Tuesday, April 30, 2024
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नैमिषारण्य पच्चीसी

यह तपोभूमि है पावन भूमि मानव दानव सब पूजे इसको।
नैमिषारण्य को कहते निमसार कोई निमखार कहे इसको।
गोमती के बाएं तट पर स्थित यह दिव्य अनुभूति देती है।
सुर नर मुनि सबके उर में युग युगों से महिमा बसती है।1।।

सृष्टि के प्रथम पुरुष राजा मनु और उनकी रानी सतरूपा।
पौराणिक भूमि पर निराहार रह 23 हजार वर्ष किया तपा।
राजा मनु और रानी सतरूपा की भक्ति से प्रभु हुए प्रकट।
त्रेतायुग में रामावतार बन पुत्र स्वरूप बन हुए प्रकट।।2।।

राजा मनु दशरथ सतरूपा रानी कौशल्या बन जन्मी।
समय काल बीतते बीतने पर यहां घटनाएं अनुकूल घटी ।
उनकी तपोस्थली पर ही मनु सतरूपा मंदिर निर्मित है।
राजा रानी मनु सतरूपा की मूर्तियां यहां स्थापित हैं।।3।।

इसी भूमि पर वेदव्यास ने वेद चार छह शास्त्र रचे थे।
इससे आगे बढ़ करके वे अठारह महापुराण रचे थे।
पिरामिड का आकार ले रखा नैमिष की ये व्यास गद्दी।
नमन करें हम मिलकरके इसमें ना करें कोई जल्दी।।4।।

सूत समुदाय में रोमहर्षण ने आध्यमिकता को बढ़ाया है ।
वेद पुराण उपनिषदों को 88 हजार ऋषि को सुनाया है।
श्रीमद्भागवत सत्यनारायण कथा यही पर सुनाया है।
महामुनि सूत की गद्दी ने इस धाम का गौरव बढ़ाया है। 5।।

साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना अक्षय वट यहां फैला हुआ है।
वेद व्यास शिष्य जैमिनी ने वर्षों तक किया तपस्या है।
देश के श्रद्धालु इस अक्षय वट का भी परिक्रमा करते हैं।
पूरी होती इनकी मुरादें जो अपने को धन्य समझते हैं।।6।।

ऋषि आग्रह पर ब्रह्माजी के मन में चक्र उत्पन्न हुआ था।
गोमती किनारे वन में चक्र की नेमि यहीं पर गिरा हुआ था ।
धर्मचक्र का मध्य भाग धरती पर यहीं प्रवेश किया था।
चक्रनेमि गिरने से इस क्षेत्र को निमसार कहा गया था।।7।।

यह है धरती का पवित्र भाग चक्र तीर्थ माना जाता।
वाराह पुराण कहता ये है भगवान का निमिष मात्र।
दानवों का संहार होने से यह ‘नैमिषारण्य’ कहलाता।
दर्शन मंजन पूजन से अपने को धन्य किया जाता।।8।।

इसी जगह राजा कल्माषपाद को शक्र शक्ति से भेट हुई।
विश्वामित्र वशिष्ठ बीच शत्रुता की चिनगारी भड़क उठी ।।
शुकदेव जी ने यहीं पर राजा परीक्षित को कथा सुनाया।
श्रीमद्भागवत सप्ताह सुनाकर राजाजी को मोक्ष कराया।।9

हिमांचल ने शिव अपमान किया सती यज्ञ में भस्म हुई।
शिव ताण्डव को रोकने हेतु विष्णु चक्र से शव छेदन हुई।
हृदय गिरा यहां पर मां ललिता शक्ति पीठ प्रसिद्ध हुई।
तब से ही मां के पूजन की परम्परा यही से शुरू हुई।। 10।।

ललिता देवी शक्तिपीठ के पास काली शक्तिपीठ स्थित है।
मंदिर में काली मां की विशाल अद्भुत प्रतिमा निर्मित है।
कई छोटे छोटे मंदिर बने अन्य देवताओं को समर्पित हैं।
मंदिर ये सुंदर नक्काशी और मूर्तियों से सुसज्जित है।11।

त्रेता मेंअहिरावण वधकर हनुमान धरती से यहीं बाहरआए।
दक्षिणमुखी प्रतिमा बनकर पूजन-अर्चन यहीं शुरू कराए।
दूर देश से श्रद्धालु आकर हनुमान गढ़ी पर दर्शन करते हैं ।
निष्ठा भाव भक्ति में रमते अपनी मुरादें पूरी करते हैं।।12।।

हनुमान गढ़ी के निकट पांडवो का ऐतिहासिक किला है ।
जिसका निर्माण महाभारत के राजा विराट ने करवाया है ।
निर्वासन दौर में यह उनके शरण स्थली रूप में आया है।
पांडवकिला नाम से जग में इसने ख्याति जो पाया है।13।।

रुद्रावर्त तीर्थ और कूंड शिव का अनोखा मंदिर है ।
चक्रतीर्थ से सात किलोमीटर दूरी पर अवस्थित है।
पातालपुरी की गहराई में शिव का शिवलिंग स्थित है।
कुंड में फल चढ़ाने पर कुछ फल वापस आ जाता है।।14।

