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विजयादशमी: स्वयं अब जागकर हमको, जगाना है अपना देश
आज का समय पूरे विश्व को भारत की विजय गाथा बताने का समय है। जिसे सुनने के लिए व जिसका अनुसरण करने के लिए पूरी दुनिया तैयार है। अब वो दिन नहीं रहे, जब कोई भी हमारे
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टीआरपी की हाय हाय ने मीडिया को दो कौड़ी का कर दिया!
कहीं ऐसा न हो भस्मासुर की तरह टीवी इंडस्ट्री खुद ही टीआरपी की इस दौड़ में अपनी थोड़ी बहुत बची हुई विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दे। अपने आप को लोकतंत्र का रक्षक व प्रहरी
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मामाजी माणिकचंद: एक ध्येय समर्पित पत्रकार
मनों तक पहुँचने का कार्य का निर्वहन भी उनकी लेखनी का अंतिम समय तक सातत्य बना रहा। मामाजी के ध्येय समर्पित पत्रकारीय जीवन को ये पंक्तियां वास्तव में चरितार्थ करती हुई दिखती
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दीनदयाल उपाध्याय: राजनीति में संस्कृति के राजदूत
वे सनातन धर्म डिग्री कॉलेज , कानपुर में बी.ए. के छात्र थे, वहीं पर वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और स्वयंसेवक बने। उन्होंने संघ के आजीवन व्रती प्रचारक बनकर राष्ट्र सेवा
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‘दूरदर्शन’ जो दिलों में सदा जिंदा है
कोरोना के इस दौर में भी हम सबने दूरदर्शन की सफ़लता व कीर्तिमान को एक बार फिर महसूस किया है। पिछले कुछ महीनों में अस्सी के दशक में दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों का पुन: प्रसारण रामायण, महाभारत, कृष्णा आदि को हमने
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स्वामी विवेकानंद का वो संदेश जिसने दुनियाभर में हिंदुत्व की पताका फहराई
कुल मिलाकर यदि यह कहा जाये कि स्वामी जी आधुनिक भारत के निर्माता थे, तो उसमें भी अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। यह इसलिए कि स्वामी जी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु जो माहौल निर्माण किया उस पर अमिट छाप पड़ी।
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गति के लिए चरण व प्रगति के लिए आचरण की प्रेरणा है ‘शिक्षक’
शिक्षक जो जीवन के व्यावहारिक विषयों को बोल कर नहीं बल्कि स्वयं के उदाहरण से वैसा करके सिखाता है। शिक्षक जो बनना नहीं गढ़ना सिखाता है।
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विनायक सावरकर : स्वर्णिम अध्याय का नाम
तुमने गीता के स्थितप्रज्ञ को साकार कर दिया है मदन" न जाने ऐसे कितने ही जीवन है जो सावरकर से प्रेरणा प्राप्त कर मातृभूमि के लिए हस्ते हस्ते बलिदान हो गए. अपने महापुरुषों का
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युगदृष्टा डॉ. आंबेडकर – समरसता के शिल्पकार
समाज में अधिकतर लोग डॉ आंबेडकर को केवल भारत के सविंधान निर्माता के रूप में जानते हैं , और कुछ लोग उन्हें एक दलित नेता के रूप में , परन्तु यह पूरा परिचय नहीं है , ये तो अंश मात्र है