Monday, June 17, 2024
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ग्रामीण पत्रकारिता पर संगोष्ठी

आगामी 21 दिसंबर 2013 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला पंचायत सभागार में नया मीडिया एवं ग्रामीण पत्रकारिता विषयक संगोष्ठी का आयोजन नया मीडिया मंच द्वारा किया जा रहा है. उक्त कार्यक्रम में नया मीडिया के विस्तार एवं ग्रामीण अंचलों में इसकी जरुरत पर तमाम राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों का वक्तव्य होना है.

उक्त आयोजन में दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्वं संपादक श्री शंभूनाथ शुक्ल माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रोनिक मीडिया विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ श्रीकांत सिंह संपादक श्री पंकज चतुर्वेदी वरिष्ठ स्तंभकार एवं टीवी पत्रकार श्री उमेश चतुर्वेदी सहित संपादक श्री पंकज झा श्री यशवंत सिंह श्रीमती अलका सिंह (रेडियो पत्रकार) श्री संजीव सिन्हा आदि वक्ता उपस्थित रहेंगे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जिलाधिकारी देवरिया एवं आईपीएस श्री अमिताभ ठाकुर उपस्थित होंगे.

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार आचार्य रामदेव शुक्ल करेंगे. उक्त कार्यक्रम के माध्यम से नया मीडिया एवं ग्रामीण पत्रकारिता की तमाम संभावनाओं को टटोलने का प्रयास किया जाएगा. कार्यक्रम के दौरान ही पत्रकारिता एवं अध्यापन के क्षेत्र में नया मीडिया पर अपने उल्लेखनीय उपस्थिति के लिए देवरिया की माटी से आने वाले पाँच गणमान्यों को “मोती बी.ए नया मीडिया सम्मान“ से सम्मानित किया जाएगा. इसी क्रम में देवरिया के डॉ सौरभ मालवीय की नया मीडिया पर सशक्त उपस्थिति को देखते हुए कार्यक्रम के सह-संयोजक शिवानन्द द्विवेदी सहर ने उक्त पुरस्कार की सूचना दी।

संपर्क
डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशन अधिकारी
माखनलाल चतुर्वेदी
राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल  
मो. +919907890614

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नक्सलियों ने पत्रकार की हत्या की

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने वरिष्ठ पत्रकार साई रेड्डी की हत्या कर दी है। साई रेड्डी के परिजनों का आरोप है कि उनकी हत्या करने वाले माओवादी हैं। 50 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार साई रेड्डी छत्तीसगढ़ से प्रकाशित देशबंधु अखबार से जुड़े हुए थे।   पुलिस के अनुसार शुक्रवार की दोपहर साई रेड्डी पर बासागुड़ा गांव के पास संदिग्ध माओवादियों ने हमला किया था। हमलावरों ने साई रेड्डी की गर्दन पर धारदार हथियारों से वार किया था।  

 जिले के एसपी प्रशांत अग्रवाल ने साई रेड्डी की हत्या में माओवादियों का हाथ होने की आशंका जताई है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से हमला किया गया है, उससे आरंभिक तौर पर माओवादियों के शामिल होने की बात सामने आई है। लेकिन जांच के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।   एक बयान में इस मामलें को लेकर बीजापुर पत्रकारों ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है और एक दिन के लिए बस्तर बंद का एलान भी किया है। बस्तर पत्रकार संघ के प्रेसिडेंट एस करीमुद्दीन ने कहा कि हम इस घटना की निंदा करते हैं और जल्द ही कार्रवाई करने की हम अपनी योजना की घोषणा करेंगे।   इससे पहले माओवादी कम से कम दो बार उनके घर पर हमला करके उनके घर को आग लगा चुके थे।

 एस करीमुद्दीन ने  यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने माओंवादियों से सांठ-गांठ का आरोप लगाकर उनके खिलाफ छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की थी। वे इस दौरान दो सालों तक न्यायिक हिरासत में भी रहे। पुलिस को कोई पुख्ता सबूत न मिलने पर उन्हें छोड़ दिया था।   इससे पहले इस वर्ष फरवरी में भी माओवादियों ने सुकमा में एक पत्रकार नेमिचंद जैन की हत्या कर दी थी। जैन पहला पत्रकार था जो बस्तर में माओंवादियों द्वारा मारा गया था।