तुलसी दास गोस्वामी जी ने इसकी महिमा को परखा है।
‘तीरथवर नैमिष विख्याता’ कहकर इसे शिर पर रखा है।
‘अति पुनीत साधक सिद्धिदाता’ कह कर साधना साधा है।
88 हजार ऋषि-मुनियों ने यहां पर किया तपस्या है।।15।

शंकराचार्य कविसूर सुता ऋषि निवसे थे इस कानन में।
अमावस्या स्नान ललिताप्रसाद से पाप मिटे सारे कुल के।।
रावध वध के बाद श्री राम जी इसी भूमि पर आए थे ।
ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु नैमिष में प्रायश्चित कराए थे।।16।।

वृत्तासुर वरदान लिया ना मरेगा लकड़ी धातु आयुध से।
ब्रह्मआदेश से इंद्र तप कीन्हेँ दो सहस्त्र वर्ष नैमिश वन में।
इसे मारने हेतु दाधीच की हड्डी माग कर लिया प्रयोग में।
वज्र बनाकर इंद्र ने मारा था वृत्तासुर को पल भर में।।17।।

त्रिशक्ति धाम नैमिषारण्य में दक्षिण भारत की शैली है।
प्रवेश करते ही भगवान गणेश का मंदिर दिखाई देती है।
केंद्र में बनाया गया विष्णु की विशाल श्वेत सुंदर मूर्ति है।
दोनों ओर बनी सीढ़ियाँ दुर्गा मंदिर तक जाती हैं ।।18।।

नारदानन्द तथा अन्य लोगों ने यहां भूमि का दान किया।
स्वामी जी ने साधकों के लिए आश्रम एक बनवाया ।
संस्कृत की शिक्षा के लिए ब्रह्मचर्याश्रम खुलवाया।।
सैकड़ों ब्रह्मचारी को यहां संस्कृत शिक्षा दिलवाया।।19।

धर्म, संस्कार सनातन परंपरा को यहां निभाया जाता ।
नैमिष तीर्थ महिमा को देश विदेशों तक पहुंचाया जाता ।
यज्ञ तप विद्या का प्रचार प्रसार यहां से करवाया जाता ।
समृद्धशील धर्म नारदानंद आश्रम में करवाया जाता।।20।

हम शिक्षक उत्तर प्रदेश के थे बस्ती जिले में सेवा किए।
संस्कृति सनातन प्रेम रहा देशाटन भी हम खूब किए।
सरकारी सेवामुक्त हुए तब नैमिष की माटी खींच लिया।
ब्रह्मचर्याश्रम सत्संग में मन मेरा यहां पर रम गया।।21।।

शुभ तपोभूमि ऋषि-मुनियों की, नैमिष मिश्रिख की पावन माटी।
जहां अस्थिदान दे चुके दधीचि, यह त्याग तपस्या की परिपाटी।
यहां चक्र तीर्थ पावन पुनीत है, ललिता मैया की छवि सुभाटी ।
मैया सीता जी का धाम यहां, कण-कण में बसे श्रीराम सुहाटी।।22।

तीर्थ नैमिष धाम की पहचान, बन रही यहां की गोमती मइया।
देव-ऋषियों का गुणगान, कर रही यहां की प्यारी गइया।
ज्ञान गौरव भक्ति का भाव, भर रही इसके तट के रहवइया।
तीर्थ-मठ-मंदिर-गुरु ऋषियों, का धाम यह है गुरुवइया।।23।।

धेनुए सुहाती हरी भूमि पर जुगाली किए, मोहन बनाली बीच चिड़ियों का शोर है।
अम्बर घनाली घूमै जल को संजोये हुए, पूछ को उठाये धरा नाच रहा मोर है।
सुरभि लुटाती घूमराजि है सुहाती यहां, वेणु भी बजाती बंसवारी पोर पोर है।
गूंजता प्रणव छंद छंद क्षिति छोरन लौ, स्नेह को लुटाता यहां नितसांझ भोर है ।।24।।

प्रकृति यहां अति पावनी सुहावनी है, पावन में पूतता का मोहन का विलास है।
मन में है ज्ञान यहां तन में है ज्ञान यहां, धरती गगन बीच ज्ञान का प्रकाश है।
अंग अंग रंगी है रमेश की अनूठी छवि, रसना पै राम राम रस का निवास है।
शान्ति है सुहाती यहां हिय में हुलास लिये, प्रभु के निवास हेतु सुकवि मवास है।।25।।

कवि परिचय
(आशुकवि आचार्य पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी का जन्म 1 अप्रैल 1909 में बस्ती जिले दुबौली दूबे नामक गांव में हुआ था। उन्होंने समाज में शिक्षा के प्रति जागरुकता के लिए आजीवन प्राइमरी विद्यालय करचोलिया का प्रधानाचार्य पद निभाया था। सेवानिवृत्त लेने बाद लगभग दो दशक वे नौमिषारण्य में भगवत भजन में लीन रहे। उनकी मुख्य रचनाएँ : नौमिषारण्य का दृश्य, कवित्त, मांगलिक श्लोक, मोहनशतक आदि है। वे दिनांक 15 अप्रॅल 1989 को 80 वर्ष की अवस्था में अपने मातृभूमि में अंतिम सासें लेकर परमतत्व में समाहित हो गए।)

(प्रस्तुति: आचार्य डा.राधे श्याम द्विवेदी)

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