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नींद से जगा देता है दुख का पहाड़ !
महात्मा बुद्ध ने वर्तमान का सदुपयोग करने की शिक्षा दी है। बुद्ध ने अतीत के खंडहरों और भविष्य के हवा महल से निकाल कर मनुष्य को वर्तमान में खड़ा रहने की शिक्षा दी है।
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सत्य से संचित शक्ति का वैभव
सत्य से संचित शक्ति का वैभव - डॉ. चन्द्रकुमार जैन गांधीजी की आत्मकथा सत्य के प्रयोग की बानगी है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वस्तुतः उनका जीवन और सत्य एक दूसरे के पर्याय हैं। सत्य उनके लिए कसौटी था। सत्य का आनंद ही उनका परम ध्येय था। बापू ने संसार को सत्य की प्रयोगशाला माना। उनकी जीवनी और आत्मकथा दोनों सत्य के साक्षात्कार तथा उसके आत्मसातीकरण की खुली किताबों के समान हैं। सत्य को ईश्वर के रूप में पहचानने वाले गांधी, वास्तव में सत्य के सार्वभौमिक प्रवक्ता हैं। सत्य उनके साधना-पथ का साध्य रहा और उस सत्य को साधने के लिए अहिंसा को उन्होंने एक कारगर माध्यम बनाया। गांधी जी का जीवन कथनी का नहीं, करनी का था। उन्होंने जो कहा उसके उदाहरण पहले स्वयं बने। वाद-विवाद से दूर संवाद के समीप रहा उनका जीवन। इसलिए समझना होगा कि गांधीवाद उनका कोई पंथ नहीं है अपितु उनके सिद्धांतों, मन्तव्यों का संग्रह है। अपनी किसी राह पर लोगों को चलने के लिए उन्होंने किसी को बाध्य नहीं किया, बल्कि कहा सत्य और अहिंसा की राह पर चलो। बापू ने कहा - मैं कभी इस बात का दावा नहीं करता कि मैंने नया सिद्धांत चलाया है। मैंने शाश्वत सत्यों को अपने नित्य के जीवन और प्रश्नों से सम्बन्ध करने का प्रयास अपने ढंग से किया। आप लोग इसे गांधीवाद न कहें, इसमें वाद जैसा कुछ भी नहीं है। गांधी ने शाश्वत सत्य का पाठ विश्व के महान सन्तों एवं मनीषियों से सीखा था। गांधीजी का सत्य जीवन का व्यावहारिक आलोक है। वास्तव में गाँधी जी विश्व को सत्य एवं अहिंसा के आदर्शों पर चलता हुआ देखना चाहते थे। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति इस अभिप्राय को प्राप्त करने का एक साधन मात्र थी। राष्ट्रपिता के लिए सर्वोच्च था। उन्होंने हरिजन ( 22 फरवरी, 1942 ) में लिखा - सत्य सर्वव्यापाक है। यह अहिंसा में समाहित नहीं, वरन अहिंसा इसमें समाहित है। गांधी जी ने सत्य को जी कर दिखाया। सत्य को ही जीवन बनाया। यहां तक उन्होंने देश की स्वतंत्रता से भी सत्य को लेकर कोई समझौता नहीं किया। सत्य समर्पण की यह गहन दृष्टि गांधी जी के सत्यशोधन का सार कही जा सकती है। सत्य के लिए भावावेश उनके जीवन पर छाया हुआ था। इसने उनके ह्रदय पर इतना प्रभाव डाला कि वह अपरिमित शक्तिशाली बन गया। गांधी जी सत्य साधक ही नहीं, सत्य अन्वेषक भी थे। स्मरण रहे कि इसका उन्होंने विशाल पैमाने पर सत्य प्रयोग किया और उन्हें सफलता मिली। मो. 9301054300
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नयी शिक्षा नीति में आचार्य विद्यासागर जी का योगदान
इससे हमारी नयी पीढ़ियों को बुनियादी संस्कारों से जुड़ने और अपनी माटी, अपनी भाषा और और जीवन व्यवहार के करीब आने के नए अवसर जुटेंगे। यह वास्तव में परम सौभाग्य का प्रसंग है।
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शब्दों के आर-पार सिरजता नया संसार
हमारा जीवन ही ऑनलाइन जैसा हो गया है। ये स्वयं को बचाने और बाँचने का कालखंड है। निराशा घर न कर ले, नकारात्मकता न घेर ले, अवसाद के शिकार न हों, इसके लिए साहित्य जगत लोगों को जगा रहा है।
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प्रार्थना करें, याचना नहीं !
मनुष्य या तो अपने बीते हुए पलों में खोया रहता है या फिर अपने भविष्य की चिंताओं में डूबा रहता है। दोनों सूरतों में वह दुखी रहता है। वास्तविक जीवन वर्तमान में है। उसका संबंध किसी बीते हुए या आने वाले कल से नहीं है। जो वर्तमान में जीता है वही हमेशा खुश रहता है।
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बड़े दिल की दौलत है दर्द !
घटना है वर्ष 1960 की है। स्थान था यूरोप का भव्य ऐतिहासिक नगर तथा इटली की राजधानी रोम। सारे विश्व की निगाहें 25 अगस्त से 11 सितंबर तक होने वाले ओलंपिक खेलों पर टिकी हुई थीं। इन्हीं ओलंपिक खेलों में एक बीस वर्षीय अश्वेत बालिका भी भाग ले रही थी। वह इतनी तेज़ दौड़ी, इतनी तेज़ दौड़ी कि 1960 के ओलंपिक मुक़ाबलों में तीन स्वर्ण पदक जीत कर दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बन गई।
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पूरे चमन के एहसान का एहसास
एक अच्छा प्रबंधक सबको साथ लेकर चलता है और सबसे अलग किरदार बना लेता है। फिर भी वह कभी नहीं भूलता कि उसके कम को आसान बनाने में अनेक लोगों की भागीदारी है।
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गुम बच्चों के ग़म से सरोकार
अगर समाज और पुलिस की मुश्तैदी से बच्चों का चुराया जाना रोका जा सके तो ऐसे अनेक अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है। विडम्बना इतनी ही नहीं है के बच्चे गुम हो रहे हैं,
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जड़ों में बदलाव हो फलों का स्वाद बदलेगा
दरअसल जीवन जोखिम से जुड़ा है। गहराई से समझें तो सबसे बड़ा जोखिम है बिना जोखिम वाला जीवन। लेकिन यह भी काबिलेगौर है
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किताबें उम्र तुम्हारे नाम
एक साथ पढ़ने का सुअवसर पुस्तकालयों और अंतरजाल पर संभव है I गौरतलब है कि जीवन में अच्छे मित्र, अच्छी किताबें, और साफ अंतःकरण सचमुच बड़ी दुर्लभ सौगातें हैं।