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वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा मेडिकल कैंप का आयोजन

मुंबई के वनवासी कल्याण आश्रम के श्री सुशील जाजू के प्रयासों से मुंबई क मालड की समाज सेवी संस्था हेतु व डॉ. श्याम अग्रवाल द्वारा संचालित संजीवनी चंद्रभाल अगरवाल चैरिटेबल ट्रस्ट मलाड द्वार मुंबई से 150 किलोमीटर दूर स्थित वनवासी क्षेत्र विलशेत, सोमटा (विक्रमगढ़) में वनवासियों के लिए मेडिकल कैंप का आयोजन किया गया।

रविवार, 8 दिसंबर को जब मुंबई सहित देश भर के लोग विधानसभा चुनावों के परिणामों के लिए टीवी के सामने चिपके बैठे थे ऐसे में डॉ. श्याम अग्रवाल अपने सहयोगी डॉक्टरों  शिल्पी जयपुरिया ( नेत्र विशेषज्ञ),  डॉ. नेहा गोयल (स्किन स्पेशलिस्ट) डॉ. संजय शुक्ला (संजीवनी हॉस्पिटल)  के साथ सुबह 6 बजे ग्राम विलशेत के लिए रवाना हो गए।   मुंबई से 2 घंटे की यात्रा के बाद गाँव विलशेत में आयोजित इस कैंप में 150 से ज्यादा मरीजों का परीक्षण किया गया। जिसमें नैत्र रोग, त्वचा रोग और खासकर महिलाओं की कुपोषण व अन्य बीमारियों का परीक्षण प्रमुख था। मौके पर ही मरीजों को विटामिन की दवाईयों से लेकर अन्य आवश्यक दवाईयाँ भी निःशुल्क दी गई।  
 

कुछ मरीजों को, जिन्हें पेट की अपेंडिक्स की या या आँखें के कैटरेक्ट की गंभीर बीमारी पाई गई उन्हें जनवरी माह में मुंबई लाकर उनका ऑप्रेशन किया जाएगा।   डॉ. श्याम अग्रवाल ने कहा कि हम विलशेत गाँव में हर रविवार को एक डॉक्टर भेजेंगे ताकि इन मरीजों का नियमित परीक्षण हो सके और उन्हें आवश्यक दवाईयाँ चश्में आदि दिए जा सकें।

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माधुरी दीक्षित को देखिये डांस इंडिया डांस में 14 दिसंबर को

हिंदी फिल्मों में अपने डांस के लिए मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित लोकप्रिय डांस रियलिटी शो ‘डांस इंडिया डांस’ के सेट पर अपनी पहली उपस्थिति दर्ज कराएंगी और वहां अपनी आने वाली फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ का प्रचार करेंगी।

 माधुरी ‘झलक दिखला जा’ की निर्णायकों में से रही हैं और ‘डांस इंडिया डांस’ के सेट पर उनकी उपस्थिति ने निर्णायकों, मेजबानों और प्रतिभागियों के भीतर जोरदार रोमांच पैदा कर दिया है, और वे इस बात की योजना बना रहे हैं कि वे माधुरी से क्या कहेंगे और वे उनके सामने कौन-सा डांस पेश करेंगे।

‘आ जा नचले’ में माधुरी की नृत्य निर्देशक रह चुकीं और ‘डांस इंडिया डांस’ की निर्णायक श्रुति मर्चेंट ने कहा कि माधुरी के साथ काम करना किसी भी नृत्य निर्देशक के कंधे पर भारी जिम्मेदारी होती है।

माधुरी के साथ अपने बीते अनुभव को याद करते हुए मास्टर फिरोज खान ने कहा कि माधुरी और मैंने ‘के सेरा सेरा’ में एकसाथ डांस किया था। उस समय में पृष्ठभूमि में डांस करने वालों में था। वास्तव में गीत के एक प्रमुख हिस्से में माधुरी मेरे चेहरे पर पंच मारती हैं।

युवा प्रतिभागी स्वराली (21) बहुत रोमांचित लेकिन नर्वस भी है। ‘डांस इंडिया डांस’ की यह कड़ी 14 दिसंबर को जी टीवी पर प्रसारित होगी।

