Sunday, April 28, 2024
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गणपति बप्पा के साथ मौर्या कैसे लगा

गणपति बप्पा मोरया यह उदघोष बड़ा ही सर्वसुलभ एवं जन-प्रचलित है… लेकिन अधिकांश लोगों को इसमें मोरया (विकृत होकर-मोरिया, मोर्या) शब्द का अर्थ मालूम नहीं है। मोरया गोसावी चौदहवीं शताब्दी के संत थे। वे भगवान गणेश के एकनिष्ठ एवं अनन्य भक्त थे। गोसावी का जन्म पुणे के पास मोरगांव में हुआ था। उन्होंने मोरगांव में ही तपस्या करके मोरेश्वर (भगवान गणेश) की पूजा की थी।

मोरया गोसावी के पुत्र चिंतामणि को भी गणेश का अवतार माना जाता है। मोरया गोसावी ने संजीवन समाधि ग्रहण की… चिंचवड में आज भी मोरया गोसावी की समाधि एवं उनके द्वारा स्थापित गणेश मंदिर है। उन्हें अष्टविनायक (महाराष्ट्र के प्रसिद्ध आठ गणेश मंदिर) यात्रा शुरू करने का का श्रेय दिया जाता है। ऐसे ही महान एवं परम गणेश भक्त की अदभुत भक्ति-समर्पण एवं तपस्या के कारण उनका नाम गणपति बप्पा से एकाकार होकर गणपति बप्पा मोरया कहलाने लगा… मोरया मोरया… गणपति बप्पा मोरया…

इसलिए पड़ा मोरगांव नाम
आबादी को मोरगांव नाम इसलिए मिला क्योंकि समूचा क्षेत्र मोरों से समृद्ध था। यहां गणेश की सिद्धप्रतिमा थी जिसे मयूरेश्वर कहा जाता है। इसके अलावा सात अन्य स्थान भी थे जहां की गणेश-प्रतिमाओं की पूजा होती थी। थेऊर, सिद्धटेक, रांजणगांव, ओझर, लेण्याद्रि, महड़ और पाली अष्टविनायक यात्रा। अष्ट विनायक यात्रा की शुरुआत ही मोरगांव के मयूरेश्वर गणेश से होती है, इसलिए भी मोरया नाम का जयकारा प्रथमेश गणेश के प्रति होना ज्यादा तार्किक लगता है। मयूरासन पर विराजित गणेश की अनेक प्रतिमाएं उन्हें ही मोरेश्वर और प्रकारांतर से मोरया सिद्ध करती हैं।

मराठियों की प्रसिद्ध गणपति वंदना सुखकर्ता-दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची.. की रचना संत कवि समर्थ रामदास ने चिंचवड़ के इसी सिद्धक्षेत्र में मोरया गोसावी के सानिध्य में की थी।

गणेश का मयूरेश्वर अवतार
मोरगांव में गणेश का मयूरेश्वर अवतार ही है। इसी वजह से इन्हें मराठी में मोरेश्वर भी कहा जाता है। कहते हैं कि वामनभट और पार्वती को मयूरेश्वर की आराधना से पुत्र प्राप्ति हुई। परंपरानुसार, उन्होंने आराध्य के नाम पर ही संतान का नाम मोरया रख दिया। मोरया भी बचपन से गणेशभक्त हुए।

गणेश उत्सव की ऐसे हुई शुरुआत
महाराष्ट्र में सर्वप्रथम लोकमान्य तिलक ने हिंदुओं को एकत्र करने के उद्देश्य से पुणे में वर्ष 1893 में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की। तब यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए।

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