Saturday, April 27, 2024
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भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग (आईएचआरसी) का नया लोगो और आदर्श वाक्य

भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग (आईएचआरसी), अभिलेखीय मामलों पर एक शीर्ष सलाहकार निकाय है। यह अभिलेखों के प्रबंधन और ऐतिहासिक अनुसंधान के लिए उनके उपयोग पर भारत सरकार को परामर्श देने के लिए रचनाकारों, संरक्षकों और अभिलेखों के उपयोगकर्ताओं के एक अखिल भारतीय मंच के रूप में कार्य करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1919 में हुई थी। इसका नेतृत्व केंद्रीय संस्कृति मंत्री करते हैं।

आईएचआरसी की विशिष्ट पहचान और प्रस्तुत लोकाचार को स्पष्ट रूप से संप्रेषित करने के लिए, लोगो और आदर्श वाक्य के लिए डिज़ाइन आमंत्रित किये गये थे। इसके लिए वर्ष 2023 में MyGov पोर्टल पर एक ऑनलाइन प्रतियोगिता शुरू की गई थी। इस प्रतिक्रिया में कुल 436 प्रविष्टियां प्राप्त हुईं।

इस प्रतियोगिता में श्री शौर्य प्रताप सिंह (दिल्ली) द्वारा प्रस्तुत निम्न लोगो और आदर्श वाक्य प्रविष्टि को विजेता के रूप में चुना गया है:

यह लोगो पूरी तरह से भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग की थीम और विशिष्टता को अभिव्यक्त करता है। कमल की पंखुड़ियों के आकार के पृष्ठ भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग को ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए लचीले नोडल संस्थान के रूप में दर्शाते हैं। मध्य में सारनाथ स्तंभ भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतिनिधित्व करता है। रंग थीम के रूप में भूरा रंग भारत के ऐतिहासिक अभिलेखों के संरक्षण, अध्ययन और सम्मान के संगठन के मिशन को सुदृढ़ करता है।

आदर्श वाक्य का अनुवाद इस प्रकार है “जहां इतिहास भविष्य के लिए संरक्षित है।” यह आदर्श वाक्य भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग और उसके कार्य के लिए बहुत महत्व रखता है। भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग ऐतिहासिक दस्तावेजों, पांडुलिपियों, ऐतिहासिक जानकारी के अन्य स्रोतों की पहचान करने, एकत्र करने, सूचीबद्ध करने और बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा करके आयोग यह सुनिश्चित करता है कि मूल्यवान ऐतिहासिक ज्ञान भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहे। इसलिए, आदर्श वाक्य ऐतिहासिक दस्तावेजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लाभ के लिए इन्हें सुलभ बनाने की आयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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रायसीना क्रॉनिकल्स : वैश्विक संवाद का भारतीय मंच

एस जयशंकर व समीर सरन

 

भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक मुद्दों पर बहस करने का भारत का सबसे अग्रणी सम्मेलन यानी रायसीना डायलॉग अपने दसवें वर्ष में प्रवेश कर गया है। रायसीना डायलॉग अब दुनिया भर के बड़े नेताओं और अहम शख्सियतों के सालाना कैलेंडर का एक अहम हिस्सा बन गया है। हर वो महत्वपूर्ण व्यक्ति इसमें शामिल होना चाहता है, जिनका मकसद दुनिया में बदलाव लाना है। जो चाहते हैं कि वैश्विक व्यवस्था में जो यथास्थिति है, उसे तोड़ा जाए। जो अपने खुद के विश्वास और रुख का बचाव करना जानते हैं और जो एक नई व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं। भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक मुद्दों पर बहस करने का भारत का सबसे अग्रणी सम्मेलन यानी रायसीना डायलॉग अपने दसवें वर्ष में प्रवेश कर गया है।

एक ऐसे वक्त में जब दुनिया विचारधाराओं, एजेंडे और हैशटैग के इको चैंबर में उलझी हुई है, तब रायसीना डायलॉग इन सबसे आगे बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ऐसी वैश्विक, समावेशी और विस्तृत बहस करवा रहा है और देश और काल की सीमाओं से भी परे जाती हैं। ये दिल्ली में स्थित भारत का एक ऐसा वैश्विक सार्वजनिक मंच है, जहां आकर बहस करना पूरी दुनिया के लोगों को पसंद है। रायसीना डायलॉग का मकसद बहस की उस परंपरा को संरक्षण और बढ़ावा देना है, जहां आपसी मतभेदों के बावजूद लोग एक-दूसरे से बातचीत करते हैं और उनके नज़रिए को समझने की कोशिश करते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी ये मानना है कि किसी भी सार्वजनिक मंच या संस्था का इस्तेमाल मानवता की भलाई के लिए होना चाहिए। रायसीना डायलॉग एक ऐसा ही मंच है, जिसका काम अपने तरीके से दुनिया की सेवा करना है।

रायसीना डायलॉग वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाने, आपसी सहयोग और साझा जिम्मेदारी की भावना बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है। ये एक ऐसी जगह है, जहां विचार, नज़रिए, विश्वास और राजनीतिक विचारों की विविधता का सम्मान किया जाता है। रायसीना डायलॉग सदियों पुराने उस भारतीय दृष्टिकोण पर भरोसा करता है, जिसमें ये कहा गया है कि हर इंसान के भीतर अच्छा करने की शक्ति होती है। हम इस बात पर भरोसा करते हैं कि हर किसी का पक्ष सुना जाना चाहिए। उसके सुझावों पर विचार किया जाना चाहिए।

हम ये मानते हैं कि बहुलता, विविधता और सबको साथ लेकर चलने की सोच ही हमें मज़बूत बनाती है। इसी राह पर चलते हुए व्यक्तियों और समाज का भी विकास होता है। ये भारत की भी अपनी कहानी है। भारत भी जानता है कि विविधता के सम्मान में ही एकता की शक्ति होती है। रायसीना डायलॉग नेताओं, राजनयिकों, स्कॉलर्स, नीति निर्माताओं, पत्रकारों और अकादमिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को, छात्रों, नौजवानों, वरिष्ठ चिंतकों, बिजनेस और सिविल सोसायटी से जुड़े लोगों को एक ऐसा मंच मुहैया कराता है, जहां वो खुलकर बहस करते हैं। असहमतियों के बावजूद चर्चा और विचार-विमर्श करके बेहतर भविष्य के लिए एक साझा रास्ता खोजें।

एक ऐसे वक्त में जब दुनिया विचारधाराओं, एजेंडे और हैशटैग के इको चैंबर में उलझी हुई है, तब रायसीना डायलॉग इन सबसे आगे बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ऐसी वैश्विक, समावेशी और विस्तृत बहस करवा रहा है और देश और काल की सीमाओं से भी परे जाती हैं।

आज हम रायसीना के एक दशक पूरा होने का जश्न मना रहे हैं तो ये मौका इस बात को भी याद करने का है कि इस एक दशक के दौरान रायसीना डायलॉग ने संवाद के ज़रिए वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षेत्रीय साझेदारी और अन्तर्रमहाद्वीपीय सहयोग बनाने में मदद की। हर साल तीन दिन हम अलग-अलग ध्रुवों में बंटी दुनिया को एक साथ लाते हैं। इस लेख में हम रायसीना डायलॉग की इस एक दशक की यात्रा की खास शक्तियों और विशेषताओं को रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसका दस्तावेज बना रहे हैं। इसे बनाने का सबसे बेहतर तरीका ये है कि हम इस बात को समझें कि रायसीना डायलॉग में शामिल होने के लिए दुनियाभर से आने वाले प्रतिष्ठित लोग इसके बारे में क्या सोचते हैं? आगे दिए गए विचार उन लोगों के हैं, जो रायसीना डायलॉग में शामिल हुए। इसका अनुभव लिया। इस मंच पर अपने विचार साझा किए और इस बात की सराहना की कि इसकी वजह से कितने बदलाव आए।

रायसीना डायलॉग कैसे स्थापित हुआ?
अलग-अलग खांचों में बंटी दुनिया में संवाद और बातचीत की अहमियत को सब स्वीकार करते हैं। इसे प्रमुखता इसलिए मिली क्योंकि वैश्विकरण के दौरान जो वादे किए गए थे, वो पूरे नहीं हुए। लोगों को लगता था कि ये एक ऐसी दुनिया है, जहां उनके रीति-रिवाज और संस्कृतियों का सम्मान किया जाएगा। अलग-अलग विचारों की तारीफ की जाएगी। लोगों के विभिन्न हितों को स्वीकार किया जाएगा, लेकिन ये सारे सपने टूट गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ लोग, देश और संगठन वैश्विकरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सक्षम थे और उन्होंने दूसरों के हितों की कीमत पर ऐसा किया। वैश्विक हकीकतों को इस तरह तोड़ा और मरोड़ा गया कि वो कुछ लोगों के संकीर्ण हितों और ज़रूरतों को पूरा कर सकें। ये सपना एक ऐसी नई दुनिया का था, जो विविधताओं से भरी भी हो और समावेशी भी हो लेकिन इसकी बजाए ज़बरदस्ती से सहमति बनाने की कोशिशें हुईं। इसका नतीजा ये हुआ कि दूसरी तरफ से भी पलटवार हुआ। बौद्धिक तौर पर भी और राजनीतिक तौर पर भी। इसका परिणाम हम आज देख रहे हैं। दुनिया अब पहले से भी ज़्यादा गुटों में बंट गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने सोचा कि अब समय आ गया है कि वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाया जाए। बौद्धिक विचार-विमर्श के क्षेत्र में भी निवेश किया जाए। यही वजह है कि रायसीना डायलॉग में पैनल की मेज़बानी राजनीति, उद्योग जगत, मीडिया और सिविल सोसायटी के लोगों के द्वारा की जाती है।

इस समस्या का एक और पहलू है। सारी आधुनिक तकनीक़ी अब उन्हीं देशों में केंद्रित हो गई हैं, जो दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। ये तकनीक़ी क्षमताएं अब इन देशों के हितों को पूरा करने में साझेदार बन गई हैं। समय बीतने के साथ-साथ इस तकनीक़ी प्रभुत्व का पूरा फायदा उठाया जा रहा है। ऐसे में इस बात पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वैश्विक स्तर पर होने वाली चर्चाओं पर भी इसका असर पड़ रहा है। वैश्विक व्यवस्था की जो श्रेणियां इतिहास के पन्नों में पीछे छूट गईं थी, वो फिर सामने आ गई हैं। इसके साथ ही बहस और उसके ज़रिए संदेश का नया रूप भी उभर रहा है।

इसका लोग के दिमाग पर गहरा असर पड़ा है। जीवन स्तर में सुधार और संसाधनों की लगातर आपूर्ति की चिंताओं ने भी समाज को अपने अंदर देखने पर मज़बूर किया है। घरेलू हितों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ऊपर प्राथमिकता दी जा रही है। सामूहिक हितों पर व्यक्तिगत हित भारी पड़ रहे हैं लेकिन जो देश और बहुपक्षीय संस्थाएं खुद को वैश्विक व्यवस्था का संरक्षक मानते हैं, वो अब भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। इसकी वजह से उन पर कोई भरोसा नहीं कर पा रहा है। तथ्य तो ये है कि दुनिया के स्वयंभू ठेकेदार अब ज़मीनी हक़ीकतों से दूर हो गए हैं। वो अब अपने सभी हिस्सेदारों को एक मंच पर लाने की विश्वसनीयता भी खो चुके हैं।

इसलिए ये ज़रूरी था कि कोई नई संस्था सामने आए और सबको एक साथ लाने में योगदान दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने सोचा कि अब समय आ गया है कि वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाया जाए। बौद्धिक विचार-विमर्श के क्षेत्र में भी निवेश किया जाए। यही वजह है कि रायसीना डायलॉग में पैनल की मेज़बानी राजनीति, उद्योग जगत, मीडिया और सिविल सोसायटी के लोगों के द्वारा की जाती है। कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और विदेश मंत्री उभरते हुए इंजीनियरों और बिजनेस की पढ़ाई कर रहे छात्रों के साथ बैठते हैं। रायसीना डायलॉग ऐसा सम्मेलन है, जहां पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के देश, क्षेत्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी देश एक मंच साझा करते हैं। यहां विवाद के ऊपर धैर्य को, बड़े-बड़े दावों के ऊपर बेहतर समझ को, व्यक्तिगत राय के ऊपर संतुलित दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जाती है। रायसीना डायलॉग वास्तव में वैश्विक सोच वाला भारतीय मंच है।