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राजस्थान में राज घरानों की बहुओं ने बाजी मारी

राजस्थान के  विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राजघरानों की महिलाओं को टिकट बांटे थे। राजपरिवारो से जुड़े भाजपा के छह में से पांच उम्मीदवार विजयी रहे। वहीं एक बागी ने भी जीत हासिल की। कांग्रेस ने राजघरानों से जुड़े केवल दो नेताओं को ही टिकट दिया, उसके लिए नतीजा 50-50 रहा।   भाजपा की वसुंधरा राजे खुद  मध्यप्रदेश के ग्वालियर और धौलपुर राज घराने से जुड़ी हैं। वे  झालरापाटन विधानसभा सीट से लगातार तीसरी बार विजयी हुई हैं।

सिद्धी कुमारी-बीकानेर राजपरिवार से हैं । बीकानेर पूर्व सीट से लगातार दूसरी बार जीती। 2008 में भाजपा में शामिल हुई। उनके दादा करणी सिंह सांसद रहे।  दिया कुमारी- जयपुर राजपरिवार। सवाई माधोपुर सीट से डॉ.किरोड़ी मीणा को शिकस्त दी। वे अक्टूबर 2013 में भाजपा में शामिल हुई थी। उनकी दादी गायत्री देवी जयपुर से सांसद रही। पिता भवानी सिंह ने जयपुर से चुनाव लड़ा।   मांडलगढ़ ठिकाना। की कीर्ति कुमारी ने भीलवाड़ा की मांडलगढ़ सीट से जीत दर्ज करने में सफलता प्राप्त की। वे 2008 में चुनाव हार गई थी। 

राव राजेन्द्र सिंह ने शाहपुरा सीट से गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल के बेटे आलोक बेनीवाल को दी पटखनी, लगातार तीसरी बार विजेता रहे । कुमारी-करौली घराना की रानी रोहिणी करौली से कांग्रेस के दर्शन सिंह से हार गई। 2008 में भाजपा से जुड़ी और करौली से जीत दर्ज की। ससुर बृजेन्द्रपाल सिंह भी तीन बार विधायक रहे। 

"बागी" ठिकानेदार रणधीर सिंह भीण्डर ने भाजपा से टिकट कटने के बाद वल्लभनगर सीट से बागी होकर लड़ा चुनाव, कांग्रेस के मौजूदा विधायक और कांग्रेस के दिवंगत नेता गुलाब सिंह शक्तावत के पुत्र गजेन्द्र सिंह शक्तावत को मात दी। 2003 में विधायक रहे लेकिन 2008 में हार गए।

विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा. प्रवीण भाई तोगड़िया ने सोमवार को यहां कहा कि हिंदू धर्म सनातन धर्म है। भारत में सौ करोड़ व दुनिया में एक सौ दस करोड़ हिंदू हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि हिंदू नेता ही सत्ता के लिए हिंदुओं को गुलाम बनाने पर आमादा हैं। खुद को बचाना है तो तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों की नकेल कसनी होगी, नहीं तो विश्व के अन्य देशों की तरह हिंदुस्तान भी हिंदुओं के हाथ से निकल जाएगा।

वह यहां धर्म संस्कृति रक्षा निधि समर्पण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म सबसे प्रचीन है। साथ ही उन्होंने आगाह किया कि खुद को बचाना है तो धार्मिक होने के साथ ही धर्म की रक्षा के लिए सड़क पर उतरना होगा। आज सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए हिंदुओं का दमन करने की योजनाएं बनाती हैं। नजीर के तौर पर उन्होंने मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के लिए प्रदेश सरकार द्वारा घोषित सहायता राशि व मुस्लिम युवाओं के रोजगार के लिए दिए गए बजट का हवाला देते हुए पूछा क्या हिंदुस्तान में हिंदू होना अपराध है। सवाल किया कि ऐसा नहीं तो हिंदुओं बेरोजगारों के लिए यह व्यवस्था क्यों नहीं?

