Sunday, April 28, 2024
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नदियों को बचाने के लिए समग्र पहल की आवश्यकता

वैज्ञानिक और भूगर्भ पंडितों की भविष्यवाणी है कि भविष्य में भू – जल भंडार के समाप्त होने और नदियों के सूखने की चेतावनी है। तापमान में असामान्य उतार- चढ़ाव( तपांतरण )के कारण और नियमित वर्षा के कारण कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। गंगा- यमुना नदियों के उद्गम स्थल वाले प्रांत उत्तराखंड में नदियों और जल- स्रोतों का सूखना, उनके जल स्तर में कमी( गिरना) बड़ी चिंता के रूप में सामने आ रहा है। वैश्विक स्तर पर जल संकट बढ़ रहा है ।वैश्विक आबादी के तुलना में जल की प्रतिशतता कम है । चीन, भारत, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका में जल आबादी की तुलना में निम्न है। इसके अतिरिक्त इन देशों में भू- जल का दोहन बेलगाम हो रहा है ।नदियों की स्थिति को बेहतर करने के लिए जल का पुनरूजित करना आवश्यक है, क्योंकि नदियां अपने अस्तित्व संकट से जूझ रही है बहुत सी नदियां विलुप्त हो चुकी हैं और बहुत नदियां अपने जल – भंडार के कारण मौसमी बन चुकी हैं ।नदियों में प्रदूषण के मामले में स्थिति चिंताजनक है।

राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला के आंकड़ों के अनुसार ,भारत में जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण शहरीकरण और उसकी अनियंत्रित दर है ।पिछले दशक से शहरीकरण की दर बहुत त्रिवदर से बड़ी है।शहरीकरण ने जल स्रोतों को बहुत ही अधिक मात्रा में प्रदूषित किया है। इसके कारण से लंबी अवधि की कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो गई हैं । नदियों के पूजनीय स्थिति के लिए के अतिरिक्त खुले नालों, पर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कमी, मिट्टी के कटाव और नदियों में प्लास्टिक के कचरे को डालने के कारण हुआ है। नदियों में डिटर्जेंट का प्रयोग ,बर्तन धोना एवं पशुओं को नहलाना जिसके कारण नदियां प्रदूषित हो रहे हैं।अपरिष्कृत मलिन जल एवं औद्योगिक कचरे को नदियों में डालना भी प्रमुख कारण रहा है ।जहाज से तेल का रिसाव और खेती में रासायनिक खाद एवं रसायनों का अत्यधिक प्रयोग प्रदूषण का कारण है।

भारत में यमुना नदी नदियों के दुर्दशा का प्रमुख उदाहरण है ।जल स्रोतों और प्राकृतिक देवता भास्कर के महत्व को रेखांकित करने वाला बिहार राज्य का महापर्व छठ पर्व, अब संपूर्ण भारत में अपने प्राकृतिक दैवीय प्रकाश को प्रसारित कर रहा है। यमुना में उठते’ जलीय पहाड़ ‘ ‘ एकत्रित दाग’ पर लोगों की नजर जा रही है ।दिल्ली में यमुना का यह हाल कई वर्षों से है? दिल्ली प्रांत में यमुना नदी संकटग्रस्त है। सदियों से मानव जीवन और मानवीय संस्कृति का पर्याय यमुना नदी के बारे में वैज्ञानिक और नैदानिक विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं की नदी में बनने वाले जहरीले सफेद झाग/ प्रदूषण पहाड़ के कारण बीमारियों के प्रसार का खतरा बढ़ रहा है ।प्रदूषण झाग का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव यमुना के किनारे आश्रित और यमुना में स्नान करने वाले के ऊपर पड़ता है।