नीति समाधान का ‘भारतीय’ तरीका
इस साल जब दुनियाभर के प्रतिष्ठित लोग रायसीना डायलॉग-2024 के मंच पर जुटे तो भारत के वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है) की सोच की अहमियत और बढ़ गई। आज जब दुनिया कई गुटों में बंट चुकी है तो ऐसे में एकता और मानवता को बढ़ावा देने के लिए वसुधैव कुटुंबकम वाली सोच की ज़्यादा ज़रूरत है। ऐसे में भारत की ये कहानी दुनिया के कई देशों में गूंजती है, क्योंकि उनकी समस्याओं और उनके समाधान का व्यवहारिक रास्ता यही है। भारत निरंतर विकास की जिन चुनौतियों से जूझ रहा है और जिस तरीके से उनका समाधान कर रहा है, वो कई देशों के सामने एक उदाहरण पेश कर रहा है, जिसे वो भी स्वीकार कर सकते हैं। ऐसे में भारत का भी ये दायित्व है कि वो अपनी अब तक की यात्रा, उसके अनुभव, संघर्ष और उनसे सीखे सबक को दुनिया के साथ साझा करने में बड़ा दिल दिखाए।

दुनिया इस वक्त अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रही है, उसका सामना करते हुए भारत को अपने अनुभवों से सीखना होगा और उसी आधार पर समस्याओं को समाधान खोजना होगा। दुनिया के जो हालात हैं, उसमें कभी कोई हमें एक तरफ खींचेगा, कोई दूसरी तरफ खीचेंगा। ऐसे में हो सकता है भारत को कई बार ऐसे फैसले करने पड़ते हैं, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के हिसाब से बेहतरीन ना हो।

G-20 देशों की अध्यक्षता कर भारत ने दुनिया के सामने राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रीयवाद की विश्वसनीय मिसाल पेश की है। भारत इस बात पर भरोसा करता है जो बड़ा देश अपने लोगों की ज़रूरतों को प्रभावी तरीके से पूरा करता है, वो पूरी मानवता की सेवा करता है। इसका एक नमूना तब देखने को मिला जब पूरी दुनिया को दवाइयों की ज़रूरत पड़ी और भारत ने सबसे पहले प्रतिक्रिया दी। ये डिजिटल डिलीवरी का एक उदाहरण था। भारत प्रतिभा के स्रोत, नई खोज करने वाले, बड़े पैमाने पर निर्माण और आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर सामने आया। घरेलू मोर्चे पर हुए विकास का असर अन्तर्राष्ट्रीय योगदान में भी दिखा। वैश्विक आर्थिक क्रम में 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को जो लक्ष्य भारत ने तय किया है, उससे ना सिर्फ़ दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश यानी भारत के लोगों की तकदीर बदलेगी बल्कि इसके साथ ही वो दुनिया के आर्थिक विकास में ‘ग्रोथ इंजन’ का भी काम करेगा। आज उसकी बहुत ज़रूरत है क्योंकि निष्पक्ष वैश्विकरण के इस दौर में हर देश अपने लिए सामरिक तौर पर स्वायत्तता चाहता है। भारत ने अपनी विरासत को संभालकर रखते हुए जिस बेहतरीन तरीके से स्थानीय और वैश्विक मुद्दों में तालमेल बिठाया है, वो दुनिया के लिए एक मिसाल है।

रायसीना डायलॉग इस बात पर विश्वास करता है कि हमारी विकास यात्रा सभी के लिए खुली होनी चाहिए। ये शासन और नीतियों में पारदर्शिता की वकालत करता है। हर कामयाबी और नाकामी, हर अनुभव और खोज की दुनिया में कहीं ना कहीं और किसी ना किसी के लिए उपयोगी होती है। रायसीना डायलॉग ऐसे ही विचारों का एक मंच है, जो भारत की विविधता को दिखाता है।यही वजह है कि ये सालाना सम्मेलन अब अलग-अलग विचारों, दृष्टिकोणों और मुद्दों पर बात करने का मंच बन गया है।

भारत होने का महत्व?
पिछले एक दशक में हमने जो बदलाव देखे, उनमें सिर्फ़ मात्रात्मक विस्तार नहीं हुआ है। ये बदलाव हमारे सोचने के तरीके, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के मामले में भी देखने को मिल रहा है। हम अपनी विरासत और संस्कृति से प्रेरणा ले रहे हैं और अब अपनी पहचान को लेकर जागरूकता भी बढ़ रही है। हम अपने सपनों को आकार देने और अपने लक्ष्य हासिल करने को लेकर ज़्यादा गंभीरता दिखा रहे हैं। हम कहां जाना चाहते हैं, क्या चाहते हैं। ये जानने के लिए पहले ये समझना ज़रूरी है कि हम क्या थे और कहां थे। परंपरा और तकनीक़ी के बीच प्रभावी तालमेल बिठाकर आधुनिक विकास की चाबी है। आज हमारे अंदर ये निर्धारित करने की क्षमता है कि विकास का कौन सा स्तर छूना चाहते हैं और वहां पहुंचने के लिए कौन सा रास्ता चुनेंगे। इन सब चीजों को जोड़कर ही हम इंडिया को खुद पर भरोसा करने वाला भारत बना सकते हैं। ऐसा भारत जो आत्मनिर्भर भी हो और मज़बूत भी।

दुनिया इस वक्त अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रही है, उसका सामना करते हुए भारत को अपने अनुभवों से सीखना होगा और उसी आधार पर समस्याओं को समाधान खोजना होगा। दुनिया के जो हालात हैं, उसमें कभी कोई हमें एक तरफ खींचेगा, कोई दूसरी तरफ खीचेंगा। ऐसे में हो सकता है भारत को कई बार ऐसे फैसले करने पड़ते हैं, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के हिसाब से बेहतरीन ना हो। इसे वैश्विक नियमों या स्वाभाविक विकल्प के तौर पर पेश किया जा सकता है। यहीं पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद आई हुई स्वतंत्र सोच बड़ा अंतर पैदा कर सकती है। जब इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की बात आती है तो हम ऐसा सामरिक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हैं, जो भारत के लिए फायदेमंद होता है। अब हम ऐसी नीतियां बनाते हैं, जो विश्व कल्याण के साथ-साथ हमारे राष्ट्रीय हितों को भी बढ़ावा देती हैं।

अब हम अतीत की नीतियों से हटकर काम कर रहे हैं और इसे लेकर निराश होने की ज़रूरत नहीं है। ऐसे ही जब यूक्रेन युद्ध की बात आई तो हम दुनिया के ज़्यादातर देशों के साथ इस बात पर चिंता जताते हैं इस आर्थिक परिणाम गंभीर होंगे। हालांकि इसे लेकर कुछ देश जिस तरह का नैरेटिव बनाते हैं, उसका विरोध करके हम ये भी सुनिश्चित करते हैं कि हमारे लोगों पर इसका कम असर पड़े। अब भारत होने का अर्थ ये है कि ज़रूरत पड़ने पर हम धारा के विपरीत बहने की हिम्मत दिखाएं, जब आवश्यकता हो तब योगदान दें और हर वक्त आत्मविश्वास से भरपूर रहें।

ग्लोबल साउथ के देश अब अपने हक की बात करने लगे हैं। फिर चाहे वो आत्मबोध का मसला हो या फिर आत्मविश्वास का। रायसीना डायलॉग में इन देशों की वास्तविक सच्चाइयों को दिखाता है क्योंकि हम सिर्फ़ विशेषाधिकार वालों की बात नहीं करते। इस लिहाज से देखें तो रायसीना बहस का ना सिर्फ़ सक्रिय बल्कि समसामयिक मंच भी है।

रायसीना डायलॉग ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां इस तरह की बहस होती हैं। ये विचार-विमर्श का एक ऐसा जीवंत मंच है, जहां दुनिया हमें समझती है और हम दुनिया से संवाद करते हैं। रायसीना डायलॉग एक ऐसी जगह है जहां दुनिया भारत को आत्मसात करती है और हम ये तय करते हैं कि दुनिया कैसी होनी चाहिए।

हर तरह के विचारों को बहस में जगह देना रायसीना डायलॉग की खासियत है। यहां हम दुनियाभर से उन लोगों को भी बुलाते हैं, जिन्हें चर्चा के पारम्परिक और पहले से स्थापित मंचों पर जगह नहीं मिलती। यहां हम अलग तरह के संवाद को इजाज़त देते हैं क्योंकि विचार अपने आप में अलग होते हैं। हम ऐसे युवाओं को मौका देते हैं, जिनके विचारों में विविधता होती है। वो ऐसी जगहों से आते हैं, जिनकी या तो उपेक्षा की जाती है या जिन्हें बड़ी संस्थाओं में बोलने का मौका नहीं दिया जाता। ये युवा देश और दुनिया के वास्तविक प्रतिनिधि होते हैं। यही वजह है कि रायसीना डायलॉग एक ऐसा मंच बन गया है, जहां नए टैलेंट, नए विचारों, नए दृष्टिकोण का मौका मिलता है। ये ऐसा मंच बन गया है, जहां वो अपनी प्रतिभा दिखाकर बहस के दूसरे पारंपरिक प्लेटफॉर्म तक आसानी से अपनी पहुंच बना सकते हैं।

रायसीना डायलॉग में सिर्फ़ संवाद नहीं होता। यहां इससे भी ज़्यादा चीजें होती हैं। सम्मलेन के तीन दिनों के दौरान चर्चाएं तो होती ही हैं, साथ ही उससे पहले और बाद में भी विचार-विमर्श होता है। ये ऐसा मंच है, जहां नए विचार आते हैं। अगर कोई समाधान सामने आता है तो उसका मूल्यांकन और पुनर्मूल्याकंन होता है। यहां अलग-अलग विचारों का टकराव, उनमें प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता और फिर आखिर में सहयोग होता है। नई भावनाएं ज़ाहिर की जाती हैं, पुराने विचार को त्याग दिया जाता है। खुलकर और ईमानदारी से बहस होती है। बहस के दौरान गर्मागर्मी हो सकती है लेकिन नतीजा हमेशा सकारात्मक निकलता है। अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव की वजह से रायसीना डायलॉग में अब इस तरह की बहस सामान्य होती जा रही है।

अब जबकि रायसीना डायलॉग दसवें वर्ष में प्रवेश कर गया है तो हम ये कह सकते हैं कि इन वर्षों में हमने काफी लंबा सफर तय कर लिया है। शुरूआत में ये एक कमरे में सौ लोगों वाला सम्मेलन था लेकिन अब ये भारत में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सार्थक बहस का एक प्रतिष्ठित मंच बन चुका है। इसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है क्योंकि ये नए भारत में बहस का एक प्रमुख मंच है।

रायसीना डायलॉग के इतिहास के दस्तावेज़ की प्रस्तावना ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस ने लिखी है। ग्रीस और भारत लोकंतत्र के प्राचीन केंद्र रहे हैं और 21वीं सदी में ये दोनों देश दोबारा एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

रायसीना डायलॉग की सफलता में भारत सरकार के समर्थन, नेतृत्व और प्रतिबद्धता का भी हाथ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायसीना डायलॉग के दूसरे एडिशन यानी 2017 के बाद से हर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मौजूद रहे हैं। एक बार उन्होंने इस सम्मेलन के मंच से लोगों को संबोधित किया और एक बार वर्चुअल तरीके से अपनी बात रखी। प्रधानमंत्री 2017 से ही रायसीना डायलॉग में शामिल हो रहे हैं लेकिन उन्होंने सिर्फ़ दो बार ही इस सम्मेलन को संबोधित करके दुनिया को ये दिखाया कि कई बार बोलने से ज़्यादा अहम सुनना होता है। प्रधानमंत्री ने दर्शक के रूप में इस सम्मेलन में शामिल होकर, दूसरों के अनुभवों को सुनकर, उनके दृष्टिकोण को समझकर रायसीना डायलॉग का सम्मान बढ़ाया है।

प्रधानमंत्री ने दर्शक के रूप में इसमें शामिल होकर वक्ताओं और श्रोताओं के बीच की दूरी को कम किया है। रायसीना डायलॉग जितनी अहमियत वक्ताओं को देता है, उतनी ही श्रोताओं को भी देता है। ये हमें याद दिलाता है कि हर विचार पर सावधानी से चर्चा होनी चाहिए। वाद-विवाद और संवाद जीवन का एक अहम हिस्सा है। यहां मतभेदों को एकदम से खारिज़ नहीं किया जाता क्योंकि संवाद ही मेहनत करने और साथ आने का आधार है।

