राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा भारतीय संविधान में निहित मौलिक कर्तव्य और महात्मा गाँधी के चिंतन पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। प्रमुख वक्ता हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन थे। राजनीति विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ. अंजना ठाकुर ने छात्र छात्राओं को आरम्भ में डॉ. जैन का परिचय देते हुए उनके बहुविषयक ज्ञान और अनुभवों का लाभ अर्जित करने हेतु प्रेरित किया। विभाग की प्राध्यापक डॉ. अमिता बख्शी और प्रो. संजय सप्तर्षि ने डॉ. जैन का भावभीना स्वागत किया।
डॉ. जैन ने अपने प्रेरणास्पद और रोचक व्याख्यान में कहा कि गांधी जी ने कर्तव्यों को ही अधिकारों का स्रोत माना है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन निष्ठा पूर्वक करता है उसे अधिकारों के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं रह जाती है। इस बात की समझ और इसका पालन अगर तय हो जाये तो हमारे संविधान का मर्म हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन जायेगा।
डॉ. जैन ने बहुत सरल ढंग से संविधान के ग्यारह मैलिक कर्तव्यों की व्याख्या की। उन्हने कहा कि गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रमों में भी मनुष्य के कर्तव्य वैभव को देश जा सकता है। उसमें भी संविधान की आत्मा बोलती है। भारत के लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करना, हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व देना और संरक्षित करना, स्वतंत्रता और हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का पालन करना, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करन, देश की रक्षा करना और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करन, वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना और प्राणिमात्र के लिए दयाभाव रखना,म मानवतावाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करन, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना एवं हिंसा से दूर रहना, व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिये प्रयास करना ताकि राष्ट्र लगातार उच्च स्तर की उपलब्धि हासिल करे और 6 से 14 वर्ष तक के आयु के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। ये मौलिक कर्तव्य यदि देखा जाये तो इंसान होकर इंसान होने का हक अदा करने के समान है। संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्र गान का आदर करना अपने आप में जिम्मेदार नागरिक होने का परिचय देना है।
डॉ. जैन ने कहा कि मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किये जाने के बाद भी जागरूकता की कमी अगर है तो उसका सबसे मुख्य कारण यह है कि उन्हें इस संबंध में जानकारी ही नहीं है। वर्तमान में भारत की प्रगति के लिये मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन की आवश्यकता है। गौरतलब है कि देश में भाईचारे की भावना को कायम रखना सबसे बड़ा काम है। यह मौलिक कर्तव्यों के पालन से ही संभव है। जब तक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के प्रयोग के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करेंगे तब तक हम भारतीय समाज में लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत नहीं कर पाएँगे।
डॉ. जैन ने सभागृह में मौजूद युवाओं से राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम में उचित स्तर पर मौलिक कर्तव्यों को शामिल करना, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थानों पर कर्तव्यों का प्रदर्शन करना तथा उचित माध्यम से युवाओं तक पहुंचना जरूरी है।