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मणिशंकर अय्यर बोले, मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बनाकर ही गल्ती की

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर ही सीधा हमला बोल दिया है । अय्यर ने कहा कि मनमोहन को 2009 में फिर से पीएम बनाना ठीक निर्णय नहीं था।  अय्यर ने कहा कि उन्होंने पहले भी मनमोहन को पीएम बनाने पर सवाल उठाए थे लेकिन तब किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। अय्यर ने पार्टी के पुनर्गठन की मांग की तथा कहा कि कांग्रेस को विपक्ष में बैठकर आत्मविश्लेषण करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित व अशोक गहलोत भी पार्टी पर निशाना साध चुके हैं। शीला ने विधानसभा चुनाव में हार के लिए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था। वहीं गहलोत हार का ठीकरा केंद्र पर फोड़ चुके हैं।

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म. प्र. के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने लगातार 6 चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया

भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने महू विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार अंतरसिंह दरबार को 12,216 वोट से परास्त कर दिया। इसके साथ ही, उन्होंने लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीतकर अजेय रहने का रिकॉर्ड कायम किया। बेहद कश्मकश वाले चुनावी मुकाबले में विजयवर्गीय ने 89,848 वोट हासिल किए, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वन्द्वी दरबार को 77,632 मतों से संतोष करना पड़ा। 2008 के विधानसभा चुनावों में भी विजयवर्गीय और दरबार महू क्षेत्र में आमने-सामने थे। इन चुनावों में विजयवर्गीय ने दरबार को 9,791 मतों से पटखनी दी थी।

इससे पहले, विजयवर्गीय इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से 1990,1993,1998 और 2003 में लगातार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। वे अपने तीन दशक लंबे सियासी करियर में अब तक एक भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे हैं। विजयवर्गीय इस बार विधानसभा चुनावों में महू की जगह इंदौर के विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-3 से मैदान में उतरना चाह रहे थे, लेकिन भाजपा आलाकमान ने उन्हें दोबारा महू से चुनाव लड़ने का आदेश दिया था।

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दिल्ली में भाजपा में दागियों की संख्या में इजाफा

दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम आ चुका है। इस बार किसी दल को भले ही बहुमत न मिला हो लेकिन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले विधायकों की संख्या में सात फीसदी की कमी आई है। बीते चुनाव में 43 फीसदी (29 संख्या) विधायक विधानसभा में पहुंचे थे। यह आंकड़ा इस बार 36 फीसदी (25 संख्या) तक सिमट गया है।

ये दावा किया है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा जारी रिपोर्ट में।  यह रिपोर्ट उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए शपथ-पत्रों के आधार पर तैयार की गई है। बहरहाल, दिलचस्प यह है कि भाजपा को सबसे अधिक सीटें मिली हैं और इसी दल के सबसे अधिक विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 70 विधायकों में से भाजपा को 31 सीटें मिली हैं। इनमें से 17 विधायक आपराधिक मामलों में लिप्त हैं।

भाजपा के दागी विधायकों में बढ़ोत्तरी हुई है: 2008 के चुनाव में इस दल के 11 दागी विधायक चुने गए थे। इस बार 17 चुने गए हैं। वहीं दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी आम आदमी पार्टी के तीन विधायकों पर किसी न किसी तरह के आपराधिक मामले दर्ज हैं। उधर, कांग्रेस के सिर्फ दो ही ऐसे विधायक हैं जो ऐसे आपराधिक मामलों में घिरे हुए हैं। इसके अलावा भारतीय राष्ट्रीय लोकदल और जनता दल यूनाइटेड के एक-एक उम्मीदवार विधायक चुने गए हैं। दोनों ही दलों के ये विधायक आपराधिक पृष्ठभूमि से हैं।

गंभीर आपराधिक मामले वाले बढ़े: 2008 के विधानसभा चुनाव में भले ही आपराधिक मामले वाले विधायक अधिक चुने गए हों मगर उनमें हत्या का प्रयास, डकैती व महिलाओं पर अत्याचार जैसे गंभीर आपराधिक वाले विधायक कम थे। उस समय सिर्फ 70 विधायकों में सिर्फ छह ही ऐसे थे। लेकिन 2013 के चुनाव में चुनकर आए ऐसे विधायकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। अब 09 की जगह संख्या बढ़कर 20 पर आ पहुंची है।