रायसीना डायलॉग के एक दशक पूरा होने के उपलक्ष्य में इस लेख के ज़रिए हम दुनियाभर की प्रतिष्ठित विद्धानों द्वारा लिखे गए निबंध और रायसीना डायलॉग में राष्ट्राध्यक्षों की तरफ से दिए गए भाषणों को एक जगह संकलित कर रहे हैं।

रायसीना डायलॉग के इतिहास के दस्तावेज़ की प्रस्तावना ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस ने लिखी है। ग्रीस और भारत लोकंतत्र के प्राचीन केंद्र रहे हैं और 21वीं सदी में ये दोनों देश दोबारा एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे हैं। किरियोकस मित्सोताकिस दोनों देशों के बीच खुली चर्चा की वकालत करते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर पैदा हुई विभाजन की खाई को पाटा जा सके। इंडो-पैसेफिक और भूमध्य सागर क्षेत्र देशों में एकता बढ़े।

डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने अपने लेख में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, स्वास्थ्य और सैन्य संघर्षों से इस दुनिया पर आने वाले संकट पर बात की है। संकट की इस घड़ी में भारत और डेनमार्क के बीच हुई सामरिक हरित साझेदारी एक उदाहरण पेश करती है कि आपसी सहयोग से जलवायु के लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जा सकता है। उनका मानना है कि साझा वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए हमें अपने सहयोग की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराना होगा। स्लोवेनिया की उप प्रधानमंत्री तांजा फजोन ने 2023 में रायसीना डायलॉग में दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियां पर गंभीर और विविधतापूर्ण चर्चा के लिए इसकी तारीफ की थी। उन्होंने अन्तर्राष्ट्री सहयोग, बहुपक्षीय संस्थाओं और संयुक्त राष्ट्र में फौरन सुधारों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। रायसीना डायलॉग में युवाओं और महिलाओं को शामिल किए जाने की सरहाना करते हुए तांजा फजोन ने भारत और स्लोवेनिया के बीच द्विपक्षीय सहयोग बढ़ने की उम्मीद जताई।

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने दुनिया में बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के बीच रायसीना डायलॉग जैसे मंच पर सामारिक नीतियों पर चर्चा की तारीफ की। उन्होंने भारत और ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी, दोनों देशों के साझा इतिहास, व्यापक सामरिक साझेदारी का जिक्र किया। इसके साथ ही आर्थिक मुद्दों, जलवायु और शिक्षा के क्षेत्र में की जा रही पहलों पर बात की।

रायसीना डायलॉग के अब तक के इतिहास का समापन करते हुए कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन जे हार्पर ने कहा कि “विकसित होती नई वैश्विक व्यवस्था में भारत अपनी सही जगह हासिल कर रहा है”। स्टीफन हार्पर ने वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका, इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में स्थिरता, स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने, लोकतंत्रिक व्यवस्था की मज़बूती और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में भारत के प्रभाव पर बात की।

सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान साउद ने अपने निबंध में भारत और अरब देशों के बीच गहरे सांस्कृति रिश्तों की बात की, जो अब मज़बूत सामरिक संबंधों में बदल चुके हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ रहा है। भारत अब सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत और सऊदी अरब की साझेदारी से दोनों देशों का भविष्य समृद्ध होगा। केन्या के इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स (IEA) के सीईओ क्वामे ओवाइनो और इसी इंस्टीट्यूट में संविधान, कानून और आर्थिक प्रोग्राम की प्रमुख जैकलीन कागुमे ने अफ्रीकन यूनियन (AU) को जी-20 में शामिल किए जाने को एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि इस वक्त डिग्लोबलाइजेशन का जो ट्रेंड चल रहा है, उसका विरोध करने और वैश्विन संस्थाओं में सुधार करने में अफ्रीकन यूनियन अहम भूमिका निभा सकती है।

जापान बैंक के चेयरमैन तादसी माइदा ने भारत के आर्थिक विकास, जापान के साथ उसकी साझेदारी और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र के महत्व पर बात की। उन्होंने वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत-जापान सहयोग पर ज़ोर दिया। ब्रिटेन के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सर एंटनी रेडकिन ने 2020 के दशक में भारत और के ब्रिटेन के बीच बदलते संबंधों की बात की और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में उनके देश के हितों की बात की। उन्होंने समुद्री, वायु और ज़मीनी सुरक्षा में साझेदारी बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत पर बल दिया

PATH थिंक टैंक की डायरेक्टर और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में लेक्चरर नित्या मोहन खेमका ने खास इस तरह की रणनीति बनाने की ज़रूरत बताई, जिससे लीडरशिप की भूमिका में महिला की प्रतिनिधित्व भी बढ़े। उन्होंने आर्थिक क्षेत्र में वरिष्ठ पदों में पहुंचने के लिए महिलाओं के सामने आने वाली संस्थागत बाधाओं, पूर्वाग्रहों और चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने ये कहते हुए अपनी बात ख़त्म की थी कि विकास परियोजना को फाइनेंस करने वाले बैंकों में महिलाओं को लीडरशिप के रोल में लाने से लैंगिक समानता तो बढ़ेगी ही, साथ ही ये बैंक ज़्यादा कुशल और प्रभावी तौर पर काम कर सकेंगे। रियो डि जेनेरिया सिटी हॉल की इंटरनेशनल रिलेशन मैनेजर कैमिली डोस सांतोस ने जी-20 सम्मेलन में लैंगिक असमानता पर चर्चा की अहमियत बताई। उन्होंने खास तौर पर उन महिलाओं के मुद्दों पर ज़ोर दिया जो घरेलू और देखभाल करने के काम में शामिल हैं, लेकिन इसके बदले उन्हें पैसे नहीं मिलते। कैमिली डोस सांतोस ने कहा कि आम तौर पर कमज़ोर वर्ग से आने वाली महिलाएं ही इन अवैतनिक कामों का सारा बोझ उठाती हैं। उन्होंने कहा अब वक्त आ गया है कि देखभाल के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के विकास के लिए भी व्यापक नीतियां बनाईं जाएं।

इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना के कमांडर एडमिरल जॉन एक्विलनो ने बहुपक्षीय वार्ता को आकार देने, खासकर भारत और अमेरिका के रिश्तों में अहम भूमिका निभाने के लिए रायसीना डायलॉग की सराहाना की। उन्होंने कहा कि रायसीना डायलॉग ने आपसी सहयोग बढ़ाने, QUAD संगठन को दोबारा खड़ा करने और दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस सम्मेलन में नियमित तौर पर आने वाले ऑस्ट्रेलिया की डिफेंस फोर्स के प्रमुख जनरल अंगुस कैंपबेल और ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग के सचिव ग्रेग मोरियार्टी ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग और साझेदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण को पूरा करने में भारत की अहम भूमिका का भी जिक्र किया। जापान की सेल्फ डिफेंस फोर्स के पूर्व चीफ ऑफ ज्वाइंट स्टाफ जनरल यामाज़ाकी कोजी ने नए विचारों और सार्थक बहस को बेहतरीन मंच मुहैया कराने के लिए रायसीना डायलॉग की तारीफ की। इसके साथ ही उन्होंने इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में भारत-जापान रक्षा सहयोग पर ज़ोर दिया

थिंक टैक कार्निज यूरोप के निदेशक और रिसर्च एनालिस्ट रोसा बाल्फोर और ज़कारिया अल शेमली ने अपने लेख में इस बात का जिक्र किया किया यूरोपीयन यूनियन (EU) के देशों के नीति दोहरे मानदंड वाली है। उन्होंने कहा कि यूरोपीयन यूनियन खुद के बारे में जो सोचता है, उसमें और ईयू को लेकर ग्लोबल साउथ के देशों के दृष्टिकोण में काफी अंतर है। ऐसे में यूरोपीयन यूनियन को अपनी नीतियों में बदलाव करना चाहिए, जिससे वो ग्लोबल साउथ के साथ बेहतर रिश्ते बना सके। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की डिप्टी डायरेक्टर अनिर्बन सरमा ने कहा कि भारत के जी-20 की अध्यक्षता करने के बाद से डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) को लेकर दुनिया के बीच इसकी जागरूकता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि आर्थिक क्षेत्र में समावेशी विकास और तकनीकी आधारित विकास में DPI की क्षमता को सब पहचानने लगे हैं। अनिर्बन सरमा के मुताबिक भारत के डीपीआई मॉडल की वजह से सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराने के क्षेत्र में क्रांति आ गई है। ग्लोबल साउथ के देशों में भी सार्वजनिक सेवा क्षेत्र के लिए भी ये एक बेहतरीन मॉडल हो सकता है।

जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल एंड एरिया स्टडीज की प्रमुख और प्रोफेसर अमृता नार्लिकर ने वैश्विकरण को संरक्षित करने पर तो ज़ोर दिया लेकिन साथ ही ये भी कहा कि इसकी नीतियों, दिशा और स्तर को लेकर मूलभूत तौर पर दोबारा से विचार करने की ज़रूरत है। उन्होंने वैश्विकरण और फायदों और कमियों का भी जिक्र किया। उन्होंने वैश्विकरण की सुरक्षा, स्थिरता और इसकी जिम्मेदारी लेने के मौजूदा मॉडल की आलोचना करते हुए कहा कि एक सुरक्षित, स्थिर और समावेशी वैश्विकरण के लिए ये ज़रूरी है कि हम इसके ‘भारतीय मॉडल’ को अपनाएं।

स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल ब्लिडट ने दुनिया में पैदा हुए भू-राजनीतिक संकटों पर बात की। उन्होंने वैश्विक व्यापारिक समझौते बढ़ाने पर ज़ोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने ये भी जलवायु परिवर्तन और दुनिया के सामने जो स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुईं हैं, उससे निपटने में नई तकनीकी के प्रभाव के बारे में विचार करना चाहिए। उन्होंने वैश्विक विचार-विमर्श में भारत की बढ़ते असर का जिक्र करते हुए कहा कि रायसीना डायलॉग ऐसी बहसों और अलग-अलग दृष्टिकोणों का पेश करने का एक शानदार मंच है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सदाबहार दोस्ती का जिक्र किया। रायसीना डायलॉग के नज़रिए का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ का अगुआ बनने के लिए भारत जिस तरह पश्चिमी देशों की सामारिक चिंताओं का ख्याल रखते हुए अपनी स्वतंत्र नीतियां बना रहा है, वो तारीफ के काबिल है। मैक्सिको के विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव मार्सेलो एबर्राड एशिया-पैसेफिक क्षेत्र, खासकर भारत की बढ़ती अहमियत का जिक्र किया। मैक्सिको के साथ भारत के राजनयिक रिश्तों को 70 साल से ज़्यादा हो चुके हैं। उन्होंने दुनिया के सामने आ रही चुनौतियों पर समावेशी संवाद को बढ़ावा देने और स्थायी समाधान तलाशने के लिए रायसीना डायलॉग की सराहना की।

मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में सामरिक तकनीकी और साइबर सिक्योरिटी प्रोग्राम के डायरेक्टर मोहम्मद सोलीमान ने मध्य-पूर्व क्षेत्र की जटिल सुरक्षा स्थिति, इज़रायल और गाज़ा के बीच चल रहे संघर्ष और इसके समाधान के लिए अब्राहम समझौते के महत्व का जिक्र किया।

CIA के पूर्व निदेशक डेविड पेट्रोएस ने कहा कि वो रायसीना डायलॉग को भारत के प्रतिबिंब के तौर पर देखते हैं। उन्होंने कहा कि भारत जिस तरह QUAD और BRICS के सदस्य के रूप में दोनों संगठनों के बीच सफलता से संतुलन बनाकर चल रहा है, वो भारत की अनूठी भूमिका और अपनी एक स्वतंत्र पहचान को दिखाता है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे रायसीना डायलॉग भी संवाद और बहस का एक महत्वपूर्ण वैश्विक मंच बनता जा रहा है।

रायसीना डायलॉग के अब तक के इतिहास का समापन करते हुए कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन जे हार्पर ने कहा कि “विकसित होती नई वैश्विक व्यवस्था में भारत अपनी सही जगह हासिल कर रहा है”। स्टीफन हार्पर ने वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका, इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में स्थिरता, स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने, लोकतंत्रिक व्यवस्था की मज़बूती और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में भारत के प्रभाव पर बात की। उन्होंने कहा कि नई विश्व व्यवस्था में भारत आत्मविश्वास से भरी जो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, उसकी झलक रायसीना डायलॉग में भी दिखती है और इस बात के लिए इसकी तारीफ की जानी चाहिए।

रायसीना क्रॉनिकल्स इस सम्मेलन में आए विशिष्ट लोगों के योगदान का संकलन भर नहीं है। ये पिछले एक दशक के अन्तर्राष्ट्रीय मामलों का एक रिपोर्ट कार्ड भी है। रायसीना डायलॉग की एक दशक की यात्रा को लेकर जो दस्तावेज प्रकाशित किया गया है उसमें शामिल किए गए मूल लेख और यहां दिए गए भाषण सामूहिक तौर पर इन लोगों की अहम सोच को भी दिखाते हैं। पहली, भारत में होने वाला संवाद और बहस भी दुनियाभर में अहमियत रखी है क्योंकि इस मंच पर हम सार्थक चर्चा और विचार-विमर्श कराने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। दूसरी, रायसीना डायलॉग की एक दशक की यात्रा वैश्विक स्तर पर उभरते भारत का भी प्रतीक है। जैसे-जैसे दुनिया के साथ भारत के संबंध विकसित होंगे, वैसे-वैसे हम भी रायसीना डायलॉग में नए, अनूठे और बेहतर सुधार करेंगे। अब जबकि कई लोग ये कह चुके हैं कि यहां होने वाले संवाद दुनिया के सार्वजनिक हितों के लिए अच्छे हैं तो रायसीना डायलॉग के दूसरे दशक में प्रवेश के साथ-साथ हमें भी अपनी व्यापाक जिम्मेदारी का एहसास है। हम अब उसी हिसाब से खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे।

साभार – https://www।orfonline।org/hindi/ से

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आर्यसमाज के भूषण पण्डित गुरुदत्तजी के अद्भुत जीवन का कारण क्या था?

