खरगोन(ग्वालियर). इस गांव में बच्चा भी सीताराम है और बूढ़ा भी। महिलाएं-पुरुष सभी एक-दूसरे को सीताराम ही पुकारते हैं। स्कूल में भी ऐसा ही। सरकारी रजिस्टर में तो विद्यार्थियों के वास्तविक नाम दर्ज हैं, लेकिन बच्चे एक-दूसरे को सीताराम ही बुलाते हैं। और तो और इस गांव में बाहर से आने वाला व्यक्ति भी सीताराम बन जाता है। उसे भी इसी नाम से संबोधित किया जाता है। इस नाम का इतना गहरा प्रभाव इस गांव पर पड़ा कि 10 साल से यहां एक भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं हुआ।
ये गांव है एक हजार की आबादी वाला कठोरा। यहां के बाशिंदों को जन्म से यह नाम नहीं मिला है। यह परिपाटी 20 साल पहले से चल रही है। गांव के सीताराम यानी खेमराज यादव, ब्रजेश डोंगरे ने बताया जबलपुर हाईकोर्ट ने गांव को विवादमुक्त होने का पुरस्कार भी दिया। कसरावद थाना प्रभारी राजेंद्र सिरसाठ का कहना है गांव में विवाद व झगड़े का एक भी मामला दर्ज नहीं है। शेरू यादव बताते हैं- यहां की चौपाल थाना और न्याय का मंदिर है और पंच परमेश्वर।
साभार- दैनिक भास्कर से