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भारतीय राजनीति में नैतिकता का अभिप्राय

जिस प्रकार भारतीय राजनीति में कोई स्थाई दोस्त अथवा दुश्मन कभी नहीं होता है,ठीक उसी प्रकार देश की आजादी से लेकर आजतक भारतीय राजनीति में नैतिकता का अभिप्राय स्थान,काल,पात्र तथा परिस्थिति के अनुसार बदलते रहा है।भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ.राजेन्द्र प्रसाद से लेकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु तक के आपसी राजनीतिक संबंधों को जानने और समझने से यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है कि भारतीय राजनीति में नैतिकता का अभिप्राय अपनी-अपनी इच्छाशक्ति और अपने-अपने पद व व्यक्तित्व की मर्यादा और उसकी हिफाजत है।

एक भारतीय जनतंत्र का सांवैधानिक प्रमुख ,भारत का राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद अपने सांवैधिनक पद की नैतिकता को अपने तरीके से समझते थे तो वहीं भारतीय लोकतंत्र तथा भारत की जनता का वास्तिक प्रधान भारत का प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु भी अपने पद की नैतिकता का अपने ढंग से विशेष खयाल रखते थे।डॉ राजेन्द्र प्रसाद और पण्डित नेहरु के समय में ऐसे अनेक अवसर आए जिनमें दोनों के लिए नैतिकता का अभिप्राय उनके अपने-अपने दृष्टिकोण से अलग-अलग रहे। यहीं नहीं, देश की आजादी के उपरांत भारतीय संघ की जितनी सरकारें अबतक रहीं हैं तथा भारतीय राज्यों की जितनी भी सरकारें रहीं हैं सभी के लिए नैतिकता का अभिप्राय अपने-अपने ढंग से अपने पद की हिफाजत ही रहा है।

इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि भारतीय राजनीति में समय-समय पर अवसरवाद, चाटुकारिता,वैचारिक दासता,वंशवाद, जातिवाद, दलितवाद और ग्लोबल विलेज आदि में नैतिकता के अपने-अपने और अलग-अलग निजी मायने रहे हैं।गत 11 मई,2023 को भारत के मान्यवर उच्चतम न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार से संबंधित दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय के बाद भारत के राजनीतिक जानकारों के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि भारतीय राजनीति में नैतिकता का मानदण्ड क्या है और क्या होना चाहिए।राजनीतिक नैतिकता का वास्तविक अभिप्राय क्या है।

भारतीय उच्चतम न्यायालय के महाराष्ट्र सरकार से संबंधित दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय से यह पता लगाना मुश्किल हो गया है कि भारतीय समाज की आत्मा को पहचानकर तथा भारत की जनता की आत्मा को पहचानकर क्या यह लिया गया ऐतिहासिक निर्णय सर्वमान्य है।मान्यवर उच्चतम न्यायालय ने एक समय में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले में हमले की प्रमाणिक के उपरांत आतंकी को मृत्युदण्ड की सजा सुनाई थी।वहां पर निर्णय सर्वमान्य था। मान्यवर उच्चतम न्यायालय के ये दोनों निर्णय निश्चित रुप से विचारणीय हैं।एक बात तो स्पष्ट है कि भारतीय उच्चतम न्यायालय प्रजातांत्रिक मूल्यों की हिफाजत हेतु वचनवद्ध है।

भारतीय संविधान की रक्षा हेतु न्याय व्यवस्था के शीर्ष पर कार्यरत है। हेतु लेकिन महाराष्ट्र सरकार के बिते कल के ऐतिहासिक निर्णय में ऐसा लगा कि वादी और प्रतिवादी दोनों खुश हैं। वास्तव में भारतीय राजनीति पूरी तरह से चाणक्य- नीति पर आधारित है जिसमें भारतीय राजनीतिक दल तथा भारत के राजनीतिक नेता साम,दाम,दण्ड और भेद को समय-समय पर आवश्यकतानुसार अपनाकर अपनी –अपनी राजनीतिक कुर्सी को बचाये रखें,वास्तव में यहीं भारतीय राजनीतिक की सही नैतिकता है।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और समसामयिक विषयों पर लेखन करते हैं)

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