 94 गंभीर अपराध वाले उम्मीदवारों में से 74 को नकारा: रिपोर्ट बताती है कि जनता पहले से ज्यादा जागरूक हुई है। यही वजह है कि दिल्ली ने विभिन्न दलों के गंभीर आपराधिक मामलों वाले 94 उम्मीदवारों में से 74 को नहीं चुना। इसके अलावा जिन पर गंभीर मामले दर्ज हैं उनमें ओखला से चुने गए कांग्रेस के  आसिफ मोहम्मद खान हैं। उन्होंने शपथ-पत्र में खुद पर हत्या का प्रयास का मामला घोषित किया हुआ है।

भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हर्ष वर्धन पर भी मामला: भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार डॉ.  हर्षवर्धन कृष्णा नगर से चुने गए हैं। उन पर आईपीसी की धारा 509 के तहत महिला के साथ अत्याचार का गंभीर आपारधिक मामला है।

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अनुच्छेद 370 ने करोड़ो रुपये डुबाए बैंकों के

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी द्वारा अनुच्छेद 370 में फिर से विचार करने का बयान देकर एक नई बहस छेड़ दी है। जबकि इस एक्ट का असर रियासत के बैंकों पर भी पड़ रहा है। बैंकों से करोड़ों रुपये ऋण लेकर डकारने वालों के खिलाफ बैंकों को सरफासी एक्ट के तहत कार्रवाई करने में समस्याएं आ रही हैं।

जानकारों की माने तो ऋण वसूली में कानूनी कार्रवाई के बावजूद सरफासी एक्ट की कमी के कारण अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर के बैंक बंधक में रखी संपत्ति की धड़ल्ले से बिक्री नहीं कर पाते। ऋण लेने वाला व्यक्ति इसी का लाभ उठाकर अपनी संपत्ति की नीलामी होने से पहले स्टे ले लेता है।

जम्मू प्रोविंस बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी अरुण गुप्ता कहते हैं, ‘रियासत में सरफासी एक्ट को लागू करने से पहले इसे विधानसभा में पारित करना जरूरी है। स्टेट लेवल बैंक कमेटी की मीटिंग में सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाया गया है। लेकिन अभी तक इस पर कोई प्रयास नहीं होने के कारण बैंकों का गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि सरकार इसे घटाने के लिए बैंकों पर दबाव डाल रही है।’

बैंकों से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि बैंकों का एनपीए घटाने के लिए अन्य राज्यों की तरह रियासत में भी लोक अदालतें लगाईं गईं। इस दौरान दूसरे राज्यों की तरह यहां ऋणधारकों का कम झुकाव देखने को मिला। जबकि बैंकों ने मूल राशि पर लगे ब्याज में से 50-75 फीसदी तक छूट देने की भी घोषणा की। इसका मुख्य कारण सरफासी एक्ट लागू न होना है।

पांच दिसंबर को पूरे देश भर में इसी संदर्भ में आल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन की ओर से ‘आल इंडिया डिमांड डे’ मनाया गया, जिसमें देशभर के बड़े डिफाल्टरों की सूची भी जारी की गई। अरुण गुप्ता कहते हैं कि रियासत में भी एक करोड़ से ऊपर बकाए वाले लोगों की संख्या सैकड़ों में है। सरकार यदि रियासत के बैंकों का एनपीए घटना चाहती है तो उसे अपने स्तर पर इस संबंध में कार्रवाई करनी होगी।

प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों व प्रतिभूति हित अधिनियम 2002 (सरफासी एक्ट) बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को ऋण चुकाने में असफल रहने वाले लोगों के संस्थानों के गुण (आवासीय और वाणिज्यिक) नीलाम करने की अनुमति देता है। इस एक्ट को अपनाकर बैंक और वित्तीय संस्थानों को एनपीए कम करने में सक्षम बनाता है।

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कमजोर कांग्रेस और मोदी की मजबूती का कमाल

