Friday, May 3, 2024
spot_img
Homeविशेषकलम ओ उत्सव लन्दन : बिना सरकारी ताम-झाम के हिंदी साहित्य का...

कलम ओ उत्सव लन्दन : बिना सरकारी ताम-झाम के हिंदी साहित्य का चिंतन – प्रदीप गुप्ता

भारत के एनजीओ प्रभा खेतान फाउंडेशन ने लंदन में हिंदी साहित्य से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ब्रिटिश कौंसिल , वाणी फाउंडेशन जैसी संस्थाओं के सहयोग से कलम ओ उत्सव आयोजित किया जिसका समापन कल शामऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज परिसर ब्रेंटफोर्ट में संपन्न हुआ . इस आयोजन की विशेषता यह थी कि भारत में हिंदी साहित्य सृजन सेजुड़े कई नामों के साथ ब्रिटेन में रह कर हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहे रचनाकारों की भी सक्रिय भागीदारी रही.

कार्यक्रम को देख कर लगा कि हिंदी साहित्य के फ़लक का विस्तार हो रहा है और इसके वर्तमान और भविष्य को लेकर गंभीरता सेचिंतन करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है . यह आयोजन हिंदी के लिए किए जाने वाले सरकारी आयोजनों की तुलना में कहीं सहज, अनौपचारिक और स्वतःस्फूर्त था.

हिंदी में जो साहित्य रचा जा रहा है उसमें स्त्री विमर्श कितना है इस बारे में लेखिकाद्व्य प्रत्यक्षा और रेखा सेठी के बीच संवाद हुआ इससत्र को लेखिका नीलिमा डालमिया ने संचालित किया. इसमें विशेषकर बदलते सामाजिक परिवेश में स्त्री पुरुष के बीच के संबंधों केसाथ ही विवाहेतर , एलजीबीटी और बाइनरी संबंधों के कथा कहानियों में ट्रीटमेंट को लेकर भी खुल कर चर्चा हुई .

कथा कहानियों में कितना सच होता है और कितनी कल्पना उसे लेकर भी एक सत्र रखा गया था जिसमें ब्रिटेन की हिंदी साहित्यकारशिखा वार्षनेय और कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ के साथ आस्था देव ने चर्चा की . मनीषा का कहना था कि जब तक कथ्य में तथ्य केसाथ कल्पना के रंग नहीं होंगे तब तक मुकम्मल तस्वीर नहीं बन पाएगी . यही नहीं जब पाठक आपकी रचना को पढ़े तो उसमें कुछ ऐसाज़रूर होना चाहिए जिसे पाठक अपनी कल्पना शक्ति जोड़ कर रिएक्ट कर सके , मनीषा ने यह भी बताया कि उनकी रचना को पढ़ करकई पाठक फ़ोन से या फिर लिख कर कहते हैं कि आप की कहानी का अंत सही नहीं था या आपने फ़लां उपन्यास में उसके नायक , नायिका या फिर अमुक पात्र के साथ न्याय नहीं किया , इसका अर्थ यह है कि पाठक के मर्म को कथ्य ने कहीं छू लिया है और वह भीकथा यात्रा का हिस्सा बन गया है . शिखा के यात्रा वृतांत काफ़ी पसंद किए गए हैं , उनका मानना है कि केवल कथा कहानी में ही नहींयात्रा वृतांत में भी कल्पना की ज़रूरत पड़ती है .पाठक को स्थानों का केवल भौगोलिक विवरण ही नहीं वहाँ के जीवन से जुड़े रोचकक़िस्से, थोड़ा इतिहास जानने की भी चाह होती है जिसके लिए घूमने के साथ ही उस स्थान के बारे में पढ़ना और सुनना भी ज़रूरी होताहै उसी के साथ यात्रा वृतांत रोचक बन पाता है .

एक रोचक सत्र “पर्वत, पात्र और परिकल्पना” था , इसमें जाने माने पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पंत और लेखिका प्रत्यक्षा वक्ता थे औरइसका संचालन उत्सव निदेशक अपरा कुच्छल ने किया. पंत का बचपन गढ़वाल की पहाड़ियों में बीता है तो प्रत्यक्षा बचपन से ही राँचीके आसपास के आदिवासी जीवन को जानने और समझने में लगी रही हैं इसलिए यह संवाद पर्यावरण को लेकर साहित्य में होने वालेसरोकार और विमर्श पर केंद्रित हो गया, आदिवासियों की जीवन शैली में तथाकथित आधुनिकीकरण के कारण होने वाले नकारात्मकप्रभाव, धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थलों में बदलने के लिए सड़कों को फ़ोर लेन या सिक्स लेन करने बद्रीनाथ के आसपास केसंवेदनशील पहाड़ों पर हेलीकॉप्टर की अंधाधुंध आवाजाही , हिमालय के दरकते पहाड़ों पर बेतरतीब निर्माण के दुष्परिणामों को ले करजो चर्चा हुई मैं चाहूँगा कि उसे आयोजक नीति नियंताओं तक पहुँचाएँ तभी इस चर्चा की सार्थकता बढ़ेगी.

सत्र “बेहतर कहानी की भूमि – अपनी भाषा अपने लोग” में जाने माने पत्रकार, मीडिया अध्येता सच्चिदानंद जोशी , पॉपुलर जेनर केहिंदी कथाकार संजीव पालीवाल के साथ अपरा कुच्छल ने चर्चा की. इनका मानना था कि आज के युवा की पढ़ने लिखने के माध्यम मेंबदलाव आया है वह एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे पर तेज़ी से फ्लिप करता रहता है , उसे इंस्टाग्राम पर कुछ ही सेकंड में अपनी बातकहने का माध्यम अधिक सुहाता है.इसलिए हम लेखकों को समझना होगा कि वह क्या चाहता है.

सबसे महत्वपूर्ण सत्र का संचालन उत्सव के सह निदेशक पद्मेश गुप्त ने किया और इसमें उन्होंने भारतीय विदेश सेवा के पूर्व डिप्लोमेटअनिल शर्मा जोशी और मीडिया अध्येता सच्चिदानंद जोशी के साथ “भाषा और संस्कृति बोध” पर बातचीत की. चर्चा में बताया गया कि अक्रांताओं और आताताइयों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रंथों को जलाने के वावज़ूद भारतीय संस्कृति इसलिए बच सकी क्योंकि वह दिल औरदिमाग़ में बसी हुई थी.

अनिल शर्मा ने बताया कि उन्होंने अपनी कैरीबियन पोस्टिंग के दौरान देखा कि भारत से वहाँ पहुँचे गिरमिटिया मज़दूरों के पास केवलरामचरतित्मानस थी जिसके सहारे उन्होंने अपनी संस्कृति को न सिर्फ़ ज़िंदा रखा वरन् उसे अपनी जीवन शैली भी बना लिया.

उत्सव का समापन जानी मानी ओडीसी नृत्यांगना डोना गांगुली के ट्रूप की शानदार प्रस्तुति से हुआ . डोना केलूचरण महापात्र की शिष्यऔर क्रिकेटर सौरभ गांगुली की पत्नी हैं .


(लेखक लन्दन की यात्रा पर हैं और वहाँ बसे भारतीयों की गतिविधियों के साथ ही वहाँ की सामाजिक- सांस्कृतिक गतिविधियों व जीवनशैली पर लिख रहे हैं)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार