Saturday, April 27, 2024
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भाषा संस्कृति को जोड़ती है-देश के साहित्यकारों का महाकुंभ

संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए हिंदी भाषा का सतत विकास जरूरी है। भाषा छूटती है तो संस्कृति भी छूट जाती है। भाषा और संस्कृति एक दूसरे की पूरक हैं। दोनों को बनाए रखने और संवर्धन में साहित्यकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। साहित्य हमारी आने वाली पीढ़ी को संवेदनशील बनाती है। आवश्यकता है की नई पीढ़ी पुस्तकों से जुड़े। यह बात निकल कर आई साहित्यकार महाकुंभ से।

हिंदी भाषा के सम्मान हेतु समर्पण के साथ साहित्य, कला, संस्कृति की महक लिए राजस्थान में श्रीनाथ जी की नगरी नाथद्वारा में 6 -7 जनवरी 2024 को दो दिवस साहित्य और संस्कृति जगत के लिए बेहद खास रहे। इन दो दिवसों में देश भर के साहित्यकारों और संस्कृति से जुड़े मनीषियों के महाकुंभ का आयोजन साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा द्वारा किया गया। हिंदी पुरोधा-राष्ट्रभाषा सेनानी साहित्यवाचपति भगवतीप्रसाद देवपुरा की दशम पुण्यतिथि पर कलमकार देश के कोने-कोने से यहां आकर इस साहित्य कुंभ के भागीदार और साक्षी बने। भगवती प्रसाद देवपुरा के हिंदी भाषा के संवर्धन की व्यापक चर्चा, विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों ,अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, बाल पत्रिकाओं की प्रदर्शनी, पुस्तकों का लोकार्पण तथा साहित्यकारों के सम्मान ने साहित्यकार महाकुंभ को नई ऊंचाइयां प्रदान की।

राजस्थान सहित सिक्किम, उड़ीसा, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली राज्यों से आए 60 से ज्यादा साहित्य मनीषियों के स्वागत और सम्मान समारोह आयोजन की बागडोर साहित्य मंडल के प्रधानमंत्री श्याम प्रकाश देवपुरा ने बखूबी संभालते हुए सेवा भावना और मधुर व्यवहार से सभी को भावविभोर कर दिया। उनके साथ-साथ साहित्य मंडल के प्रद्युमन देवपुरा,अनिरुद्ध देवपुरा,अन्जीव रावत,उमादत्त भारद्वाज,वीरेन्द्र लोढ़ा व पूरा देवपुरा परिवार सदस्यों ने सक्रिय भागीदारी से सभी का मन जीत लिया।

हिंदी भाषा, साहित्यिक और सांस्कृतिक विकास के लिए मनीषियों का विभिन्न मानद उपाधियों और साहित्यिक अलंकरणों से किया गया सम्मान कभी न भूलने वाले पलों का साक्षी बना। समस्त साहित्यकारों को मांगलिक अक्षत तिलक लगा कर, शॉल ओढ़ा कर, उपरना अंग वस्त्र, मेवाड़ी पगड़ी,मोतियों का कंठा हार पहना कर गणपति श्रीफल, प्रसाद, के साथ- साथ श्रीनाथ जी की छवि और उपाधि पत्रक भेंट कर कुछ इस तरह से सम्मानित किया गया कि प्रेक्षागृह कृष्ण गोपियों के वेश में खिल उठा।

सम्मानित हुई विभूतियों का गद्यात्मक और काव्यात्मक परिचय का प्रभावी वाचन किया गया। साथ ही कतिपय साहित्यकारों की पुस्तकों का विमोचन भी संबंधित लेखकों के लिए गौरवमय पल रहे। यह सब इतना अद्भुत, अकल्पनीय, उत्साह, ऊर्जा और प्रेम की भावनाओं का मेला बन गया जिसकी स्मृतियां चिरकाल तक सभी संभागियों के दिल और दिमाग में सुगंधित गुलाब के फूलों सी सुवासित रहेंगी।

