Friday, September 29, 2023
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प्रचारजीवी विपक्ष के पास मुद्दे ही नहीं

सरकार का मौलिक उपादेयता सुरक्षा, संरक्षा औरऔषधि से है।इससे सरकार लोक कल्याणकारी लक्ष्यों को पूरित करके लोकतांत्रिक तरीके से जनता का विश्वास प्राप्त करती है। पंचायत से संसद(सर्वोच्च पंचायत)तक विश्वास का अवयव ही लोकतांत्रिक शासन (शासन तकनीकी शब्द है)।लोकतंत्र में विपक्ष की उपादेयता और प्रासंगिकता है।विपक्ष को “वैकल्पिक सरकार” भी कहा जाता है। दुर्भाग्य से विपक्ष अपने शासकीय कार्यों (जनता के प्रति उत्तरदाई,शासकीय निर्णयों में पारदर्शिता और धन पर सार्वजनिक नियंत्रण)की प्रासंगिकता इस स्तर तक बना लिया कि 2014 से 2019 तक विपक्ष विहीन शासकीय प्रारूप का अस्तित्व रहा ;लेकिन भारत के संविधान में स्वायत्त एवं स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है जिसके मुखिया के चयन विपक्ष की भूमिका/उपादेयता अनिवार्य है/जिसमें विपक्ष के नेता की उपस्थिति अनिवार्य है। इस संवैधानिक शून्यता का निवारण सर्वोच्च न्यायालय ने सबसे बृहद दल को संवैधानिकता/सांविधानिकता प्रदान करके किया ।

संसदीय परंपराओं के अनुसार लोकसभा( जनता का सदन/ लोकप्रिय सदन/ निम्न सदन) में कुल संख्या का 10% विपक्ष होता है अर्थात लोकसभा की कुल संख्या ×1/10=विपक्ष

पटना से बेंगलुरु तक की उपादेयता इतनी है कि सुशासन बाबू की बजाय परिवारवादी नेतृत्व /वंश वादी राजनीति की मुखिया कमान लेने को तैयार है ।सुशासन बाबू का भारतीय राजनीति में आम चुनाव के बाद “पलटूराम ” “मौसम वैज्ञानिक” ” कुर्सी प्रिय नेता” “सत्ता भोगी बाबू” की छवि बन चुकी है। नाम से व्यक्ति के व्यक्तित्व ,चरित्र और व्यवहार नहीं बदले जा सकते हैं, जैसे चारा बाबू के बेटे का नाम ‘ चाणक्य ‘ रख दिया जाए तो इससे वह कोई योग्य, विद्वान और जन /लोकप्रिय नेता नहीं बन सकते। इसी प्रकार विपक्षी गठबंधन का नाम बदल देने से राजनीतिक चरित्र नहीं बदल सकती है। राजनीतिक संस्कृति और प्रशासकीय संस्कृति में व्यक्ति के व्यक्तित्व और चरित्र से याद किए जाते हैं ,जैसे यूपीए-2(UPA -2) को आज भी जनता “3C”के रूप में ही याद करती है अर्थात
1.C=corruption (भ्रष्टाचार /व्यक्तिगत लाभ के लिए सत्ता का दुरुपयोग)
2.C=Cut(कटौती वाली सरकार) और
3.C=commission(रिश्वत खोरी/दलाली/मेज के नीचे से/लिफाफे वाली सरकार

यूपीए-2 के नाम का तीतांजलि दी जा रही है ;क्योंकि इस नाम के आते ही जनता दायित्व विहीन सत्ता ,घोटालेबाज सरकार, वैचारिक शून्यता वाली सरकार, आतंकवाद के प्रति नरमी, भारत के प्रति विदेशी दृष्टिकोण ,रबड़ स्टांप वाली सरकार , नेपथ्य के पीछे निर्णय लेनेवाली सरकार, भारत के खजाने को लूटने का इरादा इत्यादि विषय खुलकर सामने आते हैं। विपक्षी गठबंधन का नाम सुनहरे नाम पर रख देने भर से देश की परिस्थितियों में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं आ सकता है। सत्ता जवाबदेही, उत्तरदाई और अपने शासकीय चरित्र के प्रति ईमानदार, सत्य निष्ठा और राजनीतिक आभार की उत्कृष्टता से आ सकती है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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