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के सच्चे भक्त विद्यानिधि, तर्कवाचस्पति, मुनिवर, पण्डित गुरुदत्त जी विद्यार्थी, एमए का जन्म २६ अप्रैल सन् १८६४ ई० को मुलतान नगर में और देहान्त २६ वर्ष की आयु में लाहौर नगर में १९ मार्च सन् १८९० ई को हुआ था। आर्य जगत् में कौन मनुष्य है, जो उनकी अद्भुत विद्या योग्यता, सच्ची धर्मवृत्ति और परोपकार को नहीं जानता? उनके शुद्ध जीवन, उग्र बुद्धि और दंभरहित त्याग को वह पुरुष जिसने उनको एक बेर भी देखा हो बतला सकता है। महर्षि दयानन्द के ऋषिजीवन रूपी आदर्श को धारण करने की वेगवान् इच्छा, योग समाधि से बुद्धि को निर्मल शुद्ध बनाने के उपाय, और वेदों के पढ़ने पढ़ाने में तद्रूप होने का पुरुषार्थ एक मात्र उनका आर्य्यजीवन बोधन कराता है।

अंग्रेजी पदार्थविद्या तथा फिलासोफी के वारपार होने पर उनकी पश्चिमी ज्ञानकाण्ड की सीमा का पता लग चुका था। जब वह पश्चिमी पदार्थविद्या और फिलासोफी क उत्तम से उत्तम पुस्तक पाठ करते थे, तो उनको भलीभांति विदित होता था कि संस्कृत विद्या के अथाह समुद्र के सन्मुख अंग्रेजी तथा पश्चिमी विद्या की क्या तुलना हो सकती है? एक समय लाहौर आर्य्यसमाज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर उन्होंने अंग्रेजी में व्याख्यान देते हुए ज्योतिष शास्त्र और सूर्य्य सिद्धान्त की महिमा दर्शाते हुए, यह वचन कहे थे कि संस्कृत फिलासोफी का वहां आरम्भ होता है, जहां कि अंग्रेजी फिलासोफी समाप्त होती है।
वह कहा करते थे कि पश्चिमी विद्याओं में पदार्थविद्या उत्तम है और यह पदार्थविद्या तथा इसकी बनाई हुई कलें बुद्धि बल के महत्व को प्रकट करती हैं, इन कलों से भी अद्भुत विचारणीय पश्चिमी पदार्थविद्या के बाद हैं, परन्तु वह सर्व वाद वैशेषिक शास्त्र के आगे शान्त हो जाते हैं। वह कहते थे कि कणाद मुनि से बढ़कर कोई भी पदार्थविद्या का वेत्ता इस समय पृथिवी पर उपस्थित नहीं है। कई बेर उनको आर्य सज्जनों ने यह कहते हुए सुना कि मैं चाहता हूं कि पढ़ी हुई अंग्रेजी विद्या भूलजाऊँ, क्योंकि जो बात अंग्रेजी के महान् से महान् पुस्तक में सहस्र पृष्ठ में मिलती है, वह बात वेद के एक मन्त्र अथवा ऋषि के एक सूत्र में लिखी हुई पाई जाती है। वह कहते थे कि जो “मिल” ने अपने न्याय में सिद्धान्त रूप से लिखा है वह तो न्यायदर्शन के दो ही सूत्रों का आशय है। एक बेर उन्होंने कहा कि हम एक पुस्तक लिखने का विचार करते हैं जिसमें दर्शायेंगे कि भूत केवल पांच ही हो सकते हैं न कि ६४ जैसा कि वर्तमान समय में पश्चिमी पदार्थवेत्ता मान रहे हैं।
सन् १८८९ के शीतकाल में, मैं और लाला जगन्नाथ जी उनके दर्शनों को गये। वह उस रोग से जो अन्त को उनकी मृत्यु का कारण हुआ ग्रसे जा चुके थे। हम ने पूछा कि पण्डित जी आप प्रेम तथा विद्या की मूर्ति होने पर क्यों रोग से पकड़े गए? उत्तर में मुस्कराते हुए सौम्य दृष्टि से हम दोनों को कहने लगे कि क्या आप समझते हो कि स्वामी जी की महान् विद्या और उनका महान् बल मेरी इस मलीन बुद्धि और तुच्छ शरीर में आ सकता है, कदापि नहीं। ईश्वर मुझे इस से उत्तम बुद्धि और उत्तम शरीर देने का उपाय कर रहा है, ताकि मैं पुनर्जन्म में अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकूं। यह वचन सुनकर हम आश्चर्य सागर में डूब गए और एक एक शब्द पर विचार करने लगे। पुनर्जन्म को तो हम भी मानते थे पर पुनर्जन्म का अनुभव और उसकी महिमा उनके यह वचन सुनकर ही मन में जम गई। स्थूलदर्शी जहां रोगों से पीड़ित होने पर निराशा के समुद्र में मूर्छित डूब जाते हैं, वहां तपस्वी पण्डित जी के यह आशामय वचन कि मृत्यु के पीछे हमें स्वामी जी के ऋषिजीवन धारण करने का अवसर मिलेगा कैसे सारगर्भित और सच्चे आर्य्य जीवन के बोधक हैं।
जबकि वह रोग से निर्बल हो रहे थे तो एक दिन कहने लगे के हमारा विचार है, कि एक व्याख्यान इस विषय पर दें कि मौत क्या है? मृत्यु कोई गुप्त वस्तु नहीं है। लोग मौत से व्यर्थ भय करते हैं। यह सच है कि पण्डित जी से ईश्वर उपासक और धार्मिक, योगाभ्यासी के लिए मौत भयानक न हो, परन्तु वह मनुष्य जो ऐसी उच्च अवस्था को नहीं प्राप्त हुआ वह क्योंकर अपने मुख से कह सकता है कि मौत भयानक नहीं है? पण्डित जी ने इस वाक्य को अपनी मौत पर जीवन में सिद्ध कर दिखाया। श्रीयुत लाला जयचन्द्र जी तथा भक्त श्री पण्डित रैमलजी, जो बहुधा उनके पास रोग की अवस्था में रहते थे वह उनकी मृत्यु से निर्भय होने की साक्षी भली प्रकार दे सकते हैं।
एक बार लाहौर समाज की धर्मचर्चा सभा में “वर्तमान समय की विद्या प्रणाली” के विषय में विचार होना था। इस वाद में कई बीए, एमए भाई अंग्रेजी विद्या तथा वर्तमान समय की विद्या प्रणाली की उत्तमता दर्शाने का यत्न करते रहे। अन्त को पण्डित जी ने “मातृमान् पितृमानाचार्य्यमान् पुरुषो वेद” की प्रतीक रखकर एक अद्भुत और सारगर्भित रीति से उक्त वचन की व्याख्या करते हुए लोगों को निश्चय करा दिया कि अंग्रेजी विद्या भ्रान्ति युक्त होने से विद्या ही कहलाने के योग्य नहीं है और वर्तमान शिक्षा प्रणाली शिर से पग तक छिद्रों से भरपूर है। उनका एक वचन कुछ ऐसा था कि “Modern System of Education is rotten from top to bottom.” एक समय इसी प्रकार धर्मचर्चा के अन्त में जबकि लोग “वक्तृता” के विषय में वाद विवाद कर चुके तो पण्डित जी ने अपने व्याख्यान में यह सिद्ध किया कि सत्य कथन ही का दूसरा नाम अद्भुत वक्तृता है।
जब कभी वह आर्य्य सभासदों को अपने नाम के पीछे अपनी ज्ञाति लिखते हुए देखते तो वह रोक देते थे, यह कहते हुए कि यह ज्ञाति की उपाधि किसी गुण कर्म की बोधक नहीं किन्तु रूढ़ी है और साथ ही कहते थे कि वर्ण तो गुण, कर्म, स्वभाव के अनुकूल चार हो सकती हैं।
जब कभी वह हमें सुनाते कि यूरोप में अमुक नवीन वाद किसी विद्या विषय में निकला है, तो अत्यन्त प्रसन्न होकर साथ ही कहते कि यूरोप सत्य के निकट आ रहा है यदि कोई उनको ही कहता कि पण्डित जी यूरोप तो उन्नति कर रहा है, तो कहते कि भाई वेद के निकट आ रहा है। सत्य नियम की उन्नति कोई क्या कर सकता है? क्या दो और दो चार का कोई नवीन वाद उल्लंघन कर सकता है, कदापि नहीं। वह कहते थे कि वर्तमान यूरोप योगविद्या से शून्य होने के कारण सत्य नियमों को निर्भ्रान्त रीति से नहीं जान सकता। इसीलिए यूरोप में एक वाद आज स्थापित किया जाता और दश वर्ष के पीछे उसको खण्डन करना पड़ता है।
यदि योगदृष्टि से यूरोप के विद्वान् युक्त होते, तो जो वाद आज निकालते वह कभी परसों खण्डन न होते। उनका कथन था कि विद्या बिना योग के अधूरी रहा करती है। आर्ष ग्रन्थ इसीलिए पूर्ण हैं, कि उनके कर्त्ता योगी थे। अष्टाध्यायी इसीलिए उत्तम है कि महर्षि पाणिनि योगी थे। दर्शन शास्त्र के कर्त्ता अपने अपने विषय का इसलिए उत्तम वर्णन करते हैं कि वह योगी थे। कई मित्र उनके यह वचन सुन कर कह देते कि योगी तो किसी काम करने के योग्य नहीं रहते। इस शंका के उत्तर में वह कहते कि यह सत्य नहीं है, देखो महर्षि पतञ्जलि ने योगी होने पर योग शास्त्र और शब्द शास्त्र अर्थात् महाभाष्य लिखा, कृष्ण देव ने योगी होने पर कितना परोपकार किया था? प्राचीन समय में कोई ऋषि मुनि योग से रहित न था और सब ही उत्तम वैदिक कर्म्म करते थे। वर्तमान समय में क्या स्वामी जी ने योगी होने पर थोड़ा काम किया है? हां यह तो सत्य है कि योग व्यर्थ पुरुषार्थ नहीं करते।
पण्डित जी कहा करते थे कि वर्तमान पश्चिमी आयुर्वेद योग के ही न होने के कारण अधूरा बन रहा है। टूटी हुई अङ्गहीन कला से उसकी क्रियामान उत्तम दशा का पूर्ण अनुमान जैसे नहीं हो सकता, वैसे ही मृत शरीर के केवल चीरने फाड़ने से जीते हुए क्रियामान शरीर का पूर्ण ज्ञान नहीं मिल सकता। एक योगी जीते जागते शरीर की कला को योग दृष्टि से देखता हुआ उसके रोग के कारण को यथार्थ जान सकता और पूर्ण औषधी बतला सकता है परन्तु प्रत्यक्षप्रिय पश्चिमी वैद्यक विद्या यह नहीं कर सकती। जब कोई विद्यार्थी उनसे प्रश्न किया करता कि मैं आत्मोन्नति के लिए क्या करूँ, तो वह उत्तर में कहते कि अष्टाध्यायी से लेकर वेद पर्य्यन्त पढ़ो और अष्टांग योग के साधन करो। विवाह की बात करते हुए एक समय वह कहने लगे कि हम अपने लड़के को जब वह स्वयं विवाह करना चाहेगा तो यह प्रेरणा कर देंगे कि पाताल देश में जाकर वहां किसी योग्य स्त्री को आर्य्य बनाओ और उससे विवाह करो।