दो दिन के साहित्यिक महाकुंभ का शुभारंभ प्रथम सत्र में मंचासीन अथितियों ने मां सरस्वती, श्रीनाथ जी, गणपति और स्व.भगवती प्रसाद की छवियों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलित कर किया। सुशीला शर्मा ने मां सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। मंचासीन अथितियों साहित्य मंडल के प्रधानमंत्री श्याम प्रकाश देवपुरा, जगदीश चंद्र शर्मा, रामेश्वर शर्मा ‘ रामू भैया ‘, डॉ. अजय कुमार जैन, राजमल परिहार, जय प्रकाश शाक, बंशीलाल, ने भगवती प्रसाद देवपुरा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करते हुए उनके हिंदी भाषा के संवर्धन, साहित्य के विकास और साहित्यकारों को प्रेरित करने के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला।

उनके द्वारा 1938 में स्थापित साहित्य मंडल के उत्थान और अष्टछाप कवियों के साहित्य के लेखन और संवर्धन पर विस्तार से चर्चा की गई। साहित्य अकादमी भोपाल के अध्यक्ष विकास दवे ने नई पीढ़ी को पुस्तकों से जोड़ने का महत्व प्रतिपादित किया। राजस्थान बाल साहित्य अकादमी के पूर्व सचिव राजेंद्र मोहन शर्मा ने कहा बाल साहित्यकार हमारी आने वाली पीढ़ी को संवेदनशील बना रहे है।

राजस्थान में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ.प्रभात कुमार सिंघल ने कहा कि ऐसे समारोह साहित्य संवर्धन में ऊर्जा का काम करते हैं। अध्यक्षता करते हुए साहित्य मंडल के अध्यक्ष मदन मोहन शर्मा ने कहा भाषा संस्कृति का मूल है। भाषा छूटती है तो संस्कृति भी छूट जाती है। हमें अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए हिंदी भाषा को बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा, जिसके लिए बाबूजी भगवती प्रसाद देवपुरा आजीवन संघर्षरत रहे। सुश्री राज पुरोहित ने गणेश, सरस्वती, श्रीनाथ जी की वंदना, राजस्थानी गीत और हल्दीघाटी के परिपेक्ष में महाराणा प्रताप की शोर्य गाथा गीतों की मनभावन प्रतुतियाँ दी। मंच संचालन करते हुए मंडल के प्रधान मंत्री श्याम प्रसाद देवपुरा ने बताया कि दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी,दिल्ली द्वारा प्रकाशित “अष्टछाप कवियों के विवेचक आचार्य भगवतीप्रसाद देपपुरा” की पुस्तक विदेशों में भी लोकप्रिय हैं तथा कई पाठकों द्वारा मंगवाई गई है।

कार्यक्रम में नाथूलाल देवपुरा एवं श्रीमती भंवरी देवी चापलोत नाथद्वारा को शताब्दी सम्मान से सम्मानित किया गया। बृज कांत साहित्य सम्मान से शहजाद अली किशनगढ़ को, श्री ताराचंद्र भंडारी स्मृति में साहित्य भूषण सम्मान से डॉ.प्रभात कुमार सिंघल कोटा, श्री ललित शंकर दीक्षित स्मृति सम्मान से डॉ.अनिल गहलोत मथुरा और राजेंद्र मोहन शर्मा उदयपुर को, श्री रविन्द्र गुर्जर ( अप्पू) स्मृति सम्मान से संपादक शिरोमणि डॉ.प्रदीप त्रिपाठी गंगटोक और शिक्षा मनीषी डॉ.उपमा शर्मा गंगटोक को, श्रीमती गीता देवी काबरा स्मृति बालश्री सम्मान से सुश्री राजपुरोहित एवं अधिश्री सिंह फालना, प्राची मटोलिया वनस्थली को, श्रीमती शिव चंद ओझा स्मृति सम्मान से प्रमोद शर्मा जयपुर को सम्मानित किया गया।