भारत में अनेक नदियां हैं जिनका अस्तित्व आज खतरे में है ।बहुत सी नदियों का पहचान मिट चुका है और बहुत सी नदियों का पहचान मिटने को है ।जिस प्रकार यमुना नदी में जहरीली झाग देखने को मिल रही है, वैसी ही अनेक नदियों में देखने को मिल रहे है ।वैज्ञानिकों का मानना है कि जल में अमोनिया का अ स्तर बढ़ने से ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त कारखाने, रंगाई उद्योग ,धोबी घाट, श्मशान घाट और पूजा घाट में प्रयोग होने वाले खतरनाक रसायन फास्फेट की मात्रा भी जहरीले झाग बनाती है। इस प्रदूषण जल में कोई स्नान करता है तो यह निश्चित तौर पर उनके स्वास्थ्य और चर्म रोग को प्रभावित करेगा ।जलवायु परिवर्तन ,भूमंडलीकृत तापण और मानवीय समुदाय के दुर्व्यवहार से नुकसान सांस्कृतिक धरोहर और पूजनीय विरासत नदियों को हुआ है। वैश्विक स्तर की एकेडमिक शोध रपट के अनुसार, विगत दशकों में 4500 छोटी- बड़ी नदियां सूख चुकी है अथवा सूखने के कगार पर हैं। इसके अतिरिक्त अन्य नदियों की स्थिति भी चिंताजनक है। रपट के अनुसार, 20 लाख तालाब और पोखरे सूख चुके हैं। नदियों के मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार के लिए शासकीय प्रयासों के रूप में “नमामि गंगे मिशन” 30853 करोड रुपए से अधिक की परियोजना प्रारंभ की गई है और सामाजिक स्तर पर” समग्र गंगा अभियान” को प्रारंभ किया गया है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक नवीन शोध से पता चलता है की नदियों में सीवेज या अपशिष्ट जल प्रवाह का पानी की गुणवत्ता, जीवित जानवरों और पौधों पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।शोध दल का कहना है कि जहां सीवेज का प्रवाह था ,वहां साइनोबैक्टीरिया और कीड़े प्रचुर मात्रा में पैदा हुए थे ।साइनोबैक्टीरिया जहरीले रसायनों के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं जो जलीय जीवों को खाकर / नष्ट करके जैव- विविधता को प्रभावित करता है। मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम “नमामि गंगे मिशन” ने पवित्र नदी के प्रदूषण को न्यून करने में सहयोग किया है। इससे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में गंगा नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। मोदी सरकार का गंगा नदी की स्वच्छता से लगाव इस तथ्य से प्रकट होता है कि उनके लिए प्राप्त उपहार की नीलामी राशि को “नमामि गंगे मिशन” को दान कर दिया गया है ।सरकार और नागरिक समाज को एक साथ मिलकर भू – जल और नदियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए मनोयोग से जोड़ने की आवश्यकता है।

नदियों एवं पर्यावरण विशेषज्ञ एवं नदियों पर कार्य करने वाले विशेषज्ञों की सलाह पर कार्य किया जाए तो अपेक्षित और अभीष्ट फल प्राप्त हो सकता है। नदियों के तट क्षेत्र पर सघन वन लगाकर नदियों के निर्मल प्रवाह को बढ़ाया जा सकता है। देश के अनेक क्षेत्रों में नदी प्रहरी मित्र /जल प्रहरी पुत्र के रूप में बड़ी संख्या में पर्यावरण की चिंता करने वाले पर्यावरण मित्र एवं सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसंघी संगठन “गंगा समग्र” और “लोक भारती” ने सहयोगात्मक कार्य किया है, जिससे नदियों की गुणवत्ता में बदलाव आया है ।नदियों का तेजी से विलुप्त होना और बह रही नदियों में जल प्रवाह में दिनों- दिन कमी के कारण और नदियों में बढ़ते प्रदूषण ने ‘ नदी आपातकाल की स्थिति ‘ ला दिया है ,इस आपात के निवारण के लिए तालाबों एवं छोटी-छोटी नदियों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है ।

भूजल स्तर को सुधारने के प्रयास के साथ नदियों को सुरक्षित ,संरक्षित एवं पुनर्जीवन प्रदान करने के लिए वर्ष 2011 से समग्र अभियान चलाकर कई संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय नदियों को नव चेतना और नवजीवन प्रदान किया जा रहा है ।इसके साथ ही ऐसे प्रहरियों व पर्यावरण मित्रों के पुरुषार्थ और कटिबद्धता को भी समाज के मुख्य धारा में लाना होगा ,जिन्होंने जल/ नदी संरक्षण के कार्य को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया और इस समस्या के समाधान के लिए युद्ध स्तर पर कार्यरत हैं। इन प्रहरियों से मानस ऊर्जा लेकर समाज का प्रत्येक व्यक्ति इस पुनीत कार्य में अपने सहयोग का आहुति दे सके।

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