Thursday, May 9, 2024
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वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता और महत्व

                              क्या संयुक्त राष्ट्र अपने मौलिक उद्देश्यों को संरक्षित और सुरक्षित करने में प्रासंगिक है?
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक स्तर पर विश्व व्यवस्था को बनाए रखने का 193 राष्ट्र – राज्यों के विवेकी प्रत्यय से उत्पन्न एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है ,जिसका मौलिक उद्देश्य  सभ्य  राष्ट्र – राज्यों के बीच शांति, साहच्र्य एवं वैश्विक विधिक व्यवस्था को बनाए रखने एवं अपने विवेकी  व्यक्तित्व के अनुसार यथा स्थिति (status quo) को बनाए रखना है ।वैश्विक स्तर पर द्वितीय विश्व युद्ध की महा विभीषिका से हुए जन एवं धन की क्षति की त्रासदी से वैश्विक स्तर के नीति- निर्धारकों को अति व्यथा हुई जिससे उनके मानसिक स्तर पर ऐसे संगठन की परिकल्पना आई जो वैश्विक स्तर पर उत्पन्न होने वाले  मनोमालिन्य  का समाधान कर सकें, राष्ट्र – राज्यों के मध्य होने वाले विवादों को टाल सके, राष्ट्र – राज्यों के मध्य होने वाले विवादों के समाधान के लिए 24 अक्टूबर, 1945 को 51 देशों ने विवेकी विमर्श के पश्चात अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना किएं।तत्कालीन सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य (अमेरिका ,फ्रांस, चीन रूस और ब्रिटेन) और 46 अन्य हस्ताक्षर करनेवाले  राष्ट्र – राज्य थे।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना होना भविष्य के लिए एक अत्यंत सुखद एवं सुरक्षित मानवीय समाज के भविष्य की परिकल्पना की गई थी। संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर होने वाले असभ्य घटनाओं ,मानवीय क्रूरता एवं सामाजिक समस्याओं के निवारण के लिए वैश्विक स्तर पर कार्य सक्षम एवं विधिक शक्ति से संपन्न करने का प्रयास किया गया था, जिससे प्रथम विश्व युद्ध (1914 – 1918) और द्वितीय विश्व युद्ध (1939 – 1944 )जैसी त्रासदी को रोका जा सके ।वैश्विक नीति – नियंत्रणों को यह प्रबलतम आशा थी कि नूतन विश्व संगठन( संयुक्त राष्ट्र) वैश्विक स्तर पर स्थाई शांति और समृद्धि को बनाए रखने में सफलतम सिद्ध होगा, लेकिन समकालीन वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र का प्रबलतम समर्थक और शांति का पक्षधर भी यह  सवाल कर रहे हैं या उसके मानसिक चिति में यह सवाल उठ रहा है कि जिस मौलिक उद्देश्य की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की आधारशिला रखी गई थी, उस मौलिक उद्देश्य को बनाए रखने  में संयुक्त राष्ट्र अंशतः सफल रहा है। यह मानवता को ‘ भय से मुक्ति’ नहीं दिल पाया है।
 मानव जनित दुर्व्यवहारों पर सुरक्षा देने में असफल रहा है ।वैश्विक स्तर पर वर्तमान में रूस – यूक्रेन युद्ध 21 महीने से संघर्षरत है एवं इसराइल- हमास युद्ध से वैश्विक स्तर पर अशांति  कायम है। रूस – यूक्रेन युद्ध हो एवं इसराइल पर हमास का बलात आक्रमण  हो , इन दोनों युद्ध में संयुक्त राष्ट्र मूकदर्शक  एवं असहाय सिद्ध हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की उपादेयता पर अंतर्राष्ट्रीय विषयों के मर्मज्ञ विद्वान शुमान ने लिखा है कि” एक मध्यस्थ अथवा समझौते की बातचीत के  न्यायपीठ के रूप में उनका अभिनय युद्ध में लड़ने वाली सेनाओं  के समकक्ष है ।एक नैतिक अर्थ में भी आक्रमणों से पीड़ित  लोगों के रक्षक के रूप में भी संयुक्त राज्य का अभिनय आपत्तिजनक उपयोगिता का रहा है। शांति करने वाले के रूप में उनका अभिनय अदृश्य ही है।” दितीय विश्व युद्ध के पश्चात संयुक्त राष्ट्र ” शीत- युद्ध” के दायरे में मूकदर्शक  हो गया, क्योंकि शीत युद्ध का प्रभाव वैश्विक स्तर पर रहा था। इसके द्वंदात्मक प्रभाव से राष्ट्र – राज्यों को दो सामरिक खेमों में रहने को बाध्य होना पड़ा जिसका नकारात्मक प्रभाव विकास, प्रगति,विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर पड़ा था।
वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र शत – प्रतिशत सफलता नहीं प्राप्त किया ,लेकिन वर्तमान में शांति, स्थिरता और राष्ट्रों के मध्य साहचर्य संबंध बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। संयुक्त राष्ट्र अपने संगठन, कार्य प्रणाली और प्रभावशीलता के दृष्टि से वर्तमान में पूर्ण रूपेण प्रासंगिक है। संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य महान है और महान उद्देश्यों की प्राप्ति में अनेक समस्याएं आती हैं । व्यक्ति, संगठन और संस्था के लिए आवश्यक है कि निरंतर प्रयत्न से ही सफलता प्राप्त होती है। संयुक्त राष्ट्र का प्रधान कार्य शांति एवं सुरक्षा है। सर्वत्र राजनीतिक वातावरण ,शीत – युद्ध और शक्ति राजनीति से ओत – प्रोत था, लेकिन वैश्विक स्तर पर राजनीतिक विवादों को सुलझाने का कार्य महत्वपूर्ण रहा है। 19 जनवरी ,1946 को ईरान ने सुरक्षा परिषद को सूचित किया कि सोवियत रूस की सेनाएं उसके आंतरिक क्षेत्र में आक्रमण कर दी है। सोवियत रूस के विरोध के बावजूद यह सवाल सुरक्षा परिषद के कार्य सूची में लाया गया और सुरक्षा परिषद में इस सवाल से जो प्रबल जनमत जागृत हुआ, सुरक्षा परिषद के राजनीतिक दबाव से सोवियत रूस को अपनी सेनाएं वापस बुलानी पड़ी थी इंडोनेशिया और नीदरलैंड के विवाद में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका सराहनीय  रही है।