कांग्रेस हार गई। इस हार के बाद बहुत लोग बोलते लगे हैं। शरद पवार भी बोले। पवार सही बोले। किसी भी देश को नेता तो मजबूत ही चाहिए। क्या गलत कहा। मजबूती नहीं थी, इसीलिए राजस्थान में कांग्रेस अपनी ऐतिहासिक हार भुगत रही है। एक सौ उन्तीस साल पुरानी कांग्रेस राजस्थान में सिर्फ 21 सीटों पर सिमट कर रह गई  है। वैसे, देखा जाए तो ये विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों प थे ही नहीं। नरेंद्र मोदी ने अपने पराक्रम से विधानसभा के इन राज्यों के चुनावों को भी किसी राष्ट्रीय चुनाव की तस्वीर बख्श दी।

हकीकत में यह सत्ता का सेमी फाइनल था। फिर भी   राजस्थान के इतिहास में यह पहला मौका है, जब कांग्रेस को इस तरह की शर्मनाक और सबसे खराब स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। देश में जनता पार्टी के उदय के मौके पर 1977 में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा था, उस  दौरान भी राजस्थान में कांग्रेस को कुल 41 सीटें मिली थी। लेकिन इस बार उससे भी 20 सीटें कम मिलना कांग्रेस के सबसे बुरे समय की तस्वीर है। देने को इस दुर्गति का सारा दोष सीएम अशोक गहलोत को दिया जा रहा है। मुखिया होने के नाते जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों उन्हीं की है। लेकिन अकेले गहलोत क्या करते। इस बार पूरे प्रदेश में कोई था ही नहीं, जो कांग्रेस के समूचे चुनाव अभियान को संचालित करता। कांग्रेस ने बीजेपी की तरह थोड़ी सी भी एकता दिखाई होती तो लाख सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद कांग्रेस की कम से कम ऐसी दुर्गति नहीं होती, जो हुई है।

जो लोग मान रहे हैं कि सरकार में रहने के कारण सामान्य तौर पर जो कांग्रेस विरोधी वातावरण बनता है, उसकी वजह से कांग्रेस हारी। लेकिन ऐसा तो नहीं है कि गहलोत दिल्ली की शीला दीक्षित की तरह 15 साल से राज कर रहे थे। गहलोत तो पिछली बार भी अल्पमत को बहुमत में बदलने का करिश्मा करके पांच साल से सरकार में थे। जुगाड़ की जादूगरी करके भी उनने सरकार कोई बहुत बुरी नहीं चलाई। फिर ऐसा भी नहीं है कि अशोक गहलोत सरकार ने देश की किसी बी सरकार के मुकाबले खराब काम किया। और ऐसा भी नहीं है कि पेंशन, स्कूल फीस, मुफ्त दवा,  मुफ्त डाक्टरी जांच, बुजुर्ग सम्मान, तीर्थ यात्रा, जननी सुरक्षा सहित कई अन्य सरकारी योजनाओं से आम जनता को फायदा नहीं हुआ। फायदा हुआ, लेकिन पता नहीं क्यों काग्रेस को यह समझ में नहीं आया कि बाहर नरेंद्र मोदी जो माहौल बना रहे हैं, उससे सत्ता विरोधी लहर अचानक लहलहाने लगी है। और अंत तक कांग्रेस मोदी की उस लहर को ही सिरे से खारिज करने की बेवकूफी करती रही।  

देश में बेतहाशा बढ़ती महंगाई के कारण केंद्र सरकार के प्रति और खासकर कांग्रेस के खिलाफ लोगों में जबरदस्त गुस्सा था। बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने इस गुस्से को समझा, उसे हवा दी और उसे धधकती ज्वाला में परिवर्तित किया। जबकि कांग्रेस ने तो उसे समझने की ही कोशिश नहीं की। तो फिर वह उस ज्वाला का शमन करने के प्रयास क्या करती। यह एक खास किस्म का ज्वार है, जो अगले लोकसभा चुनावों तक जिंदा रखे रहने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस है कि हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सोनिया गांधी ने चुनाव के नतीजों पर फट से कह तो दिया है कि वे हताश है, और युवराज राहुल गांधी ने भी कह दिया है कि हमें ‘आप’ से सीखने की जरूरत है। लेकिन आखिर कब तक सीखते ही रहेंगे, यह भी खयाल में रखना होगा। जहाज उड़ाने के अति महत्वपूर्ण अवसर पर भी सीखने की ललक नासमझी से ज्यादा कुछ नहीं होती।  