वह अष्टाध्यायी श्रेणी के सर्व विद्यार्थियों को उपदेश किया करते थे कि प्रातः काल सन्ध्या के पश्चात् एक घण्टा सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा करो, वह कहते थे कि मैंने ११ बेर सत्यार्थ प्रकाश को विचार पूर्वक पढ़ा है, और जब जब पढ़ा नए से नए अर्थों का भान मेरे मन में हुआ है। वह कहते थे कि शोक की बात है कि लोग सत्यार्थ प्रकाश को कई बेर नहीं पढ़ते। एक अवसर पर प्राणायाम का वर्णन करते हुए वह कहने लगे कि असाध्य रोगों को यही प्राणायाम दूर कर सकता है। उन्होंने बतलाया कि कभी कभी एक हृष्ट पुष्ट मनुष्य को प्राणायाम निर्बल कर देता है, परन्तु थोड़े ही काल के पश्चात् वह मनुष्य बलवान् और पुष्ट हो जाता है। उनका कथन था कि सृष्टि में सबसे उपयोगी वस्तु बिन मोल मिला करती है, इसलिए सबसे उत्तम औषधी असाध्य रोगों के लिए वायु ही है, और यह वायु प्राणायाम की रीति से हमें औषधी का काम दे सकती है।
एक बार लाला शिवनारायण अपने पुत्र को पण्डित जी के पास ले गये और कहने लगे कि पण्डितजी इसको मैं अष्टाध्यायी पढ़ाता हूं और मेरा विचार है कि इसको अंग्रेजी न पढ़ाऊं आपकी क्या सम्मति है? पण्डित जी बोले हमारी आपके अनुकूल सम्मति है, जब सौ में ९५ पुरुष बिना अंग्रेजी पढ़े के रोटी कमा सकते हैं तो आपको रोटी के लिए भी इसको अंग्रेजी नहीं पढ़ानी चाहिए।
एक बार मेरे साथ पण्डित जी ने प्रातः काल भ्रमण करने का विचार किया। मैं प्रातः काल ही उनके गृह पर गया और सब से ऊपर के कोठे पर उनको एक टूटी सी खाट पर बिना बिछोने और सिरहाने के सोता पाया। मैंने एक ही आवाज दी तुरन्त उठ कर मेरे साथ हो लिए। मैंने पूछा पण्डित जी आपको ऐसी खाट पर नींद आ गई, कहने लगे कि टूटी खाट क्या निद्रा को रोक सकती है? मैंने कहा कि आपको ऐसी खाट पर सोना शोभा देता है, कहने लगे कि सोना ही है कहीं सो रहे, बहुधा कंगाल लोग भी जब ऐसी खाटों पर सोते हैं तो हम क्या निराले हैं?
इस प्रकार बात चीत करते हुए मैं और लाला जगन्नाथ जी पण्डित जी के साथ नगर से दूर निकल गये। रास्ते में उन्होंने छोटे-छोटे ग्रामों में रहने के लाभ दर्शाये, फिर घोड़ों की कथाऐं वर्णन करते हुए हमें निश्चय करा दिया कि पशुओं में भी हमारे जैसा आत्मा है और यह भी सुख दुःख को अनुभव करते हैं। गोल बाग में आकर उन्होंने हमें बतलाया कि वनस्पति में भी आत्मा मूर्छित अवस्था में है और एक फूल को तोड़कर बहुत कुछ विद्या विषयक बातें वनस्पतियों की सुनाते रहे। इतने में लाला गणपतराय जी भी आ मिले और हम सब एकत्र होकर पण्डित जी की उत्तम शिक्षाएं ग्रहण करने लगे। उन्होंने गन्दे विषयासक्ति के दर्शाने वाले कल्पित ग्रन्थों के पढ़ने का खण्डन किया और पश्चिमी देशों के बड़े बड़े इन्द्रियाराम धनी पुरुषों के पापमय जीवनों का वर्णन करते हुए कहा कि निर्वाह मात्र के लिए धर्म से धन प्राप्त करना साहूकारी है न कि पाप से रुपया कमा कर विषय भोग करना अमीरी है।
अन्त में उन्होंने कहा कि पूर्ण उन्नत मनुष्य का दृष्टान्त ऋषि जीवन है। फिर उन्होंने कहा कि वह प्राचीन ऋषि, नहीं जान पड़ता कि कैसे अद्भुत विद्वान् होंगे जो अपने हाथों से, अनुभव करते हुए यह लिख गए कि संसार में ईश्वर इस प्रकार प्रतीत हो रहा है जैसा कि खारे जल में लवण विद्यमान् है।
एक समय लाहौर में ईसाइयों के स्थान में एक अंग्रेज ने व्याख्यान दिया जिसमें उसने मैक्समूलर आदि के प्रमाणों से वैदिक धर्म को दूषित बतलाया। पण्डित जी भी वहां गए हुए थे। आते हुए रास्ते में कहने लगे कि हम इसके कथन से सम्मत नहीं हैं। क्या यह हो सकता है कि हम भारतवर्ष के निवासी लण्डन में जाकर अंग्रेजी के प्रोफैसरों के सन्मुख “शेक्सपीअर” और “मैकाले” की अशुद्धियां निकालें और अंग्रेजी शब्दों के अपने अर्थ अंग्रेजों को सुनाकर कहें, कि तुम “शेक्सपीअर” नहीं जानते हमसे अर्थ सीखो। क्या “मैक्समूलर” वेदों के अर्थ अधिक जान सकता है अथवा प्राचीन ऋषि मुनि? निरुक्त आदि में वेद के अर्थ मिल सकते हैं न किसी विदेशी की कल्पना वेद के अर्थ को जान सकती है।
जब कोई उनसे स्वामी दयानन्द जी के जीवन चरित्र के विषय में प्रश्न करता तो वह सब काम छोड़कर उसके प्रश्न को सुनते और उत्तर देने को प्रस्तुत हो जाते। एक बेर किसी भद्रपुरुष ने उनको कहा कि पण्डित जी आप तो स्वामी जी के योगी होने के विषय में इतनी बातें विदित हैं, आप क्यों नहीं उनका जीवन चरित्र लिखते? उत्तर में बड़ी गम्भीरता से कहने लगे, कि हां, यत्न तो कर रहा हूं कि स्वामी जी का जीवन चरित्र लिखा जावे, कुछ कुछ आरम्भ तो कर दिया है। उसने कहा कि कब छपेगा, बोले कि आप पत्र पर जीवन चरित्र समझ रहे हो, हमारे विचार में स्वामी दयानन्द का जीवन चरित्र जीवन में लिखना चाहिए। मैं यत्न तो कर रहा हूं कि अपने जीवन में उनके जीवन को लिख सकूं।
एक बार अमृतसर समाज के उत्सव पर व्याख्यान देते हुए, उन्होंने दर्शाया कि स्वामी जी के महत्व का लोगों को २०० वर्ष के पीछे बोधन होगा जब कि विद्वान् पक्षपात् से रहित हो कर उनके ग्रन्थों को विचारेंगे। अभी लोगों की यह दशा नहीं कि योगी की बातों को जान सकें। वह कहा करते थे कि जैसे पांच सहस्र वर्ष व्यतीत हुए कि एक महाभारत युद्ध पृथिवी पर हुआ था, जिसके कारण वेदादि शास्त्रों का पठन पाठन पृथिवी पर से नष्ट होता गया, वैसे ही अब एक और विद्यारूपी महाभारत युद्ध की पृथिवी पर सामग्री एकत्र हो रही है, जब कि पूर्व और पश्चिम के मध्य में विद्या युद्ध होगा और जिसके कारण फिर वेदों का पठन पाठन संसार में फैलेगा और इस आत्मिक युद्ध का बीज स्वामी दयानन्द ने आर्य्यसमाज रूपी साधन द्वारा भूगोल में डाल दिया है।
एक अवसर पर किसी पुरूष के उत्तर में उन्होंने बतलाया कि स्वामी जी ने अजमेर में कहा था कि महाराजा युद्धिष्ठिर के राज से पहले चूहड़े अर्थात् भंगी आर्य्यावर्त्त में नहीं होते थे। आर्ष ग्रन्थों में भंगियों के लिए कोई शब्द नहीं है।
एक बेर, लाहौर में जब कि लोग अष्टाध्यायी पढ़ने के विपरीत युक्तियां घड़ रहे थे, तो उन्होंने समाज में एक व्याख्यान इस विषय पर दिया कि “लोग क्या कहेंगे” जिसमें उन्होंने सिद्ध किया कि जब कोई नया शुभ काम आरम्भ किया जाता है तब ही करने वालों के मन में उक्त प्रकार प्रश्न उठा करते हैं, परन्तु दृढ़ता के आगे ऐसे ऐसे प्रश्न स्वयं ही शान्त हो जाया करते हैं।
आरोग्यता सम्बन्धी बहुत सी बातें वह हमको बतलाया करते थे। उनका कथन था कि प्रातः काल भ्रमण करने के पीछे पांच वा सात मिनट आते ही लेट जाना चाहिए, इससे मल उतर आता है यदि रास्ते में भ्रमण करते समय एक संतरा खा लिया जाए तो और भी हितकारी है। वह मद्य, मांस, तमाकू, भंग आदि का खाना पीना सबको वर्जन करते थे रोटी के संग जल पान करने को अहित दर्शाते थे। वह स्वयं, जल रोटी खाने के कुछ काल पीछे पान करते थे। एक बेर स्वामी स्वात्मानन्द जी ने उनसे प्रश्न किया, कि वीर क्षत्रियों को मांस खाने की आवश्यकता है वा नहीं? इसके उत्तर में उन्होंने यूनान देश के योद्धाओं, नामधारी सिक्खों और ग्राम निवासी वीरों के दृष्टान्तों से सिद्ध कर दिया कि क्षत्री को मांस खाने की कुछ भी आवश्यकता नहीं है, उन्होंने अर्जुन के दृष्टान्त से विदित किया कि वीरता का एक कारण आत्मिक संकल्प आदि है। क्योंकि जिस समय अर्जुन ने विचार किया था कि मुझको नहीं लड़ना चाहिए वह कायर हो गया, परन्तु जब कृष्णदेव के उपदेश ने उसके मनोभाव पलट दिए तो वही अर्जुन फिर वीर हो कर लड़ने लगा। अन्त में उन्होंने कहा कि अखण्ड ब्रह्मचर्य वीरता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। स्वात्मानन्द जी मान गये कि बिना मांस भक्षण किये क्षत्री वीर हो सकते हैं।
एक बार उन्होंने लाला केदारनाथजी को उपदेश किया कि जल की नवसार चढ़ाया करो और “ऐनक” लगाना आंखों पर से छोड़ दो। उन्होंने मुझे तथा अन्य भाईयों को बिच्छु काटने, स्मृति के बढ़ाने और शीतला के रोकने की औषधियाँ बतलाईं थीं।
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फुटपाथ पर रहने वाले बेघरों की कमाल की फोटोग्राफी

मुंबई। आज तक आपने कैमरे से फोटो क्लिक करते हुए बहुत से लोगों को देखा होगा, लेकिन फुटपाथ पर रहने वाले ऐसे बेघर नागरिकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके कैमरे से क्लिक हुए 13 फोटो को चयनित कर माई मुंबई कॅलेंडर 2024 का आकर्षक कैलेंडर बन पाया। 1350 फ़ोटो का इसे ज़खीरा ही कहा जा सकता है जो मुंबई को अपने नजरिए से न सिर्फ़ देख रहा है बल्कि उसके बदलते स्वरुप को बयां भी करता है।

