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पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय
 

  • जीवन में कर्म की प्रधानता

    जीवन में कर्म की प्रधानता

    'कर्मकाण्ड' के अर्थों में भी बहुत कुछ विकार हुआ है। श्री शंकर स्वामी के समय में कर्मकाण्ड का केवल यही अर्थ लिया जाता था कि यज्ञों के विषय में प्रचलित कुछ क्रियाएं करना, जैसे पात्र साफ करना, वेदी बनाना,

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