कश्मीर विषय को लेकर भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध हुआ उसको बंद करने का श्रेय संयुक्त राष्ट्र को जाता है। 1965 में दोनों देशों में सशस्त्र युद्ध विराम  व्यवस्था को सफल बनाने में संयुक्त राष्ट्र की सराहनीय भूमिका रही है। अंतरराष्ट्रीय  विषयों के विशेषज्ञ प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने  युद्ध विराम व्यवस्था को एक सफल, सरल और उपयोगी यांत्रिकी बताया है। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री और तत्कालीन विदेश मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र की तत्कालीन उपादेयता को सार्थक एवं प्रासंगिक माना था।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अस्तित्व में आया संयुक्त राष्ट्र का मौलिक उद्देश्य भावी हिंसक टकराव को रोकना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है। बदलते परिवेश में संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, साइबर युद्ध और वैश्विक स्वास्थ्य संकटों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो संकट एवं चुनौतियां उसकी स्थापना के समय चिन्हित नहीं हुए थे। संयुक्त राष्ट्र का ढांचा और अहम निर्णय लेने वाली इकाइयां भी वर्तमान वैश्विक शक्ति समीकरण से सामंजस्य बैठाने मे असक्षम है। संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधारो की मांग जोड़ पकड़ने लगी है। ये  सुधार मूलभूत लक्ष्यों की पूर्ति एवं उभरती हुई वैश्विक चुनौतियों का समाधान तलाशने की दृष्टि से भी आवश्यक है।इन आवश्यक सुधारो के अभाव में संयुक्त राष्ट्र निरंतर अप्रासंगिक होता जा रहा है। वर्तमान में इजरायल और हमास के बीच जारी संघर्ष संपूर्ण विश्व में विमर्श के केंद्र में है। विगत 21महीनों से जारी रूस- यूक्रेन के मध्य संघर्ष से राहत नहीं मिला है।
इजराइल और हमास के बीच आरंभ हुए भीषण संघर्ष से संपूर्ण वैश्विक व्यवस्था डगमगा गए है।हमास और इजराइल का संघर्ष की स्थिति इतनी भयंकर और भयानक हो सकता है ,इसकी कल्पना वैश्विक कार्यकारिणी (सुरक्षा परिषद) को भी अंदाजा नहीं था। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र को एक प्रभावी अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाए रखने के लिए समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं के अनुरूप सुसंगत, तार्किक और महत्वपूर्ण होने के लिए बदलते परिवेश के अनुरूप सुरक्षा परिषद में भी बदलाव करना होगा। गणितीय आधार पर सुरक्षा परिषद ही संयुक्त राष्ट्र का पर्याय है। संयुक्त राष्ट्र को समस्याओं के समाधान के लिए आधुनिक प्रबंधन के तौर – तरीके अपनाने होंगे ,जिससे संसाधनों का प्रभावी सदुपयोग किया जा सके। संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी  की चुनौतियों से निपटने के लिए अपना सांगठनिक ढांचा में आमूल – चूल  बदलाव करना होगाऔर अपने दृष्टिकोण को भी बदलना होगा ।संयुक्त राष्ट्र को जलवायु परिवर्तन, साइबर हमले, वैश्विक स्वास्थ्य संकटों ,आतंकवाद, प्रदूषण और क्षेत्रीय अखंडता जैसे समस्याओं से निपटने के लिए रोड मैप (कार्ययोजना )और यांत्रिकी( मेकैनिज्म )को उन्नति करना होगा।
संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन एवं मानवीय अभियानों के स्तर पर भी सुधार अत्यंत आवश्यक है। शांति मिशन एवं मानवीय अभियानों से जुड़े व्यक्तियों, संगठनों और संस्थाओं को प्रशिक्षण में पर्याप्त संसाधनों का आवंटन और शांति मिशन संचालन  के स्पष्ट एजेंडा और अधिकार प्रदान करना आवश्यक हो गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आकार  ले रही परिवर्तनों के अनुरूप स्वयं को ढालना एवं अपने ढांचे में आवश्यक सुधार करना अति आवश्यक है। इस प्रकार इन चुनौतियों का समाधान एवं राष्ट्र – राज्यों की आस्था को कायम करके संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता और महत्व को प्रासंगिक  कर सकता है।
(लेखक प्राध्यापक एवँ राजनीतिक विश्लेषक हैं) 
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