‘पहचान’ संस्था के अध्यक्ष बृजेश आर्य की पहल पर मुंबई के फुटपाथ पर रहने वाले उन बेघरों को अपनी कला का आविष्कार करने का मौका मिला। जिनके फ़ोटो कैलेंडर में चयनित हुए उन्हें मेडल देकर आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने पुरस्कृत किया। आर्य बताते है कि माई वर्ल्ड लंडन के पॉल रायन की मदद से फुजि फ़िल्म के 50 कैमरे मुफ्त में उपलब्ध हुए। कुल 1350 फोटो निकाले गए जिनमें से 105 कैलेंडर के लिए मंजूर हुए। मुंबई के 4 जज पेररी सुब्रमण्यम, इयान पेरेरा, राजीव आसगावकर, राजन नंदवाना एवं सेंट झेवियर्स में इन फोटो को प्रदर्शित आम राय लेने के बाद 13 फ़ोटो बेस्ट पाए गए। कैफ़े आर्ट लंदन में उन फ़ोटो और बेहतर बनाकर कैलेंडर बना जिसका लोकार्पण महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कर बेघरों की कला की सराहना की।

इस कैलेंडर में जिनकी फोटो प्रकाशित हुई है उनमें आरती खारवा (मुख पृष्ठ), नितीन खारवा (जनवरी), फिरोज शाह (फरवरी), सुनील खारवा (मार्च), नितीन खारवा (अप्रैल), राहुल परमार (मई), सिकंदर मंसूरी (जून), शीला पवार (जुलाई), सुरेश पवार (अगस्त), आकाश खारवा (सितंबर), सुनंदा गायकवाड़ (अक्टूबर), शोभा खारवा (नवंबर) एवं अनिल बूटिया ( दिसंबर ) शामिल है। सुभाष रोकड़े एवं छात्र स्वयंसेवक द्वन्शित, अशल्यन एवं श्रेय ने इनसे फ़ोटो खिंचवाने से लेकर संकलित करने का काम किया।

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प्रेम, भक्ति और करुणा की देवी राधा

राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है। यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।

राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी सदियों बाद भी लोगों के दिलो दिमाग में ताजा है। यह एक ऐसा प्रेम है जिसमें किसी ने कृष्ण भक्ति की राह देखी, तो किसी ने इस कहानी को विरह का गीत समझकर गुनगुनाया है तो किसी ने इसे त्याग के चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया है। कृष्ण और राधा का प्रेम जितना चंचल और निर्मल रहा, उतना ही जटिल और निर्मम भी। सदियों से भले ही कृष्ण के साथ राधा का नाम लिया जाता रहा है, लेकिन प्रेम की ये कहानी कभी पूरी नहीं हो पाई है। एक तरह से आधी अधूरी सी फिर भी स्थाई ही रही है ये।

आज भी ये प्रश्न उठता है कि राधा और कृष्ण का प्रेम कभी शादी के बंधन में क्यों नहीं बंध पाया ? जिस अंतरंगता से कृष्ण और राधा ने एक दूसरे को चाहा, वो रिश्ता विवाह तक क्यों नहीं पहुंचा? क्यों संसार की सबसे बड़ी प्रेम कहानी विरह का गीत बनकर रह गई? क्या वजह है कि राधा से सच्चे प्रेम के बावजूद कृष्ण ने रुकमणी को अपना जीवनसाथी चुना था? जब कृष्ण और राधा शाश्वत प्रेम में थे, तो कृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह क्यों किया, राधा से नहीं ? क्योंकि राधा और रुक्मिणी एक ही हैं इसलिए कृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह किया था।

उनकी कुल 8 पत्नियों का जिक्र मिलता है, लेकिन उनमें राधा का नाम नहीं है। इतना ही नहीं कृष्ण के साथ तमाम पुराणों में राधा का नाम नहीं मिलता है। यद्यपि मन्दिरों में इसी युगल की लोग पूजा और आराधना करते चले आ रहे हैं।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात श्री राधा का विधि पूर्वक विवाह भांडीरवन मे संपन्न कराया था। इस विवाह का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता में भी मिलता है। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है। भारत के धार्मिक सम्प्रदाय-निम्बार्क संप्रदाय, गौड़ीय वैष्णववाद, पुष्टिमार्ग, राधावल्लभ संप्रदाय, स्वामीनारायण संप्रदाय, प्रणामी संप्रदाय, हरिदासी संप्रदाय और वैष्णव सहिज्य संप्रदाय में राधा को कृष्ण के साथ पूजा जाता है।

भगवत गीता से महाभारत तक कहीं नहीं है राधा जी का नाम:-

शुकदेव जी को साक्षात् श्रीकृष्ण से मिलाने वाली राधा है और शुकदेव जी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। इस कारण राधा एक का जिक्र नही किया है।

राधा का अंतिम समय कहां बीता और किन हालात में राधा ने जीवन के अंतिम क्षण बिताए। जिस राधा को कृष्ण की परछाई समझा जाता था, उसका क्या हुआ? ये सब एक रहस्य बन चुका है। राधा का नाम भगवत गीता से लेकर महाभारत तक कहीं नहीं मिलता है। राधा के बिना जिस कृष्ण को अधूरा माना गया है, उनकी कथाओं में राधा का नाम तक नहीं है। इस रहस्य को समझने के लिए उनके धरती पर उतरने की वजहों को जानना होगा।

ऐसा कहा जाता है कि राधा धरती पर कृष्ण की इच्छा से ही आई थीं। भादो के महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी के अनुराधा नक्षत्र में रावल गांव के एक मंदिर में राधा ने जन्म लिया था। यह दिन राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। कहते हैं कि जन्म के 11 महीनों तक राधा ने अपनी आंखें नहीं खोली थी। कुछ दिन बाद वो बरसाने चली गईं। जहां पर आज भी राधा-रानी का महल मौजूद है।

राधा और कृष्ण की पहली मुलाकात भांडिरवन में हुई थी। नंद बाबा यहां गाय चराते हुए कान्हा को गोद में लेकर पहुंचे थे। कृष्ण की लीलाओं ने राधा के मन में ऐसी छाप छोड़ी कि राधा का तन-मन श्याम रंग में रंग गया। कृष्ण-राधा की नजरों से ओझल क्या होते, वो बेचैन हो जाती। वो राधा के लिए उस प्राण वायु की तरह थे जिसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल था।

सुदामा ने दिया था राधा को श्रापः कहते हैं कि राधा को कृष्ण से विरह का श्राप किसी और से नहीं बल्कि श्री कृष्ण के परम मित्र सुदामा से मिला था। वही सुदामा जो कृष्ण के सबसे प्रिय मित्र थे। सुदामा के इस श्राप के चलते ही 11 साल की उम्र में कृष्ण को वृन्दावन छोड़कर मथुरा जाना पड़ा था। श्रीकृष्ण और राधा गोलोक एक साथ निवास करते थे।एक बार राधा की अनुपस्थिति में कृष्ण विरजा नामक की एक गोपिका से विहार कर रहे थे। तभी वहां राधा आ पहुंची और उन्होंने कृष्ण और विरजा को अपमानित किया।

इसके बाद राधा ने विरजा को धरती पर दरिद्र ब्राह्मण होकर दुख भोगने का श्राप दे दिया। वहां मौजूद सुदामा ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने उसी वक्त राधा को कृष्ण से बरसों तक विरह का श्राप दे दिया था। 100 साल बाद जब वे लौटे तब बाल रूप में राधा कृष्ण ने यशोदा के घर में प्रवेश किया, वहां रहे और बाद में सबको मोक्ष देकर खुद भी गोलोक लौट गए।

श्रीकृष्ण ने क्यों नहीं किया राधा से विवाह?
राधा रानी ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है। कृष्ण की होकर भी उनकी न हो पाने का मलाल राधा को हमेशा रहा।अंतिम समय में जब राधा ने खुद को अपनी अर्धांगनी न बनाने का कारण कृष्ण पूछा तो कृष्ण वहां से बिना कुछ कहे चल पड़े। राधा क्रोधित हो गईं और चिल्लाकर ये सवाल दोबारा किया। राधा के क्रोध को देख कृष्ण मुड़े तो राधा भी हैरान रह गईं। कृष्ण राधा के रूप में थे। राधा समझ गईं कि वो भी कृष्ण ही हैं और कृष्ण ही राधा है। दोनों में कोई फर्क नहीं है। कृष्ण अपने निज आनंद को प्रेम विग्रह राधा के रूप में प्रकट करते हैं। और उस आनंद के रस का आस्वादन करते रहते हैं। राधा कृष्ण की प्रिय शक्ति है, जो स्त्री रूप मे प्रभु के लीलाओं मे प्रकट होती हैं । “गोपाल सहस्रनाम” के 19वें श्लोक मे वर्णित है कि महादेव जी द्वारा जगत देवी पार्वती जी को बताया गया है कि एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव (श्री कृष्ण) तथा ये रहस्य स्वयं श्री कृष्ण द्वारा राधा रानी को बताया गया है।अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं।

राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात श्री राधा का विधि पूर्वक विवाह भांडीरवन मे संपन्न कराया था। इस विवाह का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता में भी मिलता है। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है। राधा कृष्ण की न होकर आज भी उनके साथ पूजनीय हैं. राधा-कृष्ण के प्रेम की ये कहानी आधीअधूरी होकर भी अमर है।

आचार्य पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी ‘मोहन’ ने अपने “मोहन शतक” में राधा कृष्ण के दिव्य स्वरूप को इन शब्दो में व्यक्त किया गया है–
कभी भोली राधिका उठा तू गोद लेते थे।
नंदजी को नंदित किए हो खेल बार-बार,
अम्ब जसुदा को तू कन्हैया मोद देते थे।
कुंजन में कुंजते खगों के बीच प्यार भरे,
हिय में दुलार ले उन्हें विनोद देते थे।
देते थे हुलास ब्रज वीथिन में घूम- घूम
मोहन अधर चूमि तू प्रमोद देते थे।
नाचते कभी थे ग्वाल- ग्वालिनों के संग,
कभी भोली राधिका उठा तू गोद लेते थे।।

(लेखक अध्यात्मक व धार्मिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में पुस्तकालय सूचनाधिकारी रहे हैं)

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भारत में तीर्थाटन छू रहा है नित नई ऊचाइयाँ

हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही तिरुपति बालाजी, काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं।

जेफरीज नामक एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज कम्पनी ने बताया है कि अयोध्या में निर्मित प्रभु श्रीराम के मंदिर से भारत की आर्थिक सम्पन्नता बढ़ने जा रही है। दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में सम्पन्न हुए प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद स्थानीय कारोबारी अपना उज्जवल भविष्य देख रहे हैं। अयोध्या धार्मिक पर्यटन का हब बनाने जा रहा है तथा अब अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बनने जा रहा है। जेफरीज के अनुसार अयोध्या में प्रति वर्ष 5 करोड़ से अधिक पर्यटक आ सकते हैं।

अभी अयोध्या में केवल 17 बड़े होटल हैं इनमें कुल मिलाकर 590 कमरे उपलब्ध हैं। लेकिन, अब 73 नए होटलों का निर्माण किया जा रहा है।  इनमें से 40 होटलों का निर्माण कार्य प्रारम्भ भी हो चुका है। अभी तक नए एयरपोर्ट, रेल्वे स्टेशन, टाउनशिप और रोड कनेक्टिविटी में सुधार जैसे कामों पर 85,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। इस निवेश का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर दिखाई देने जा रहा है। शीघ्र ही अयोध्या वैश्विक स्तर पर धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में उभरेगा। इससे होटल, एयरलाईन, हॉस्पिटलिटी, ट्रैवल, सिमेंट जैसे क्षेत्रों को बहुत बड़ा फायदा होने जा रहा है। भारत के विभिन्न शहरों से 1000 के आसपास नई रेल अयोध्या के लिए चलाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पूरे देश से दिनांक 23 जनवरी 2024 के बाद से प्रतिदिन भारी संख्या में धार्मिक पर्यटक अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह हर्ष का विषय है कि पहिले दिन ही 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रभु श्रीराम के दर्शन किये हैं।

विश्व के कई अन्य देश भी धार्मिक पर्यटन के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्थाएं सफलतापूर्वक मजबूत कर रहे हैं। सऊदी अरब धार्मिक पर्यटन से प्रति वर्ष 22,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर अर्जित करता है। सऊदी अरब इस आय को आगे आने वाले समय में 35,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाना चाहता है। मक्का में प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोग पहुंचते हैं, जबकि मक्का में गैर मुस्लिम के पहुंचने पर पाबंदी है। इसी प्रकार, वेटिकन सिटी में प्रतिवर्ष 90 लाख लोग पहुंचते हैं। इस धार्मिक पर्यटन से अकेले वेटेकन सिटी को प्रतिवर्ष लगभग 32 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय होती है, और अकेले मक्का शहर को 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आमदनी होती है।

