
पाकिस्तान का राजनीतिक संकट क्या गुल खिलाएगा
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर है और पाकिस्तान की समाज और अर्थव्यवस्था पूरी तरह डूबने की स्थिति में आ चुकी है ;और राजनीतिक समाज पूरी तरह सत्ता लोभ व आपसी तनातनी में बटा है। पिछले वर्ष आई बारिश के कारण अधिकांश जनसंख्या दिनचर्या और रोजी रोटी के लिए विझोभित हैं। चरमपंथी हमलों की संख्या दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं और इन हमलों के कारण महंगाई बढ़ रही है ।पाकिस्तानी समाज में भी कई समुदाय हैं कि 2 जून की रोटी के लिए परेशान है ,गरीबी ,बेरोजगारी, आतंकवाद और चरमपंथ अपने उच्चतम स्तर पर कई गंभीर समस्याओं के कारण पाकिस्तान का मौजूदा संकट अप्रत्याशित हो गया है ।पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है ,विदेशी मुद्रा भंडार दशकों को सबसे निचले स्तर पर हैं।तेल ,खनिज पदार्थ जरूरी आवश्यक चीजों का आयात विदेशी मुद्रा भंडार पर आधारित है। अभी तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी 1.1अरब डॉलर की किस्त जारी नहीं किया है ।
देश में चरमपंथी हमलों में भी लगातार बढ़ोतरी हो रहा है ;सुरक्षाकर्मियों व पुलिस एवं सैनिकों पर लगातार हमलें बढ़ रहे हैं, इसके कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दिन पर दिन गिरती जा रही हैं ।पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिरता चीजों को और कठिन बना रही है। पाकिस्तान के आंतरिक व्यवस्था( कानून और व्यवस्था ) दिन प्रतिदिन चरचरा रही हैं ।राजनीतिक अनिश्चितता अप्रैल, 2022से व्याप्त है क्योंकि उसी दौरान से राजनीतिक अस्थिरता ,बेरोजगारी ,गरीबी और अस्त व्यस्त का वातावरण व्याप्त हैं।अस्थिर राजनीतिक परिवेश में नागरिक समाज बहुत परेशानियों का सामना कर रहा है।
पाकिस्तान के कद्दावर नेता इमरान खान ने पाकिस्तान की वर्तमान चुनौतीपूर्ण संकट अवस्था और इसके नागरिक समाज को” जंगलराज “व “अराजकता की स्थिति” की संज्ञा दी है ।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इमरान खान सरकार को शांति से बैठने नहीं देंगे, सरकार को ही स्थिर रखकर शांति व्यवस्था कायम रख सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा गतिरोध का एक प्रमुख कारण इमरान खान का अपना व्यक्तित्व है, मौजूदा राजनीतिक गतिरोध इस बात का संकेत कर रहे हैं कि पाकिस्तान की संवैधानिक संस्थाएं असफल सिद्ध हो रही है। पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास कि अहम उपादेयता रहा है कि सेना की पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था मेंअहम रोल है। सेना ने परदे के पीछे से सरकार का नियंत्रण किया है।
( लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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