इधर, हारे हुए सीएम अशोक गहलोत अब भले ही मन को समझाने के लिए यह कहते रहें कि वसुंधरा राजे ने झूठा प्रचार किया और अफवाहें फैलाई, इसलिए वे जीती। लेकिन इतना तो वे भी जानते हैं कि झूठ और अफवाहों पर इतने डरावने अंदाज में चुनाव नहीं जीते जीते। दरअसल, उनके अपने ही साथियों सीपी जोशी की सभी तरह से असफल प्रयास करके सीएम बनने की अतृप्त आकांक्षा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जैसे गरिमामयी पद पर बिराजमान होने के बावजूद डॉ. चंद्रभान की विधायक सा सामान्य पद पाने की लालसा में पार्टी का जो कबाड़ा हुआ, उस पर गहलोत पता नहीं नहीं क्यूं कुछ नहीं बोल रहे हैं। वैसे गहलोत समझदार राजनेता हैं और जब जो बोलना होता है, वही बोलते हैं। शायद इसीलिए वे राहुल गांधी के सीपी जोशी को अनावश्यक प्रोत्साहन पर भी मौन हैं। क्योंकि राजनीति में किसी को भी देर सबेर बहुत कुछ अपने आप समझ में आ जाता है। और न भी समझ में आए तो किसी को क्या फर्क पड़ता है।

कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि प्रदेश में पूरी बीजेपी वसुंधरा राजे के साथ खड़ी थी। यहां तक कि उनके परम पराक्रमी विरोधी घनश्याम तिवाड़ी भी संपूर्ण शरणागत भाव से पार्टी के सिपाही बनकर मैदान में आ गए थे और वसुंधरा की नीतियों के मुखर आलोचक गुलाबचंद कटारिया भी अपनी कटार को कमान में रखकर पार्टी को जिताने में लग गए थे। कांग्रेस में इस चुनाव के दौरान ऐसा कहीं नहीं और कभी नहीं दिखाई दिया। इस चुनाव में गहलोत अकेले थे। उनके साथ के बड़े नेता कहीं परिदृश्य में भी नहीं थे। नरेंदेर मोदी ने प्रद्श में जितनी सभाएं की, उससे माहौल बना। कांग्रेस ने उसे रोकने के लिए तो कोई प्रयास नहीं किए, यह तो ठीक। मगर अपने हालात सुधारने के लिए की गई सोनिया गांधी और राहुल गांधी की न तो सभाएं ज्यादा कराई और न ही उनमें भीड़ बढ़ाई। फिर सबसे बड़ी बात यह भी है कि गहलोत एक हद तक यह समझने में भी असफल रहे कि वे जिस पिछड़े वर्ग के प्रदेश मे सबसे बड़े नेता है, वह पिछड़ा वर्ग और उनका अपना माली समाज ही मोदी का मुरीद बनता जा रहा है।

गहलोत को थोड़ी बहुत भी राजनीतिक सहुलियत मिलती, तो वे भी अपने पिछड़े होने को केंद्र में रखकर जनता के समर्थन में इजाफा कर सकते थे। लेकिन कांग्रेस, कांग्रेसियों और पार्टी के अंदरूनी हालात ने उनको ऐसा अकेला कर दिया कि उनको यह सब समझने का मौका ही नहीं मिला। राजनीति में इसी नासमझी का लाभ सामने वाले को मिलता नरेंद्र मोदी और वसुंधरा राजे को भरपूर मिला। फिर गहलोत सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण का समर्थन किया था। इस कोशिश का विरोध हुआ तो गहलोत सरकार ने इस आंदोलन को ही कुचलने की कोशिश करके अपने नुकसान का इंतजाम कर लिया और इससे अगड़ी जातियों में कांग्रेसी मतदाताओं में यह संदेश गया कि असोक गहलोत अगड़ी जातियों के विरोधी हैं। ऐसे में पिछड़ी जातियों से तो गहलोत हाथ धो ही बैठे थे, कांग्रेस के साथ की बची खुची अगड़ी जातियां भी कांग्रेस के विरोध में खड़ी हो गई। चुनाव के ऐन पहले मीणा वोटों के जरिए बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की किरोड़ी कोशिश का वार भी काली गया। गोपालगढ़ के दंगों के बाद मुसलमानों के घावों पर मरहम लगाने की कोशिश में अल्पसंख्यकों को कई सारी बड़ी सौगातें बख्शकर भी गहलोत ने बाकी लोगों को अपने से खो दिया।