अयोध्या में तो किसी भी धर्म, मत, पंथ मानने वाले नागरिकों पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं होगी। अतः अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 5 से 10 करोड़ तक प्रतिवर्ष जा सकती है। फिर अकेले अयोध्या नगर को होने वाली आय का अनुमान तो सहज रूप से लगाया जा सकता है। अभी अयोध्या आने वाले श्रद्धालु अयोध्या में रूकते नहीं थे प्रात: अयोध्या पहुंचकर प्रभु श्रीराम के दर्शन कर शाम तक वापिस चले जाते थे परंतु अब अयोध्या को इतना आकर्षक रूप से विकसित किया गया है कि श्रद्धालु 3 से 4 दिन रुकने का प्रयास करेंगे। एक अनुमान के अनुसार, प्रत्येक पर्यटक लगभग 6 लोगों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। इस संख्या के हिसाब से तो लाखों नए रोजगार के अवसर अयोध्या में उत्पन्न होने जा रहे हैं। अयोध्या के आसपास विकास का एक नया दौर शुरू होने जा रहा है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब अयोध्या के रूप में वेटिकन एवं मक्का का जवाब भारत में खड़ा होने जा रहा है।

धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने भी धरातल पर बहुत कार्य सम्पन्न किया है। साथ ही, अब इसके अंतर्गत एक रामायण सर्किट रूट को भी विकसित किया जा रहा है। इस रूट पर विशेष रेलगाड़ियां भी चलाए जाने की योजना बनाई गई है। यह विशेष रेलगाड़ी 18 दिनों में 8000 किलो मीटर की यात्रा सम्पन्न करेगी, इस विशेष रेलगाड़ी के इस रेलमार्ग पर 18 स्टॉप होंगे। यह विशेष रेलमार्ग प्रभु श्रीराम से जुड़े ऐतिहासिक नगरों अयोध्या, चित्रकूट एवं छतीसगढ़ को जोड़ेगा। अयोध्या में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर वैश्विक पटल पर इस रूट को भी  रखेगा।

केंद्र सरकार द्वारा भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगातार किए जा रहे प्रयासों का परिणाम भी अब दिखाई देने लगा है। “मेक माई ट्रिप इंडिया ट्रैवल ट्रेंड्स रिपोर्ट” के अनुसार, भारत के नागरिक अब पहले के मुकाबले अधिक यात्रा कर रहे हैं। भारत के नागरिकों द्वारा विशेष रूप से अयोध्या, उज्जैन एवं बदरीनाथ जैसे आध्यात्मिक स्थलों के बारे में अधिक जानकारी हासिल की जा रही है। उक्त जानकारी  “मेक माई ट्रिप” के प्लेटफार्म के 10 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं से प्राप्त जानकारी के आधार पर सामने आई है।

वर्ष 2019 के बाद से भारत में एक वर्ष में तीन से अधिक यात्राएं करने वाले लोगों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। उक्त रिपोर्ट के अनुसार, आध्यात्मिक पर्यटन सम्बंधी जानकारी हासिल करने की गतिविधियों में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2023 में 97 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से अयोध्या के सम्बंध में जानकारी हासिल करने सम्बंधी गतिविधियों में वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 585 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज हुई है। इसी प्रकार, उज्जैन एवं बदरीनाथ जैसे धार्मिक स्थलों के सम्बंध में भी जानकारी हासिल करने वाले नागरिकों की संख्या में क्रमशः 359 प्रतिशत और 343 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। भारत में अब पारिवारिक यात्रा की बुकिंग भी बहुत तेज गति से बढ़ रही है। इसमें वर्ष 2022 के तुलना में वर्ष 2023 में 64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी अवधि में एकल यात्रा की बुकिंग में केवल 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

उक्त जानकारी को भारत के नागरिक विमानन मंत्रालय द्वारा जारी एक जानकारी से भी बल मिलता है कि भारत में घरेलू हवाई यातायात अब एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। दिनांक 21 अप्रेल 2024 (रविवार) को रिकार्ड 471,751 यात्रियों ने 6,128 उड़ानों के माध्यम से, भारत में हवाई सफर किया है। इसके पूर्व हवाई यातायात करने वाले नागरिकों की औसत संख्या, कोरोना महामारी के पूर्व के खंडकाल में, 398,579 यात्रियों की थी। इसमें 14 प्रतिशत  वृद्धि दर्ज की गई है।

देश में धार्मिक पर्यटन में हो रही भारी वृद्धि के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में भी तेजी दिखाई देने लगी है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने भारत सहित विश्व के समस्त आर्थिक विश्लेशकों को चौंका दिया है। इस दौरान, भारत में सकल घरेलू उत्पाद में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई है जबकि प्रथम तिमाही के दौरान वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत एवं द्वितीय तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की रही थी। पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही थी। जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था।

इसी प्रकार, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा ने 6.5 प्रतिशत, एशिया विकास बैंक एवं बार्कलेस एवं प्राइस वॉटर कूपर्स ने 6.7 प्रतिशत, डेलाईट इंडिया ने 7 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। परंतु, समस्त विदेशी संस्थानों के अनुमानों के झुठलाते हुए भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 8 प्रतिशत की रही है। यह सब देश में लगातार बढ़ते धार्मिक पर्यटन एवं विभिन त्यौहारों तथा शादी जैसे समारोहों पर भारतीय नागरिकों द्वारा दिल खोलकर पैसा खर्च करने के चलते सम्भव हो पा रहा है। इससे त्यौहारों एवं शादी के मौसम में व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर होती है।

जैसे दीपावली त्यौहार के समय भारत में नागरिकों के बीच विभिन्न नए उत्पादों की खरीद के लिए जैसे आपस में होड़ सी लग जाती है। भारत में लाखों करोड़ रुपए का व्यापार दीपावली त्यौहार के समय में होता है। इसी प्रकार की स्थिति शादियों के मौसम में भी पाई जाती है। संभवत: विदेशी वित्तीय संस्थान भारत में हो रहे इस तरह के उक्त वर्णित परिवर्तनों को समझ नहीं पा रहे हैं एवं केवल पारंपरिक विधि से ही सकल घरेलू उत्पाद को आंकने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए भारत की विकास दर के संबंच में विभिन्न विदेशी संस्थानों के अनुमान गलत साबित हो रहे हैं।

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संसदीय लोकतंत्र : संविधान और कार्यान्वयन

15 अगस्त, 1947 को पराधीन भारत ब्रिटिश दासता से मुक्ति प्राप्त किया और गंभीर चिंतन, गहन मनन और विचार- विमर्श के पश्चात हमने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को ग्राह्य किया और संविधान (राष्ट्र-राज्य की सर्वोच्च विधि) की रचना के लिए संविधान सभा का गठन किया जिसके द्वारा सर्वोत्कृष्ट  संविधान तैयार किया गया और 26 जनवरी, 1950 को अपने संविधान को आत्माप्रीत किए। विपक्ष, बड़बोले नेताओं और सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से सवाल उठाए जा रहे हैं कि संविधान और लोकतंत्र खतरे में है?
संविधान की उद्देशिका में उल्लेखित विचार, आदर्श और मौलिक सिद्धांत भारत की मूलभूत प्रकृति को निर्धारित करती हैं। संविधान की उद्देशिका जो शासन के लिए प्रकाश स्तंभ होता है जिसको शासक लोकतांत्रिक संस्कृति में क्रियान्वित करता है। संविधान के उद्देशिका ‘हम भारत के लोग’ से शुभारंभ होती है जो यह संप्रेषित करता है कि भारत एक संप्रभु (जो वाह्य और आंतरिक रूप से स्वतंत्र हो), समाजवादी (संसाधन पर सार्वजनिक नियंत्रण), पंथनिरपेक्ष (राज्य का अपना कोई निजी धर्म नहीं है अर्थात राज्य धर्म के विषय में तटस्थ है) और लोकतांत्रिक गणराज्य (राज्य का संवैधानिक प्रधान /प्रमुख जनता के द्वारा निर्वाचित हो) एवं लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए यह संविधान स्वयं को आत्मा प्रीत किया है और राज्य को प्रत्येक नागरिक के साथ समानता, स्वतंत्रता, न्याय और आपसी बंधुता बनाए रखने का सिद्धांत प्रतिपादित करता है ।
संविधान की उद्देशिका यह संकेत करती है कि संविधान किसके द्वारा, किस लिए और कब बनाया गया है? उद्देशिका मूलतः
१. सत्ता का स्रोत;
2.  राज्य और सरकार का स्वरूप;
३. शासन व्यवस्था के लक्ष्य और
4. संविधान के अधिनियमन।
भारत के संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’ शब्दों से प्रारंभ होती है जो इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि भारत के संविधान का स्रोत जनता है और राजनीतिक सत्ता अंतिम रूप से जनता में है, जिसका प्रयोग करते हुए जनता ने स्वेच्छा से संविधान का निर्माण अथवा अपनी पसंद की शासन व्यवस्था को स्थापित किया है। प्रस्तावना का अंतिम भाग भी इस तथ्य  की पुष्टि करता है कि भारत में अंतिम सत्ता का स्रोत जनता है और  समस्त शक्तियों का स्रोत जनता है।
भारत वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक बृहद एवं जीवंत लोकतांत्रिक राज्य (देश) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि लोकतंत्र के केंद्र में जनता है, जिसने 17 आम चुनाव में अपने विवेकी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से मताधिकार का प्रयोग कर सत्ता के सुचारू हस्तांतरण का मार्ग सुनिश्चित किया है और राजनीतिक इतिहास में 10 बार निर्वाचित सरकार बदली है। यह लोकतांत्रिक राजनीतिक यात्रा संविधान के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन, लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था और लोकतांत्रिक जीवन पद्धति का पाथेय है। भारत में उदार राजनीतिक व्यवस्था है। व्यक्ति स्वतंत्रता और अधिकार से बड़ा सामूहिक मौलिक कर्तव्य एवं सामूहिक बोध भावना है। भारत बहुसांस्कृतिक देश होने के साथ पंथनिरपेक्षता की अवधारणा राज्य के व्यक्तित्व में है। भारतीय परंपरा हमारे विचार, व्यवहार और आचरण में प्रतिबिंबित है। लोकतंत्र की सफलता के पीछे लोक की सामूहिक ऊर्जा, निष्ठा एवं मनोयोग होता है।
भारत में संसद  (विधायिका) को सर्वोच्च स्थिति प्राप्त है। वह राष्ट्र की सर्वोच्च पंचायत है एवं भारत के लोगों की निष्ठा का सर्वोच्च मंदिर है। संसद जनसदन और राज्यों की परिषद की अभिव्यक्ति है। संसद मौलिक रूप में जनता का प्रतिनिधित्व करती है। संसद को विधान बनाने, कार्यपालिका पर प्रासंगिक नियंत्रण स्थापित करने, राष्ट्र के खर्चों पर नियंत्रण रखने और संवैधानिक प्रतिनिधियों के व्यवहारों का नियंत्रण करती है। भारत में विधायिका भी संविधान वाद के अंतर्गत कार्य करती है।
लोकतंत्र और संसदीय परंपरा में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी अपने संवैधानिक दायरे में रहकर अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन करते हैं और संवैधानिक दायरे में रहकर प्रत्येक अंग एक दूसरे की सीमाओं का यथोचित सम्मान करते हैं। यही लोकतांत्रिक सार की आत्मा है। भारत में संसद का मौलिक उपादेयता विधान बनाना, प्रशासन की निगरानी करना, बजट पारित करना, लोक समस्याओं का निवारण करना और राष्ट्रीय नीतियों पर विचार-विमर्श करना है। भारत के संविधान के अंतर्गत संघीय मंत्री परिषद सामूहिक रूप से निम्न सदन/ लोकप्रिय सदन के प्रति उत्तरदाई होती है।  संसद अलग-अलग मंत्रालयों से संबंधित अनुदानों की मांगों पर चर्चा और मतदान करने के पश्चात राष्ट्र-राज्य के बजट को अनुमोदित करती हैं।
भारत की संसद ने कई उपलब्धियां के साथ अपनी उपादेयता को कायम रखे हैं। कई उल्लेखनीय विधानों के माध्यम से विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने, भूमि सुधार अधिनियम, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय आयोगों की स्थापना, पंचायत और स्थानीय निकायों के शक्तियों का हस्तांतरण एवं महिलाओं के लिए पंचायत और शहरी तथा स्थानीय निकायों में कुल स्थान के कम से कम एक तिहाई आरक्षण हेतु महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए है। यह सभी विधायन सामाजिक परिवर्तन के लिए अति आवश्यक हैं। संसद ने इन सभी क्षेत्रों में विधान  बनाकर संसदीय परिपक्वता और विवेक का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
भारत की विधायिका समय के साथ आने वाली विभिन्न आकस्मिकताओं से निवारण के लिए निरंतर नए नवोन्मेष कर रही है। संसद राष्ट्रीय परंपरा के मजबूती के लिए कई पद्धतियों और पारस्परिक परंपराओं को विकसित किया है। 30 मिनट की चर्चा, अल्पकालिक चर्चा, ध्यान आकर्षण प्रस्ताव, लोकसभा में नियम 377 और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के साथ मामलों को उठाया जाना इत्यादि भारतीय नवोन्मेष  की देन है।
हमारा लोकतंत्र एक सक्रिय, जीवंत, ऊर्जावान और मजबूत लोकतंत्र विभिन्न राजनीतिक दल, नागरिक समाज, विपक्ष और निजी सदस्य अपने बातों को पूरी संचेतना, ऊर्जा और मजबूती के साथ रखते हैं, और दबाव डालकर अपने बातों को मनवाने का प्रयास करते हैं। संविधान सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने के साथ एक समावेशी शासन व्यवस्था एवं समावेशी समाज की स्थापना में सहयोग दिया है।
 
