मुंबई। काशी से पधारे वरिष्ठ पत्रकार डॉ.राममोहन पाठक का मानना है कि पत्रकारिता की दुनिया में तकनीक की भूमिका चाहे जितनी बढ़ जाए, लेकिन संपादक के मस्तिष्क का कोई विकल्प नहीं है। डॉ.पाठक मुंबई के पत्रकारों और हिंदी – भाषा – साहित्य से जुड़े मुंबई के प्रमुख लोगों के बीच मुंबई प्रेस क्लब में अपने सम्मान में आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे।
हिंदी पत्रकारिता में पिछले पांच दशक से सक्रिय डॉ.राममोहन पाठक ने 50 वर्ष पहले उस दौर की प्रतिष्ठित पत्रिका धर्मयुग एवं दैनिक नवभारत टाइम्स से अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा कि समय बदलता रहा और हिंदी पत्रकारिता भी। लेकिन संपादक की सत्ता हर दौर में कायम रही है। जिस दिन यह खत्म होगी, उस दिन पत्रकारिता खत्म हो जाएगी। क्योंकि तकनीक वह काम नहीं कर सकती, जो एक संपादक अपने मस्तिष्क के जरिए करता है।
इस मौके पर कथाकार, पत्रकार हरीश पाठक ने कहा कि आज बाबूराव विष्णु पराड़कर व बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे संपादकों की परंपरा खत्म हो रही है, लेकिन यह सम्पादक की सत्ता की पुनर्स्थापना का दौर है। कई अखबारों में संपादक की भूमिका निभा चुके नीलकंठ पारटकर ने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता ही आज भी जिंदा है, और यही देश की सही तस्वीर पेश कर रही है। वरिष्ठ पत्रकार शचीन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता में चुनौतियां कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी। जबकि मुंबई प्रेस क्लब के चेयरमैन गुरबीर सिंह का मानना था कि अंग्रेजी की तुलना में आज भाषायी पत्रकारिता ज्यादा व्यापक है। प्रसिद्ध स्तंभकार विमल मिश्र ने कहा दैनिक ‘आज’ से ही मैंने भाषा के संस्कार सीखे। अभिलाष अवस्थी ने धर्मयुग के दौर को याद करते हुए कहा कि डॉ धर्मवीर भारती का अनुशासन ही मेरे जीवन का आधार बन गया। अनुराग त्रिपाठी ने कहा, आज हमें हर पल सक्रिय रहना है। संजीव निगम ने डॉ.राममोहन पाठक से संबंधित अनेक संस्मरण याद करते हुए कहा कि मैंने संबंधों का निर्वहन राममोहन जी से सीखा है।
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के निवर्तमान कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे, अकादमी के उन नियमों पर सवाल खड़ा किया जिसमें पत्रकारिता के पुरस्कारों का पैमाना पत्रकारिता कार्य नहीं बल्कि पत्रकारिता पर पुस्तक लेखन है। ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के निदेशक एवं राजभाषा विभाग, पश्चिम क्षेत्र के पूर्व उपनिदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने मीडिया की हिंदी के अंग्रेजीकरण की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार हिंदी मीडिया चलते-फिरते जीवित हिंदी शब्दों के स्थान पर जबरन अंग्रेजी शब्द स्थापित कर रहा है यह हिंदी के लिए चिंताजनक है। साहित्यकार अरविंद शर्मा राही ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस मौके पर द्विजेंद्र तिवारी, आदित्य दुबे, विजय सिंह, अभय मिश्र, नवीन नयन, सर्वेश पाठक, बृजमोहन पांडेय, अरविंद राही, कृपाशंकर सिंह डॉ राजेन्द्र सिंह, हरि मृदुल, श्रीश उपाध्याय, मराठी पत्रकार संघ के अध्यक्ष नरेंद्र वाबले एवं मंत्रालय-विधिमंडल वार्ताहार संघ के अध्यक्ष मंदार पारकर मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश तिवारी ने किया।
साभार – वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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