अपने जीवन यात्रा के लेखन को सात खंडों में विभक्त किया गया है। कला और संस्कृति खंड में मालवा क्षेत्र में मांडू की रानी रूपमती पर गहन शोध कर और चिंतन परक लेख, लोकगीतों के माधुर्य और कला पक्ष के साथ सांझी पर्व का उद्भव, विस्तार और सतत प्रचलन, उज्जैन में संदीपनी गुरुकुल की गौरवशाली परंपरा, मराठा शक्ति के शासक राणोजी सिंधिया की स्मृति में शुजालपुर स्थित छत्री का शिल्प वेशिष्ठ्य एवं परमार कालीन विक्रमपुर का वृद्ध महाकालेश्वर मंदिर के उद्धार के अभिलेखों का गूढ़ अध्ययन कर जानकारी दी गई है। संतों का जीवन कैसा था, उनकी क्या विचारधारा थी इस संदर्भ में राजस्थान के अजमेर में संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के साथ उनके चिंतन और जीवन पर प्रकाश डाला है। साथ ही राजस्थान के रैबारी समाज की सांस्कृतिक परम्पराओं को बखूबी उजागर किया है।

पुस्तक के शैक्षिक और सामाजिक खंड में अपने चिंतन से जीवन में पॉजिटिव होने,किशोरों की समस्या में हमारे दायित्व, शिक्षा का मूल्यांकन एवं प्रतिपुष्टि, नारी और समाज में सतत शिक्षा का महत्व, दीपावली पर्व के संदर्भ और मूल्य के साथ – साथ अन्य रचनात्मक उद्देश्यपूर्ण रचनाएं शामिल हैं। अंतर्मन से अंधेरा कैसे दूर हो, आस्तिकता और नास्तिकता के मध्य उलझा युवा और भारतीय राजनीति में नैतिक मूल्यों का हास -पतन जिम्मेदार कौन जैसे विषय परिचर्चा खंड में विचारणीय हैं। जायका खंड में अजमेर की विख्यात मिठाई “सोहन हलवा” पर बहुत ही प्रामाणिक जानकारी दी है।

कहानी खंड में खामोशी, इति, बंटी बड़ा हो रहा है, क्वारेंटिन, एक थी रिजू, वापसी और फलसफा जिंदगी का में और लघुकथा खंड में गिद्ध, कवच, समाज बदल रहा है और अकड़ में निकट से महसूस किए गए समाज और परिवेश को अपने दृष्टिकोण और चिंतन के साथ अभिव्यक्त किया है। कविता खंड में लेखिका की अपनी अनुभूत कविताएं बचपन, वो औरत है, पलाश, इम्तहान और चाह पूर्ण प्रासंगिक हैं। पुस्तक के मार्गदर्शक ललित शर्मा, इतिहासकार, झालावाड़ ने भूमिका लिखी है जो पुस्तक पढ़ने के लिए पाठकों को प्रेरित करती है।

लोक संस्कृति के रेखा चित्रों से सजी पुस्तक का प्रकाशन साहित्यकार जयपुर द्वारा किया गया है। आवरण पृष्ठ आकर्षक बना है। पुस्तक का मूल्य 350 रुपए है।

लेखिका परिचय
डॉ.वर्षा नालमे का जन्म मध्य प्रदेश ( मालवा ) के इच्छावर ( सीहोर ) में हुआ। आपने जीव विज्ञान से एम. एससी., दर्शन शास्त्र में एमए,बीएड, एमएड, एलएलबी और शिक्षा में पीएच. डी. की डिग्री प्राप्त की और आपको 22 वर्षों का अध्यापन,शिक्षक प्रशिक्षण और प्रशासनिक अनुभव है। आपने अब तक एम एड के 20 विद्यार्थियों को लघु शोध में निर्देशन किया है। आपने कई शोध पत्रों के लेखन और सेमिनार्स में वाचन किया है। आपने शाजापुर जिला – पर्यटन और इतिहास, आगर जिला – इतिहास और पर्यटन, अजमेर जिले का कला वैभव, ग्लोबलाइजेशन और शिक्षा, सतत् विकास और शिक्षा आदि पुस्तकों का संपादन किया है। दी कोर ( दिल्ली ) और कला समय ( भोपाल ) पत्रिकाओं के सहयोगी संपादन के रूप में भी कार्य किया है। आपको लायंस क्लब अजमेर द्वारा “शिक्षा प्रोत्साहन”, लोक साहित्य परिषद शाजापुर द्वारा ” शब्द शिखर सम्मान”, सनातन प्रकाशन एवं कलम प्रिय संस्थान द्वारा ” साहित्य विलक्षण सम्मान” तथा सामर्थ्य सेवा संस्थान झालावाड़ द्वारा ” ग्लोबल सामर्थ्य लोक संस्कृति अवार्ड” से सम्मानित किया जा चुका है। लेखिका वर्तमान में अजमेर में सेंट्रल एकेडमी टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में प्राचार्य के रूप में शिक्षा में सतत् योगदान कर रही हैं।

समीक्षक : डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
9928076040

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