Saturday, May 11, 2024
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Monthly Archives: October, 2022

महर्षि दयानन्द क्या थे?

वह मूलशंकर था, चैतन्य था, महाचैतन्य था, दयानन्द था। सरस्वती था, वेदरूपी सरस्वती को वह इस धरातल पर प्रवाहित कर गया। वह स्वामी था, वह सन्यासी था, परिव्राट था। दंडी था, योगी था, योगिराज था, महा तपस्वी था। योग सिद्धियों से संपन्न था-परन्तु उनसे अलिप्त था। मनीषी था, ऋषि था, महर्षि था, चतुर्वेद का ज्ञाता तथा मन्त्रद्रष्टा था। ब्रह्मचारी था, ब्रह्मवेत्ता था, ब्रह्मनिष्ठ था, ब्रहमानंदी था। अग्नि था, परम तपस्वी था, वर्चस्वी था, ब्रह्म वर्चस्वी था। इस धरातल पर शंकर होकर आया था। शंकर के मूल खोज कर गया और दयानन्द बनकर अपनी दया संसार पर कर गया। नश्वर देह के मोह को त्याग कर हंसते हंसते प्रसन्नता से, परम प्रभु के प्रेम में मस्त होकर ब्रह्मानंद में विलीन हो गया। एक अपूर्व जीवन, एक अद्भुत क्रांति, अतीत के गुण गौरव का एक मधुर लक्ष्य, एक महान आशा का संचार, एक अद्भुत जीवन-ज्योति इस जगत में अनंत समय के लिए छोड़ गया।

महर्षि के जीवन पर एक दृष्टि

ऋषि दयानन्द की जन्मभूमि होने का गौरव गुजरात प्रान्त को है। पिता जन्म के ब्राह्मण थे, और भूमिहारी तथा जमीदारी का कार्य करते थे। शिव के बड़े भक्त थे। शिवरात्रि के दिन बालक को मन्दिर में ले गए और उसे उपवास करा जागरण का आदेश दिया। जब बड़े-बड़े शिव-भक्त सो गए, यह भावी ऋषि प्रयत्नपूर्वक जागता रहा। गीता के कथनानुसार-

हाड़ोती की लोक परम्परा हीड पूजन हीडों दिवाली तेल मेलो

हमारा देश भारत विभिन्न सांस्कृतिक परम्पराओं का देश हैं। सदियों से ये परंपराएं लोक जीवन को सुर्भित करती हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती हैं। दीपावली पर्व भी देश में विविध परम्पराओं के साथ अपार उत्साह से मनाया जाता है। आपको इस बार दीपावली पर राजस्थान में हाड़ोती क्षेत्र की सदियों से जन - मानस में रची - बसी लोक परम्परा " हीड पूजन" के बारे में बताते हैं।

धनतेरस, दिवाली और भाई दूज का मुहुर्त

22 अक्टूबर शनिवार को शाम 04:33 बजे से त्रयोदशी तिथि प्रारंभ हो रही है. जो अगले दिन 23 अक्टूबर रविवार को शाम 05:04 बजे तक रहेगी. कार्तिक कृष्ण की शाम त्रयोदशी तिथि में भगवान गणेश, माता लक्ष्मी के साथ भगवान धन्वंतरी की पूजा होती है.

आलोक पर्व: दीवाली मनाने का औचित्य:आज के संदर्भ में

"कई बार आई- गई यह दीवाली, मगर तम जहां था, वहीं पर खड़ा है।"

कोरापुट की दीपावली

गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण,गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा की जाती है। दिवाली का अंतिम पर्व भाई दूज है, जिसे यम द्वितीया या भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं।

फिल्मी गीतों में दीयों की महिमा

दीपान्विता, दीपमालिका, कौमुदी महोत्सव, जागरण पर्व में आधुनिक काल की फिल्मों ने भले ही दीवाली के प्रसंग को भुला सा दिया है लेकिन पुरानी फिल्मों में बताया गया दीपक का महत्व आज भी उसी प्रकार से समाज को आलोकित किए हुए है, जैसा उन दिनों में हुआ करता था।

जनसंख्या समीकरण, स्वामी श्रद्धानन्द और हिन्दू मुस्लिम समस्या

सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी ने गोवाहाटी में बयान दिया कि 1930 से मुस्लिमों की आबादी बढ़ाई गई क्योंकि भारत को पाकिस्तान बनाना था। इसकी योजना पंजाब, सिंध, असम और बंगाल के लिए बनाई गई थी और यह कुछ हद तक सफल भी हुई। माननीय सर संघचालक जी ने अपने बयान में कहा है कि यह प्रयास 1930 के दशक से बाद से शुरू हुआ। हम भागवत जी के बयान को अपूर्ण मानते है क्योंकि कुछ ऐसे ऐतिहासिक तथ्य है जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। यह प्रक्रिया 1930 से कहीं पहले आरम्भ ही चुकी थी।

मोहम्मद अहमद बने संदीप सैनी

8 साल पहले अपना लिया था इस्लाम, अब मुजफ्फरनगर में परिवार ने की घर-वापसी: मोहम्मद अहमद बने संदीप सैनी, गंगाजल छिड़क हुआ शुद्धिकरण।

अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व -दीपावली

भारतीय संस्कृति में कार्तिक माह में मनाए जाने वाले पांच दिवसीय दीपावली पर्व का विशेष महत्व है। यह एक ऐसा अनूठा पर्व है जो जीवन के दो महत्वपूर्ण पक्षों धर्म तथा अर्थ का संगम है। हिन्दू समाज का जन जन आर्थिक उन्नयन के लिए इस पर्व की गतिविधियों से आच्छादित है । पांच दिन के पर्व में प्रत्येक दिन का एक विधान है, एक कथा है, आर्थिक- सामाजिक- धार्मिक – आध्यात्मिक महत्व है ।पर्व का प्रारंभ तो कई दिन पूर्व स्वच्छता के व्यापक अभियान से हो जाता है घर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, कार्यालय सभी जगह सफाई, रंग रोगन, नई साज सज्जा होने लगती है। 
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