श्रीमती केशर देवी जानी स्मृति सम्मान से प्रमिला शर्मा उड़ीसा, श्रीमती शशि कला मेहता स्मृति सम्मान से विष्णु कुमार कुमावत, साहित्य कुसुमाकर सम्मान से प्रो.( मेजर ) बुद्ध देव आर्य भिवाड़ी, डॉ.वीना उदय कानपुर एवम् बनवारी लाल परिका, फतेहनगर को सम्मानित किया गया ।
साहित्य सुधाकर अलंकरण से विजय जोशी और डॉ. कृष्णा कुमारी कोटा एवं डॉ. कंचना सक्सेना जयपुर को, साहित्य सौरभ सम्मान से डॉ.वैदेही गौतम कोटा, जगतनारायण भारद्वाज, भिवानी, विनोद कुमार जालंधर, श्याम गुप्ता, जोधपुर, भगवानलाल बंशीवाल, बागोल एवं डॉ.भगवती लाल सुखवाल उदयपुर को, काव्य कलाधर सम्मान से डॉ.कविंद्र नारायण श्रीवास्तव वाराणसी, रघुनंदन हटीला ‘ रघु ‘ कोटा एवम् डॉ.राजमती पोखरना सुराना भीलवाड़ा को, काव्य कौस्तुभ सम्मान से तृप्ति मिश्रा महू एवम् अभिलाषा पारीख जयपुर को, काव्य कुसुम सम्मान से विनय बंसल आगरा, डांगी गणेश राय मावली, रितेंद्र अग्रवाल जयपुर को, संपादक श्री सम्मान से श्याम प्रसाद जैन सूरत, संजय कुमार शर्मा अजमेर और भगवान प्रसाद उपाध्याय प्रयागराज को सम्मानित किया गया।

श्रीमती गीता देवी काबरा स्मृति सम्मान से विकास दवे भोपाल, कुशलेंद्र श्रीवास्तव गदरवाड़ा, माधव शर्मा कोटा,एवम् जगदीश चंद्र शर्मा गिलूनड को, श्याम सुंदर बागला स्मृति सम्मान से डॉ.राजेश चक्र मुरादाबाद को, श्रीमती कमला पुरोहित स्मृति सम्मान से डॉ.शील कौशिक सिरसा को, श्री वैभव कालरा स्मृति सम्मान से प्रभा पारीख भरुंच, डॉ.प्रदीप कुमार शर्मा रायपुर एवम् डॉ.शशि शुक्ल कानपुर को, बाल साहित्य भूषण सम्मान से, राजस्थान से ओम प्रकाश तंवर चुरू, दिनेश विजयवर्गीय बूंदी, योगिराज ‘ योगी कोटा, डॉ.सतीश कुमार किशनगढ़, सुशीला शर्मा जयपुर, शशि सक्सेना जयपुर, डॉ. आशा पांडेय ओझा उदयपुर और त्रिलोकसिंह ठकुरेला आबूरोड, प्रेमसिंह राजावत आगरा, पावन कुमार सिंह सुल्तानपुर, नीलम राकेश लखनऊ,श्याम कृष्ण सक्सेना लखनऊ, डॉ.जयप्रकाश प्रजापति कानपुर, डॉ.रमेश आनंद आगरा एवं डॉ.कौशल पांडेय कानपुर, डॉ.शिव मोहन यादव दिल्ली, सुश्री प्रिया देवगन छतीसगढ़ एवम् डॉ. मेजर शक्तिराज सिरसा को सम्मानित किया गया।

साहित्यकारों के महाकुंभ की गरिमा और लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की इसमें सम्मिलित होने के लिए सभी प्रतिभागी हवाई जहाज, रेल, टैक्सी, निजी कारों से दूर-दूर से यहां पहुंचे। स्मृति सम्मान से सम्मानित करने के लिए भी उनके परिवार के सदस्य समारोह में आए। विशेषता यह भी रही की साहित्यकारों में से ही मंच साझा हुआ और साहित्यकारों ने ही सम्मानित करने तथा सम्मान पाने की खुशी महसूस की। गरिमामय समारोह और सम्मान पाने से अभिभूत साहित्यकार गर्म जोशी के साथ एक दूसरे से परिचय कर रहे थे तो अपनी साहित्यिक सेवाओं और उपलब्धियों को साझा भी कर रहे थे। दो दिन के कभी न भूलने वाली यादों की महक साथ लेकर सभी सृजनधर्मी विदा हुए।

(लेखक कोटा में रहते हैं और विविध समसामयिक साहित्यिक, कला, संस्कृति, पुरातत्व आदि से जुड़े विषयों पर नियमित लेखन करते हैं) 
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