 

फिर सबसे बड़ी बात यह भी रही कि कांग्रेस और गहलोत, दोनों ने यह कतई नहीं समझा कि दुनिया अब बहुत समझदार हो गई है। वह हर किसी के भी हर हुलिए को हर हाल में समझना सीख गई है। इसलिए अब किसी पर भी किसी के भी एहसान करने और उसके मायने समझती है। भले ही चुनाव सर पर आने के मौके पर गहलोत सरकार ने दुनिया भर की योजनाएं लागू कीं, लैपटॉप का लालच दिया, पत्रकारों को प्लॉट बांटे,  टैबलेट , साडियां, कंबल, साइकिलें और दवाइयों का मुख्त वितरण किया।  लेकिन इस सबका आम आदमी में संदेश यह गया कि कांग्रेस हमको खैरात बांटकर खरीदना चाहती है। जब किसी समझदार आदमी को कोई बेवकूफ समझता है, तो वह समझदार आदमी उसका प्रतिवाद भी बहुत अजब ढंग से करता है। सरकार को सबक सिखाने का जनता का यही अजब ढंग कांग्रेस को राजस्थान में सिर्फ 21 सीटों पर समेट गया। इन 21 में से भी बहुत सारे तो मरते पड़ते चंद वोटों से चुनाव जीते। जबकि बीजेपी हर सीट पर औसत 20 से 25 हजार वोटों के आसपास जीती है।   

अब कांग्रेस इस सदमे से उबरकर आत्ममंथन करेगी, लेकिन दुनिया जानती है कि इस आत्ममंथन और चारित्रिक चिंतन में भी उसे अपने युवराज राहुल गांधी की कमजोरियां नहीं दिखाई देगी। देश को मोदी की मजबूती भाई, लेकिन राहुल गांधी का बांहें चढ़ाने का अंदाज किसी नौसिखिए की नौटंकी के रूप में लगा, यह कोई तुर्रमखां कांग्रेसी भी राहुल गांदी को नहीं बताएगा। ताजा चुनाव परिणामों पर शरद पवार ने गलत नहीं कहा कि देश को कमजोर नेतृत्व पसंद नहीं आता। राहुल गांधी से मोदी जैसी मजबूती की कल्पना किसी को नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हर इंसान की अपनी अलग तासीर होती है। मगर, नरेंद्र मोदी का तोड़ तलाशने का वक्त कांग्रेस के हाथ से निकल गया है।

कांग्रेस को यह सबसे पहले समझना होगा कि संसद के गलियारों में जाने के रास्ते पंसारी की परचूनी की दूकान से शुरू होते हैं। विधान सभाओं में बहुमत पाने की पतवार सब्जी मंडियों की सांसों में समाई हुई होती है। इसीलिए देश का बजट सुधारने को कोशिश में हर घर का बजट बिगाड़ने का पराक्रम किसी भी सरकार को बहुत भारी पड़ता है। कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने यही किया। जिसका परिणाम प्रदेशं में कांग्रेस को भुगतना पड़ा। अशोक गहलोत राजस्थान के सीएम थे, इस नाते प्रदेश मे हार का उनको चाहे कितना भी दोष दे दीजिए, लेकिन कांग्रेस का इस बार तो कमसे कम बचना संभव ही नही था। गलतियां प्रदेश की सरकार की भी हो सकती हैं। लेकिन कमरतोड़ महंगाई, सरकार में बैठे देश चलानेवाले लोगों का भ्रष्टाचार में गले तक डूब जाना, कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व और नरेंद्र मोदी का मजबूत चेहरा कांग्रेस पर बुत भारी साबित हुए। समूची कांग्रेस जब इस हार के लिए जिम्मेदार हैं, तो अकेले गहलोत को दोष देने का क्या मतलब ?  

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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