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ओशो के सानिध्य में विनोद खन्ना के वो दिन
मेरा आध्यात्मिक जीवन तब शुरू हुआ जब मैं उस मुकाम पर पहुंच गया था, जहां पर बहार की कोई चीज में मायना नहीं रखती थी। सब कुछ था मेरे पास: पैसा था, अच्छा परिवार था, शोहरत थी, इज्जत…..जो भी इच्छाएं थीं सब पूरी हो चुकी थी। उस वक्त मैंने यह सोचना शुरू कर दिया कि यह जो चेतना है( कांशसनेस) जिसकी सभी गुरु चर्चा करते है। वह क्या है। तो मैं पुस्तकों की दुकानों में खोजा करता था। किसी पुस्तक में मुझे क्या मिलेगा….