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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ज़ोडियाक ने पेश किया 2024 पोसिटानो प्योर लिनेन संग्रह

लिनेन कपड़ा बुनाई में उपयोग किए जाने वाले सबसे पुराने फाइबर्स में से एक है। सन के पौधे के तने से बुना गया इसे दुनिया के सबसे मजबूत प्राकृतिक फाइबर के रूप में पहचाना जाता है। लिनेन के कपड़े की बुनाई शरीर में हवा के स्वतंत्र आवागमन को सुनिश्चित करती है, जिससे यह गर्मियों के लिए एक आइडल गारमेंट बन जाता है।

ज़ोडियाक लिनेन का उपयोग करता है, जो फ्रांस के नॉर्मंडी क्षेत्र में उगाए गए सन से बुना जाता है, जो दुनिया में सबसे अच्छी क्वालिटीज में से एक है। इस क्षेत्र की अद्वितीय मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के साथ साथ स्थानीय सन उत्पादकों द्वारा पीढ़िसों से मिली विरासत के परिणामस्वरूप लम्बे, अधिक पतले सन के पौधे मिलते हैं, जिससे बहुत उच्च गुणवत्ता वाले लिनन कपड़े प्राप्त होते हैं।

लिनेन शर्ट हर बार धोने और पहनने के साथ अधिक आरामदायक हो जाती है, वास्तव में कृत्रिम, नेचूरली रिंकल्ड केवल आपके ग्रीष्मकालीन लुक की सुंदरता को बढ़ाते है।

2024 पोसिटानो प्योर लिनेन कलेक्शन के बारे में :-

इस कलेक्शन का कलर पैलेट इटैलियन रिवेरा पर अमाल्फी तट पर स्थित एक अनूठे शहर पोसिटानो के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य को दर्शाता है । बेज, गुलाबी, पीले और टेराकोटा के घर, जो पहाड़ियों के किनारे से क्रिस्टल नीले भूमध्यसागरीय पानी तक गिरते हैं।

वे शॉर्ट और लॉन्ग  दोनों आस्तीनों में सॉलिड लाइन और चेक की एक विस्तृत रेंज में उपलब्ध हैं और एक बहुत ही सुंदर पहनावे के लिए इसे ज़ोडियाक लिनेन जैकेट, ट्राउजर और बंदगला के साथ एक जोड़ कहा जा सकता है।

लॉन्च के बारे में जेडसीसीएल के वाइस चेयरमैन और एमडी श्री सलमान नूरानी ने कहा, ज़ोडियाक के 2024 पॉसिटानो कलेक्शन में शर्ट के रंग फ्रेंच फ्लैक्स से बुने हुए लिनेन फैब्रिक में इटैलियन रिवेरा के रंगों को दर्शाते हैं।

ज़ोडियाक के 2024 पोसिटानो संग्रह का पूर्वावलोकन कैसे करें

शॉप ऑनलाइन

इन-स्टोर: आपके नजदीकी ज़ोडियाक स्टोर के लिए 8454936004 पर “हैलो” व्हाट्सएप करें।

ज़ोडियाक क्लोथिंग कम्पनी लिमिटेड (जेडसीसीएल) एक एकीकृत, ट्रांस-नेशनल कम्पनी है जो डिज़ाइन, निर्माण, वितरण से लेकर रिटेल सेल तक संपूर्ण कपड़ों की रेंज को नियंत्रित करती है। भारत में निर्माण आधार और भारत, ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका में बिक्री कार्यालयों के साथ जेडसीसीएल में लगभग 2500 लोग कार्यरत हैं। कम्पनी अपने मुम्बई कॉर्पोरेट कार्यालय में 5000 वर्ग फुट का इटैलियन प्रेरित डिज़ाइन स्टूडियो संचालित करती है, जो लीड गोल्ड प्रमाणित इमारत है। यह ब्राण्ड पूरे भारत में 100 से अधिक कम्पनी प्रबंधित स्टोर्स और 1000 से अधिक मल्टी ब्राण्ड रिटेलर्स के माध्यम से प्रीमियम कीमतों पर बेचा जाता है।

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क्या अमेरिका का भारत विरोधी गुट भारत में स्टालिन-माओ जैसा शासन लाना चाहता है?

प्रथम महायुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस ने रूस में स्टालिन और लेनिन का शासन स्थापित करने में सहयोग किया। साथ ही भारत सहित एशिया के बहुत बड़े क्षेत्र पर उसे जबरन कब्जा करने में सहयोग किया जिससे सोवियत संघ बना।

द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद अपने पुराने मित्र च्यांग काई शेक से दगाबाजी करके संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस ने मुख्य चीन पर माओ त्से तुंग की बर्बर लाल सेना का कब्ज़ा कराया और बाद में उसे और बड़े इलाके में जबरन कब्ज़ा करने में सहयोग किया।

इन दिनों शी जिनपिंग और सोरेस के परम प्रिय राहुल गांधी भारत में भयंकर कम्युनिस्टों की भाषा बोल रहे हैं और संपत्ति के पुन: वितरण की वही मांग कर रहे हैं जिसके द्वारा सोवियत संघ और चीन में लाल सेना के क्रूर और नृशंस लोगों ने किसानों और अन्य निर्दोष नागरिकों की करोड़ों की संख्या में हत्या की और उनकी संपत्ति छीनी और पार्टी के अधिकारियों ने अंतहीन विकृत मानसिकता से घृणित भोग विलास और ऐशो आराम किया ।
राहुल गांधी उसी की तैयारी कर रहे हैं। सफलता असंभव है । परंतु माओ की सफलता भी असंभव थी। संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस ने सहयोग किया ।

प्रश्न है कि क्या यह तीनों देश या इन तीनों देशों के कुछ गुप्त समूह भारत में भी उसी प्रकार का बर्बर नृशंस और खूनी कम्युनिज्म लाना चाहते हैं क्योंकि राहुल गांधी की संपूर्ण भाषा भयंकर कम्युनिस्ट भाषा है जिसमें संपत्ति के पुनर्वितरण के बहाने लोगों की संपत्ति छीनी जाती है और पार्टी के मुख्य लोग समाज के सभी लोगों पर अत्याचार करते हुए ऐश करते हैं।

पहले दो बार दो बड़े इलाके में अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस कम्युनिज्म ला चुके हैं। उसके द्वारा उन देशों की मूल संस्कृति को नष्ट प्राय करने में सफल हुए हैं।

क्या अब उनमें से किसी का निशाना भारत है?

(लेखक राष्ट्रीय एतिहासिक व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)

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प्राचीन मंदिरों के अजीब रहस्य 

प्रणय मोहन एक स्वतंत्र शोेधकर्ता हैं और उन्होंने देश व दुनिया के सैकड़ों मंदिरों पर शोध कर उनके वैज्ञानिक रहस्यों का पता लगाया है। वे आधुनिक डिजिटल तकनीक का सहारा लेकर मंदिरों के शिल्प में मौजद रहस्यों की परतें खोलते हैं। अपने यू ट्यूब चैनल पर वे अपने शोध व तथ्यों के बारे में विस्तार से बताते हैं। 
 
भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के प्राचीन मंदिरों में एक गुप्त भाग स्थापित होता है। इसे प्राणला अर्थात श्वास नली कहा जाता है। मंदिर में श्वासनली? ‘मकर प्रणाल’ की अजीब दुनिया के साथ ही इंडोनेशिया के एक मंदिर में एक प्राचीन श्वास नली का परीक्षण के बारे में भी जानिये।
हैलो दोस्तों, आज मैं आपको एक बहुत ही अजीब चीज दिखाने जा रहा हूं जिसे मकर प्राणला कहा जाता है। ठीक है दोस्तों, तो मुझे पुरातत्व में कुछ बहुत ही दुर्लभ चीज़ मिली, ठीक है? इसलिए मुझे नहीं पता कि आपमें से किसी को पता है कि यह क्या है। ज़रा बारीकी से देखें। यह एक अजीब जानवर जैसा दिखता है। ये दोनों टुकड़े एक जैसे ही हैं। वे वास्तव में काफी पुराने हैं, वे 1200 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। ये यहीं इंडोनेशिया में पड़े हैं। ये भारत भी नहीं है, बल्कि ये बेहद दुर्लभ वस्तुएं हैं, जो साबुत पाई जाती हैं। ठीक है? उनमें से अधिकतर टूटे हुए हैं। यदि वे काम कर रहे हैं तो वे बड़े मंदिरों का हिस्सा होंगे, इसलिए ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि आप पूरी चीज़ देख सकें। अब, इसे “मकर प्राणालय” कहा जाता है और यह बहुत दुर्लभ है, क्योंकि मकर प्राणालय हममें से किसी को भी इस तरह पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देते हैं, ठीक है? आप इन्हें कभी पहचान नहीं पाएंगे, लेकिन, अगर आप प्राचीन मंदिर देखेंगे…
मैं आपको दिखाऊंगा कि जब आप उन्हें मंदिरों में लगे हुए देखेंगे तो वे कैसे दिखते हैं, ठीक है। तो आप देख सकते हैं कि यह मकर प्राणालय है जो अभी भी मंदिर में बरकरार है। ये बहुत पुराना है। यह इंडोनेशिया का प्रम्बानन मंदिर है। मकर प्राणालय लगभग 1200 वर्ष पुराना है। इसलिए इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था। तो यह 21वीं सदी है, इसका मतलब है कि यह 1200 साल पुरानी है, लेकिन मकर प्राणालय अभी भी बरकरार है।
अब इस मंदिर के टॉवर में ही देखिये, इतने छोटे से क्षेत्र में आप एक ही पंक्ति में तीन मकर प्राणालय देख सकते हैं। यह प्रम्बानन मंदिर के एक मंदिर के ठीक एक तरफ है। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे मंदिर परिसर में कितने मकर प्राणालय कार्यरत होंगे। अगर आप यहां देखेंगे तो आपको एक अजीब सा अजगर या मगरमच्छ जैसा जानवर नजर आएगा। इसे संस्कृत में मकर कहा जाता है। इस प्राणी को संस्कृत में मकर कहा जाता है और इस पूरे टुकड़े को मकर प्राणालय कहा जाता है। तो मकर का मतलब यह जानवर है लेकिन प्राणालय का मतलब क्या है? प्राणालय का अर्थ है एक चैनल। प्राण का अर्थ है श्वास और आलय का अर्थ कभी-कभी घर होता है या आप जानते हैं, श्वास का स्थान। मोटे तौर पर मतलब मकर की श्वास नली। अब, जब आप उन्हें मंदिरों के हिस्से के रूप में देखते हैं, तो आपको लगता है कि वे केवल छोटे टुकड़े हैं। क्योंकि आप उन्हें केवल यहीं तक देख सकते हैं। लेकिन यहाँ, यह शानदार है क्योंकि आप वास्तव में देख सकते हैं कि वे कितने बड़े हैं।
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