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डॉ.वैदिक की कमी को इंदौरी दिल से महसूस करना होगा !
इंदौर को देश के नागरिक और अप्रवासी भारतीय अलग-अलग शक्लों में जानते हैं पर मालवा का यह खूबसूरत शहर अपनी धुरी पर एक-सा ही है, सिर्फ़ तस्वीरें अलग-अलग हैं। आज की दुनिया के ज़्यादातर लोगों के लिए इंदौर की पहचान भारत के सबसे स्वच्छ शहर के तौर पर स्थापित कर दी गई है। इंदौर को […]
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व्यवस्था का ही ‘व्यवस्था’ की ज़रूरत से उठता यक़ीन !
एक सवाल यह भी है कि अगर तीन जुलाई को मारे जाने वाले लोगों में आठ पुलिसकर्मियों के स्थान पर सामान्य नागरिक होते तब भी क्या विकास दुबे को इसी तरह से महाकाल के प्रांगण तक की यात्रा और अपने वहाँ होने की मुनादी करना
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सिर्फ़ पचास करोड़ लोगों को ही मुफ़्त का अनाज नहीं चाहिए !
प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि लॉक डाउन के दौरान नागरिकों ने जिस सतर्कता का पालन किया था वह अब लापरवाही में परिवर्तित होता दिख रहा है जबकि उसकी इस समय और भी ज़्यादा ज़रूरत है।
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क्या इंदिरा गांधी सचमुच में एक क्रूर तानाशाह थीं ?
आपातकाल लागू करना अगर देश में तानाशाही हुकूमत की शुरुआत थी तो क्या उसकी समाप्ति की घोषणा इंदिरा गांधी की उन प्रजातांत्रिक मूल्यों और परम्पराओं में वापसी नहीं थी जिनकी बुनियाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी ?
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आपातकाल नहीं चाहिए तो फिर कुछ बोलते रहना बेहद ज़रूरी है !
सच तो यह है कि साहस करके कुछ भी बोलते रहना अब बहुत ही ज़रूरी हो गया है।अगर ऐसा नहीं किया गया तो हम भी चट्टानों की तरह ही क्रूर, निर्मम और बहरे हो जाएँगे।तब हमें भी किसी दूसरे या अपने का ही बोला हुआ कभी
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बुखार और आपातकाल सूचना देकर नहीं आते, लक्षणों से ही समझना पड़ेगा
बुखार और आपातकाल दोनों ही सूचना देकर नहीं आते।लक्षणों से ही समझना पड़ता है।वैसे भी अब किसी आपातकाल की औपचारिक घोषणा नहीं होने वाली है।सरकार भी अच्छे से जान गई है कि दुनिया के इस सबसे लम्बे तीन महीने के
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जब काग़ज़ के पुर्ज़े ही क़ीमती स्मृति चिन्ह बन जाते हैं !
सबकुछ पता चला।मकान मालिक ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में वरिष्ठ पत्रकार थे।उन्होंने अगले दिन कमरा ख़ाली करने का आदेश दे दिया।
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सीमा पर तनाव और सत्ता के गलियारों में पसरा हुआ सन्नाटा !
पूछा यह भी जा रहा है कि चीनी घुसपैठ के मामले में पाँच मई से पंद्रह जून तक पैंतालीस दिनों का धैर्य प्रधानमंत्री ने कैसे दिखा दिया ? पुलवामा में तो कार्रवाई तत्काल की गई थी और उसके नतीजे भी चुनाव परिणामों में नज़र आ गए
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संदेह के घेरे में नागरिकों का राष्ट्रप्रेम नहीं ,नायकों का सत्ताप्रेम है !
सीमा पर तनाव और कोरोना के इलाज को लेकर सरकार को आशंका हो सकती है कि जनता को सही जानकारी दे देने से भय और भगदड़ फैल जाएगी।
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हमें शर्मिंदा होने की क़तई ज़रूरत नहीं, सबकुछ ऐसे ही चलेगा
जॉर्ज फ़्लॉयड की पुलिस के हाथों हुई मौत ,अश्वेतों के साथ हर स्तर पर होने वाले भेदभाव या फिर अमेरिका और योरप में इस समय जो कुछ चल रहा है उसके प्रति अगर हमें ज़रा सी भी सिहरन भी नहीं हो रही है तो फिर यही माना जा